प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'जनसंख्या विस्फोट' की बात कर एक ऐसे मुद्दे को छुआ है, जिस पर अब तक तमाम सरकारें जी चुराती रही हैं। क्या मोदी सरकार जनसंख्या विस्फोट पर काबू पाने के लिए कुछ करेगी? क्या सरकार के पास कोई कार्य योजना है, जिससे गुब्बारे की तरह फूल रहे जनसंख्या पर नियंत्रण किया जा सके? क्या सरकार ऐसा कोई ठोस कदम उठाएगी, जिससे वह जनसंख्या को उस स्तर पर रोक सके कि सबको खाना-कपड़ा मयस्सर हो, सबके पास नौकरी हो?
राजीव गाँधी ने एक बार इसकी चर्चा की थी और इसे लंबे समय के लिए इसे देश की सबसे बड़ी समस्या बताई थी। पर बाद में उनकी सरकार ने इस पर कुछ ख़ास किया नहीं था।
हमारे यहां जो जनसंख्या विस्फोट हो रहा है, ये आने वाली पीढ़ी के लिए संकट पैदा करता है।
— BJP (@BJP4India) August 15, 2019
लेकिन ये भी मानना होगा कि देश में एक जागरूक वर्ग भी है जो इस बात को अच्छे से समझता है।
ये लोग अभिनंदन के पात्र हैं। ये लोग एक तरह से देश भक्ति का ही प्रदर्शन करते हैं: पीएम #स्वतंत्रतादिवस pic.twitter.com/MLX0KR8Sr9
आज़ादी के समय जनसंख्या
आज़ादी के बाद 1951 में हुई पहली जनगणना में देश की जनसंख्या 36.1 करोड़ थी, जो पिछली जनगणना यानी 1941 से 4 करोड़ 20 लाख अधिक थी। देश की आबादी अगले 10 साल में 21.5 प्रतिशत यानी 7.81 करोड़ बढ़ी। यह एक दशक की सबसे बड़ी बढ़ोतरी थी।चीन को पछाड़ेगा भारत!
चीन के बाद दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश भारत तो है ही, इसकी आबादी बढ़ने की दर भी बहुत ज़्यादा है। लेकिन उससे भी बड़ी बात यह है कि दूसरे कारक अधिक ख़तरनाक हैं।भारत के पास पूरी दुनिया का 2.4 प्रतिशत भू-भाग है और विश्व आय का सिर्फ़ 2 प्रतिशत इसकी आमदनी है, लेकिन दुनिया की 15 प्रतिशत आबादी भारत में है। एशिया की चौथाई आबादी इस देश में रहती है।
जनसंख्या विस्फोट?
इस दर को क्या जनसंख्या विस्फोट कहा जा सकता है? जनसंख्या विस्फोट आबादी में बढ़ोतरी की उस दर को कहते हैं जब मौजूदा संसाधन इस वृद्धि को सहारा देने में सक्षम नहीं होता है।
जीडीपी वृद्धि दर
इसे इस तरह समझा जा सकता है कि जनसंख्या वृद्धि के कारण भारत में प्रति व्यक्ति आय उम्मीद के मुताबिक़ नहीं बढ़ी है।साल 1950-51 और साल 1980-81 के बीच औसत सालाना राष्ट्रीय आय 3.6 प्रतिश की दर से बढ़ी, लेकिन प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी 1 प्रतिशत की दर से ही हुई है। इसकी वजह यह है कि इस दौरान जनसंख्या में 2.5 प्रतिशत की दर से बढ़ी।
निवेश की ज़रूरत
भारत में पूँजी निवेश और उसके नतीजों यानी कैपिटल आउटपुट रेशियो 4 : 1 है। इस पर जनसंख्या में बढ़ोतरी की दर 1.8 प्रतिशत हर साल है। यानी भारत में विकास की स्थिति को आगे बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय आय का 7.1 प्रतिशत निवेश करना होगा।
खाद्य पदार्थों की कमी
जनसंख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी का नतीजा यह होता है कि प्रति व्यक्ति खाद्य उत्पादों यानी खाने पीने की चीजों की कमी हो जाती है।
अधिक जनसंख्या वाली अर्थव्यवस्था में विकास और कृषि उत्पादों में बढ़ोतरी होने के बावजूद खाद्य संकट बना रहता है क्योंकि जिस दर से कृषि विकास होता है, उससे ऊँची दर से जनसंख्या बढ़ती है।
बेरोज़गारी
नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन यानी एनएसएसओ के आँकड़ों के मुताबिक़ बेरोज़गारी की दर 45 साल के उच्चतम स्तर पर है। आर्थिक मंदी तो इसकी वजह है ही, जनसंख्या वृद्धि भी बड़ी वजह है।
सस्ता श्रम
लेकिन अधिक जनसंख्या के आर्थिक फ़ायदे भी होते हैं, उनका लाभ उठाने की नीति होनी चाहिए। अधिक जनसंख्या के कारण सस्ते में बहुत बड़ा श्रमिक वर्ग मिलता है। सस्ते श्रम से उत्पादन लागत कम होती है और उत्पाद सस्ता होता है। विश्व अर्थव्यवस्था पर चीन के छा जाने की एक वजह यह भी है।
बड़ा बाज़ार
जहाँ अधिक जनसंख्या होगी, वहाँ बहुत बड़ा बाज़ार भी होगा। इस बड़े बाज़ार की क्रय शक्ति थोड़ी भी बढ़ी तो वह बहुत अधिक मात्रा में उत्पाद खरीद सकता है। इससे खपत बढ़ेगी, माँग बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था के विकास में ये दो बड़े कारक हैं।
भारत में नरसिम्हा राव के समय जो आर्थिक सुधार कार्यक्रम चलाया गया, उसका बड़ा लाभ यह मिला कि एक बहुत बड़ा मध्यवर्ग उभरा, जिसके पास पहले से ज़्यादा क्रय शक्ति थी। हालाँकि यह क्रय शक्ति यूरोप जैसी अर्थव्यवस्था की तुलना में बहुत ही कम थी, पर इस बड़े बाज़ार ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को आकर्षित किया।
युवा जनसंख्या
भारत की जनसंख्या की बड़ी खूबी यह है कि इसका 60 प्रतिशत हिस्सा 40 वर्ष या उससे कम उम्र का है। यह दुनिया की सबसे युवा आबादी है। इनमें काम करने की क्षमता अधिक होती है, खपत अधिक होती है, खर्च अधिक होता है, माँग अधिक होती है। दूसरी ओर इन पर स्वास्थ्य सेवा का खर्च कम होता है, पेंशन का बोझ कम होता है।
यूरोपीय अर्थव्यवस्था फ़िलहाल इस समस्या से जूझ रही है। चीन उस दिशा में बढ़ रहा है, इसलिए चीन अभी से इसके रास्ते तलाश रहा है।
अपनी राय बतायें