संसद में हंगामे के बाद सोमवार को 78 विपक्षी सांसदों को निकाल दिया गया। यह संसद के इतिहास में पहली बार है कि इतनी बड़ी संख्या में सांसदों को निकाला गया है।
इससे पहले संसद से निलंबित सांसदों की सबसे बड़ी संख्या 1989 में थी जब 63 सांसदों को बाहर जाने के लिए कहा गया था। तब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। राजीव गांधी सरकार के 400 से अधिक सांसद थे। कांग्रेस सरकार को तब प्रचंड बहुमत प्राप्त था।
15 मार्च, 1989 को लोकसभा में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की जाँच के लिए जस्टिस ठक्कर आयोग को पेश करने पर हंगामा हुआ था। इसके चलते एक बार में 63 सांसदों को निलंबित कर दिया गया, जो 18 दिसंबर 2023 से पहले तक सबसे अधिक था। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार निलंबन के बाद, 'जनता समूह (सैयद शहाबुद्दीन) से संबंधित एक विपक्षी सदस्य, जिन्हें निलंबित नहीं किया गया था, ने कहा कि उन्हें भी निलंबित माना जाए और वह सदन से बाहर चले गये। तीन अन्य सदस्य (जीएम बनतवाला, एमएस गिल और शमिंदर सिंह) भी विरोध में बाहर चले गए थे।'
2015 में जब कांग्रेस अपने सदस्यों को निलंबित करने का विरोध कर रही थी, तब संसदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू ने पार्टी को 1989 की घटना की याद दिलाई थी। उन्होंने पूछा था, 'अगर कांग्रेस का दावा है कि उसके 25 सांसदों का निलंबन लोकतंत्र के लिए काला दिन है, तो रिकॉर्ड और बेंचमार्क किसने स्थापित किया?'
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान पिछले हफ्ते बुधवार को दो युवकों ने लोकसभा के अंदर घुसकर प्रदर्शन किया और धुआं छोड़ा था। इस बहुत बड़ी सुरक्षा सेंध माना गया। विपक्ष ने गुरुवार और शुक्रवार को इस मुद्दे पर दोनों सदनों में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान की मांग की। सरकार ने दोनों सदनों में इस पर चर्चा नहीं होने दी तो हंगामा हुआ। लोकसभा स्पीकर ने खराब आचरण का आरोप लगाते हुए लोकसभा में इंडिया गठबंधन के 13 सांसदों और राज्यसभा में टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन को शेष सत्र के लिए सदन से निष्कासित कर दिया था। अब इस हफ्ते 78 का निलंबन हुआ है। 2019 से अब तक 149 बार निलंबन की कार्रवाई हुई है।
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