लद्दाख के हजारों लोग रविवार को सड़कों पर थे। उनका यह पहला प्रदर्शन नहीं था। एक साल से वहां प्रदर्शन चल रहे हैं। धारा 370 खत्म करने को इस प्रदर्शन ने एक तरह से चुनौती दे दी है। क्योंकि यही लोग थे, जिन्होंने धारा 370 खत्म होने और लद्दाख को केंद्र शासित क्षेत्र घोषित करने का स्वागत किया था। पिछले एक वर्ष से वहां आंदोलन चल रहा है। लेकिन इस पर केंद्र सरकार चुप्पी साधे हुए और कथित राष्ट्रीय मीडिया आपको लद्दाख आंदोलन के बारे में पूरी जानकारी नहीं दे रहा है। इस रिपोर्ट में लगे फोटो और वीडियो को देखकर आप हालात का अंदाजा लगा सकते हैं।
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लद्दाख के लोगों की चार प्रमुख मांगें- लद्दाख को राज्य का दर्जा, 6वीं अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा उपाय, पीएससी और शीघ्र नौकरी भर्ती प्रक्रिया और लेह और कारगिल के लिए 2 अलग संसद सीटें। लद्दाख को जम्मू कश्मीर से अलग किए जाने के बाद लोगों का कहना है कि वे जमीन और आजीविका के लिए ज्यादा सुरक्षा चाहते हैं।
5 अगस्त, 2019 को, जब लद्दाख को कश्मीर से अलग किया गया और उसे संघ शासित क्षेत्र में बदला गया, तो इसके मुख्य शहर और बौद्ध बहुल लेह की सड़कें खुशी से झूम उठीं। लेकिन चार साल में ही लोगों का मोह कैसे भंग हो गया, उसके गवाह वहां चल रहे प्रदर्शन हैं।
समुद्र तल से 5,730 मीटर (18,800 फीट) ऊपर यहां के लगभग 300,000 निवासियों को उम्मीद थी कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का कदम उनकी भूमि और आजीविका की रक्षा करेगा। लेकिन सारा मोह भंग हो गया। जब लद्दाख जम्मू कश्मीर राज्य का हिस्सा था, तो लद्दाख पर शासन करने वाली एक निर्वाचित संस्था, लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (LAHDC) अलग से थी और उसे महत्वपूर्ण स्वायत्तता मिली हुई थी। लेकिन 2019 में इस क्षेत्र को नई दिल्ली के प्रत्यक्ष शासन के अधीन है कर दिया गया। लद्दाखी नेताओं का कहना है कि एलएएचडीसी को फुटनोट तक सीमित कर दिया गया है, जिससे यहां के लोगों में राजनीतिक बेदखली की भावना पैदा हो रही है।
लद्दाखी राजनेता चेरिंग दोरजे ने एक इंटरव्यू में कहा है कि “हमारी ज़मीनें सुरक्षित थीं, हमारी नौकरियाँ सुरक्षित थीं और अब हम पूरी तरह से बाहरी प्रभाव के संपर्क में हैं। हम बहुत बेहतर थे। हम लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग करना चाहते थे लेकिन हम इसे इस तरह से नहीं चाहते थे।
क्या दूसरा तिब्बत बन जाएगा लद्दाख
मशहूर पर्यावरणवादी सोनम वांगचुक का कहना है कि लद्दाख कहीं दूसरा तिब्बत न बन जाए। ये वही सोनम वांगचुक लद्दाख के प्रमुख लोगों में से एक थे, जिन्होंने 2019 में भारतीय प्रशासित कश्मीर से उसकी स्वायत्तता छीनने और लद्दाख को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश में बदलने के भाजपा के फैसले का समर्थन किया था। वांगचुक एक इंजीनियर, इनोवेटर और पर्यावरणवादी कार्यकर्ता हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि उनके जीवन ने 2009 की बॉलीवुड ब्लॉकबस्टर 3 इडियट्स को प्रेरित किया।
वही वांगचुक लद्दाख के लिए अधिक स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं क्योंकि लोगों को आशंका है कि भारत लद्दाख को दूसरे तिब्बत में बदल सकता है। उन्होंने चीन द्वारा क्षेत्र के नियंत्रण का जिक्र करते हुए इंटरव्यू में कहा- "तिब्बत में सभी प्रकार के खनिजों आदि का पूरी तरह से बलात्कार किया जा रहा है।" वांगचुक का कहना है कि अगर लद्दाख को भूमि सुरक्षा उपाय नहीं मिले तो लद्दाखी अपनी ही भूमि में अल्पसंख्यक हो जाएंगे। तिब्बत में, अब शायद ही कोई तिब्बती है। इसमें अधिकतर मुख्य भूमि चीन के लोग हैं और तिब्बती अपने यहां अल्पसंख्यक हैं। उनके पास कोई अधिकार नहीं है।''
