जिस जगह पर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट बनाया जा रहा है, वहाँ अब तक हर किसी का स्वागत रहा है। शहर के हर कोने से इसके लॉन में लोग आ कर बैठते हैं, अपने परिवार के साथ क्रिकेट खेलते हैं, आइस्क्रीम खाते हैं। इसी जगह निर्भया के लिए संवेदना और एकजुटता का प्रदर्शन हुआ! दरअसल, यह एक तरह का राष्ट्रीय प्रांगण है और यह देश की जनता के दिल और रूह से जुड़ा हुआ है। लेकिन क्या सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के अस्तित्व में आने के बाद यह सब हो पाएगा?
इस सवाल का जवाब पाने से पहले यह जान लें कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट क्या है। इसकी घोषणा सितंबर 2019 में की गई थी। 10 दिसंबर 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी नींव रखी थी। सेंट्रल विस्टा एवेन्यू विजय चौक से इंडिया गेट तक 3.2 किलोमीटर क्षेत्र में फैला पुनर्विकास परियोजना है। इसको पूरा करने में 20 हजार करोड़ रुपए ख़र्च होंगे। यहां रेड ग्रेनाइट से बने 15.5 किलोमीटर के वॉकवे से लेकर 16 पुल और फूड स्टॉल तक की व्यवस्था की गई है।
इस प्रोजेक्ट के तहत नया संसद भवन भी बनाया जा रहा है। इसके निर्माण में 971 करोड़ की लागत आएगी और इसे 2022 तक पूरा किया जाना है। प्रोजेक्ट के तहत मौजूदा संसद भवन के सामने नया तिकोना भवन बनेगा। सांसदों के लिए लॉन्ज, पुस्तकालय, संसद की अलग-अलग समितियों के कमरे, पार्किंग की जगह सहित कई तरह की सुविधाएं इस भवन में उपलब्ध होंगी। नया भवन 64500 स्क्वायर किमी में बनेगा।
हालाँकि यहां की कुछ इमारतों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। इनमें राष्ट्रपति भवन, इंडिया गेट, वॉर मेमोरियल, हैदराबाद हाउस, रेल भवन, वायु भवन रि-डेवलपमेंट प्रोजेक्ट का हिस्सा नहीं हैं।
इस प्रोजेक्ट में सबसे अहम कुर्बानी है देश का संसद भवन, जहाँ भारतीय गणतंत्र की परवरिश हुई। इसी संसद भवन ने आज़ाद हिंदुस्तान की पहली झलक देखी। यहीं 1971 की जंग की ऐतिहासिक जीत का एलान किया गया था, वगैरह-वगैरह। यहीं मंडल कमीशन की सिफ़ारिशों पर जोरदार बहस हुई थी।
लेकिन अब इस ऐतिहासिक संसद के गलियारे सूने और इमारत बेमानी हो जाएगी। वहाँ संसदीय सदस्यों की लोकतांत्रिक बहस और चर्चा नहीं चलेगी। सैलानी अब गाइड की मदद से घूमने और तसवीरें लेने जाया करेंगे।
इस राष्ट्रीय प्रांगण का अस्तित्व नए सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के कारण ख़तरे में आ गया है। क्य़ोंकि इस अनमोल इलाक़े में ख़ास ‘जनता के लिए’ के सौ एकड़ आरक्षित ज़मीन को अब ‘वीवीआईपी’ ज़ोन घोषित कर दिया गया है। इस वीवीआईपी इलाक़े में नेताओं और बड़े अफ़सरों के अलावा किसी आम आदमी का क़दम रखना मुश्किल होगा। सरकारी दफ्तरों के लिए बनाई जा रही आठ मंज़िली इमारतों के लिए क़रीब दो हज़ार पेड़ों की कुर्बानी भी ली जाएगी।
क्या यह लोकतांत्रिक क़दम है? जिसमें लोक पीछे छूट गया है और तंत्र हावी हो गया है।
सेंट्रल विस्टा परियोजना के निर्माण कार्य से, अगले दो साल तक, इससे भी ज़्यादा भयंकर वायु प्रदूषण होगा। इमारतों के मलबे के रूप में, 2 साल के लिए क़रीब 500 टन मिट्टी यहाँ से रोज़ाना, ढोकर ले जाई जाएगी। इसका कार्बन फुटप्रिंट होगा चेन्नई शहर जितना बड़ा।
इस परियोजना को लेकर ये सवाल उठाए गए कि जब कोरोना संक्रमण से पूरा देश और पूरी अर्थव्यवस्था कराह रही थी तब इस 20 हज़ार करोड़ के प्रोजेक्ट की क्या ज़रूरत थी।
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के मामले में वास्तुकारों और जनता को अपनी आपत्ति दर्ज कराने के लिये मात्र 48 घंटे का वक्त दिया गया। इसमें 1292 आपत्तियों को दर्ज किया गया। लेकिन इन आपत्तियों पर उचित सुनवाई के बिना इन्हें दरकिनार कर दिया गया। इसके बाद वास्तुकार, योजनाकार और विशेषज्ञ सुप्रीम कोर्ट में भूमि उपयोग के बदलाव के ख़िलाफ़ केस लड़ने पहुंचे और उन्होंने इस प्रोजेक्ट को चुनौती दी।
इन सब वजहों से सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट शुरू से विवादों में रहा है। हालाँकि, इन आपत्तियों और विवादों के बावजूद सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी। जस्टिस एएम खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और संजीव खन्ना की बेंच ने पिछले साल जनवरी में कहा था कि हालांकि केंद्र सरकार को निर्माण कार्य शुरू होने से पहले हैरिटेज कंजर्वेशन कमेटी की इजाजत लेनी होगी। अदालत ने यह भी कहा कि पर्यावरण समिति की सिफ़ारिशें सही और वैध हैं।
बेंच ने कहा था कि इस प्रोजेक्ट को स्वीकृति देने में सेंट्रल विस्टा कमेटी और हैरिटेज कंजर्वेशन कमेटी में किसी तरह की कोई खामी नहीं थी। और सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद प्रोजेक्ट आगे बढ़ता रहा। अब इसी प्रोजेक्ट का प्रधानमंत्री आज उद्घाटन करेंगे।
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