मॉब लिंचिंग यानी भीड़ द्वारा पीट-पीट कर मारे जाने की घटनाएँ क्यों बढ़ रही हैं? इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है? मॉब लिंचिंग का दायरा क्यों बढ़ता जा रहा है? पहले जहाँ गो मांस व गो तस्करी के संदेह पर मॉब लिंचिंग की रिपोर्टें सामने आ रही थीं वहीं अब ‘वंदे मातरम’, ‘भारत माता की जय’ बोलने से लेकर बाइक चोरी और बच्चा चोरी के शक में लिंचिंग की घटनाएँ भी सामने आने लगी हैं। पिछले सप्ताह मीडिया रिपोर्ट आई थी कि सिर्फ़ उत्तर प्रदेश में एक हफ़्ते में ही लिंचिंग 20 ऐसी घटनाएँ हुईं।
हाल के दिनों में बच्चा चोरी के शक में पीट-पीट कर मार डालने की कई घटनाएँ हुई हैं। उत्तर प्रदेश के एटा ज़िले में उत्तेजित भीड़ ने हिमाचल प्रदेश की एक महिला को बच्चा चोरी करने के शक में पीट-पीट कर मार डाला। गोंडा ज़िले में एक महिला को बच्चा चोरी के आरोप में पेड़ से बाँध कर बुरी तरह पीटा गया, हालाँकि बच्चा चोरी का कोई सबूत नहीं मिला। शामली ज़िले में रस्सी बेच रही 5 महिलाओं को बच्चा चोरी के शक में लोगों ने पीटना शुरू कर दिया। बाद में पुलिस ने हस्तक्षेप कर उन्हें बचाया।
अब स्थिति तो ऐसी आ गई है कि बुलंदशहर में मानसिक रूप से बीमार एक आदमी को भीड़ ने बुरी तरह पीट दिया। ऐसा तब है जब तबरेज़, पहलू ख़ान, जुनैद, और अखलाक को पीट-पीटकर मारे जाने की ख़बरों के बाद देश भर में बवाल मचा था। सवाल यह है कि मॉब लिंचिंग की घटनाएँ क्या इसलिए बढ़ रही हैं कि घटना को अंजाम देने वाले लोगों को क़ानूनी कार्रवाई का डर नहीं है? ऐसी रिपोर्टें आती रही हैं कि पुलिस की कार्रवाई नहीं होने, क़ानून-व्यवस्था लचर होने और राजनीतिक संरक्षण मिलने की वजह से स्थिति ज़्यादा ख़राब होती रही है।क्या है इसके पीछे की मानसिकता, आइए समझते हैं मनोचिकित्सक से ही। जाने-माने मनोचिकित्सक अशोक जैनर मॉब लिंचिंग की घटनाएँ बढ़ने के पीछे मनोवैज्ञानिक कारण बताते हैं।
सामूहिक ज़िम्मेदारी से डर कम होना
अशोक जैनर कहते हैं कि ऐसी स्थिति में व्यक्ति या समूह को चोट पहुँचाकर अपराध का डर उपलब्धि की भावना में बदल जाता है। वह आगे कहते हैं, ‘यह पैथोलॉजिकल नफ़रत इतनी ज़्यादा होती है कि सही या ग़लत में अंतर नहीं किया जा सकता और पीड़ित एक निर्दोष व्यक्ति हो सकता है। उस समय का व्यवहार पूरी तरह से आंतरिक पैथोलॉजिकल नफ़रत से प्रभावित होता है।’
‘हीरो के रूप में स्वागत”
मनोचिकित्सक जैनर कहते हैं कि लिंचिंग के मामले बढ़ने का एक और पहलू है- ‘हीरो के रूप में स्वागत’। वह कहते हैं, ‘हमेशा ही इंसान सामाजिक प्राणी रहा है। उसे सामाजिक मान्यता, समाज से प्रशंसा की भी बहुत उम्मीद होती है। बड़े लोगों की नज़रों में सराहना की इसी इच्छा के चलते उनका व्यवहार इस ओर झुकता है। मूल बात यह है कि एक सामान्य स्वास्थ्य दिमाग वाला व्यक्ति भीड़ हिंसा में शामिल नहीं हो सकता है। इसका उपचार यह है कि इन कारणों को ही दूर किया जाए।’
बता दें कि हाल के दिनों में कई ऐसी रिपोर्टें आई हैं जिसमें लिंचिंग के जिन मामलों में भी आरोपियों को पकड़ा गया और वे जमानत पर बाहर आए तो उनका भव्य स्वागत किया गया। भीड़ हिंसा में शामिल रहे ऐसे आरोपियों का स्वागत भी भीड़ ही करती है। कई बार तो बड़े स्तर के नेता और मंत्री भी फूल मालाओं के साथ स्वागत करते देखे गए।
बच्चों के चोरी होने पर मॉब लिंचिंग के मामले पर मनोचिकित्सक पंकज कुमार कहते हैं कि माँ-बाप में बच्चों के प्रति काफ़ी ज़्यादा प्यार होता है और इसे 'फ़ीलिंग ऑफ़ मदरहुड' या 'फ़ीलिंग ऑफ़ फ़ादरहुड' कहा जाता है। वह कहते हैं, 'अभिभावकों में सुरक्षा का भाव इस कदर रहता है और चोरी की ख़बर से वे इस कदर आक्रोशित हो जाते हैं कि वे सही और ग़लत का फ़र्क करना भूल जाते हैं।'
तो इसका क्या है समाधान?
इन घटनाओं को रोकने का तरीक़ा क्या है? समाधान तो मनोचिकित्सकों द्वारा बताई गई समस्याओं में ही है लेकिन दूसरे समाधान भी हैं। मनोचिकित्सक अशोक जैनर दलाई लामा की बात को दोहराते हुए कहते हैं कि यदि आप बच्चों को मेडिटेशन यानी ध्यान करना सिखाते हैं तो दुनिया से हिंसा ग़ायब हो जाती है। उन्होंने कहा, ‘वह (दलाई लामा) 100 प्रतिशत सही हैं। ध्यान/विपश्यना की अवधारणा मन को साफ़ करना और ख़ुद के प्रति ईमानदार होना है। यदि मन को किसी भी ग़लत दिशा में मोड़ दिया जाता है तो इसका परिणाम संघर्ष, युद्ध और हिंसा के रूप में होता है।’
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