सोनम वांगचुक का कहना है कि "लद्दाख में लोगों को डर है कि अगर यहां उद्योग लगेंगे, तो उस वजह से यहां लाखों लोग आएंगे। उसका असर लद्दाख के नाजुक इको सिस्टम पर पड़ेगा, जो यहां बड़ी आबादी का सहन नहीं कर सकता है।"
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सरकारी अधिकारियों के अनुसार, कई औद्योगिक समूहों ने बुनियादी ढांचे और खनन (माइनिंग) के लिए लद्दाख में रुचि दिखाई है, जिससे निवासी बेचैन हो गए हैं। बर्फ से ढके पहाड़ों से घिरा लद्दाख कई हिमाच्छादित झीलों और कई छोटे और बड़े ग्लेशियरों का घर है। अध्ययनों से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण क्षेत्र में ग्लेशियर तेजी से घट रहे हैं। सोनम वांगचुक की असली चिन्ता यही है। सोनम ने कहा- “अगर उद्योग आ गए, तो ये सभी ग्लेशियर ख़त्म हो जाएंगे। हम तुरंत जलवायु शरणार्थी बन जाएंगे।”
लद्दाख के लोगों की मुख्य मांगों में से एक उन्हें भारत के संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए। यह अनुसूची संविधान के अनुच्छेद 371 का विस्तार करके आदिवासी और भारतीय आबादी वाले क्षेत्रों की रक्षा करती है। ऐसी व्यवस्था भारत के उत्तर-पूर्व में चार राज्यों में प्रभावी है।
लद्दाख निवासियों का कहना है कि वे भी इसी तरह की सुरक्षा के पात्र हैं क्योंकि उनके क्षेत्र का 97 प्रतिशत हिस्सा आदिवासी है। वांगचुक ने केंद्र की मोदी सरकार द्वारा दिए गए आश्वासनों का जिक्र करते हुए कहा- “हम बहुत खुश थे कि लद्दाख को अब उसी तरह प्रबंधित किया जाएगा। लेकिन सारे ख्वाब टूट गए। जब लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बना, तो हमें आश्वासन दिया गया कि हमें कुछ सुरक्षा उपाय मिलेंगे। हमें यकीन था कि हमें एक विधायक और छठी अनुसूची मिलेगी जो हमें सुरक्षा उपाय देगी। लेकिन अब वे इसके बारे में बात भी नहीं कर रहे हैं। यहां तक कि उन्हें अपना वादा याद दिलाना भी अपराध जैसा हो गया है।”
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लद्दाख में मुख्य रूप से दो जिले शामिल हैं - मुख्य रूप से बौद्ध लेह और मुस्लिम बहुल कारगिल। हालिया विरोध प्रदर्शनों ने पारंपरिक रूप से धार्मिक और राजनीतिक आधार पर विभाजित दो जिलों को एकजुट कर दिया है। दोनों जिलों के स्थानीय नेताओं ने लोगों की चिंताओं को आगे बढ़ाने के लिए लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) का गठन किया है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370, जिसे भाजपा सरकार ने 2019 में निरस्त कर दिया, बाहरी लोगों को भारत प्रशासित कश्मीर में स्थायी निवास या व्यवसाय स्थापित करने से रोक दिया, जिसका लद्दाख एक हिस्सा था। नौकरियाँ और शैक्षणिक छात्रवृत्तियाँ भी विशेष रूप से क्षेत्र के स्थायी निवासियों के लिए थीं।
वे सभी अधिकार अब ख़त्म हो गए हैं, जिससे चीन और पाकिस्तान दोनों की सीमा से लगे हिमालय क्षेत्र में भय और गुस्सा बढ़ गया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि लद्दाख में लोग मौजूदा सरकार की नीतियों की वजह से अलग-थलग महसूस कर रहे हैं। लद्दाखी हमेशा देश के बाकी हिस्सों के साथ एकीकरण के समर्थक रहे हैं जो उन्हें कश्मीर से अलग करता है। लेकिन उन्हें अब लगता है कि उनकी उम्मीदें धराशायी हो गई हैं। यही कारण है कि वे राज्य का दर्जा चाहते हैं। तब उनकी अपनी चुनी हुई सरकार होगी जो उनके लिए कुछ करेगी।
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