तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा है कि हाल में हिंदी को थोपे जाने का प्रयास अव्यवहारिक है और यह विभाजन को बढ़ावा देने वाला होगा। उनका यह बयान उस संदर्भ में आया है जिसमें केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने के लिए कथित तौर पर एक संसदीय समिति ने सिफारिश की है। इस सिफारिश को स्टालिन ने हिंदी थोपे जाने के प्रयास के तौर पर देखा है।
इस मामले में प्रधानमंत्री को लिखे लंबे चौड़े ख़त को स्टालिन ने ट्विटर पर साझा किया है।
Such impractical, divisive attempts will put non-hindi states people in a disadvantageous position & jeopardise the spirit of the union - state relations.#StopHindiImposition!
— M.K.Stalin (@mkstalin) October 16, 2022
Make all languages in the 8th Schedule as Official Languages!
Uphold the unity of India! 2/2 pic.twitter.com/y9yAOicZJj
तब उत्तर पूर्व छात्र संगठन यानी एनईएसओ ने इस क्षेत्र में कक्षा 10 तक हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने के केंद्र के फ़ैसले पर नाराज़गी जताई थी। हिंदी पर ऐसे ही बयानों के बीच तमिलनाडु बीजेपी के नेता अन्नामलाई ने कहा था कि तमिलनाडु बीजेपी हिंदी थोपे जाने को स्वीकार नहीं करेगी।
बता दें कि अमित शाह ने 7 अप्रैल को बैठक में कहा था कि भारत के अलग-अलग राज्यों के लोगों को एक दूसरे के साथ हिंदी में बातचीत करनी चाहिए ना कि अंग्रेजी में। अमित शाह ने संसदीय भाषा समिति की 37 वीं बैठक में कहा था, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फैसला किया है कि सरकार चलाने का माध्यम राजभाषा होनी चाहिए और इससे निश्चित रूप से हिंदी की अहमियत बढ़ेगी। अब वक़्त आ गया है कि राजभाषा को हमारे देश की एकता का अहम हिस्सा बनाया जाए।”
अमित शाह इससे पहले भी पूरे देश की एक भाषा हिंदी होने की बात कह चुके हैं और तब इसे लेकर देश के कई राज्यों में काफी विरोध हुआ था।
साल 2019 में अमित शाह ने एक ट्वीट में कहा था कि आज देश को एकता के दौर में बांधने का काम अगर कोई एक भाषा कर सकती है तो वह सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली हिंदी भाषा ही है।
बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी को लिखे ख़त में स्टालिन ने रविवार को कहा है, 'केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली समिति ने अपना प्रस्ताव दिया है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ यह सिफारिश की गई है कि आईआईटी, आईआईएम, एम्स और केंद्रीय विश्वविद्यालयों जैसे केंद्र सरकार के शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षा का अनिवार्य माध्यम हिंदी होना चाहिए और हिंदी को अंग्रेजी की जगह लेनी चाहिए।'
स्टालिन ने ख़त में कहा है, 'मुझे आगे यह बताया गया है कि आगे यह सिफारिश की गई है कि युवा कुछ नौकरियों के लिए केवल तभी पात्र होंगे जब उन्होंने हिंदी का अध्ययन किया हो, और भर्ती परीक्षाओं में अनिवार्य प्रश्नपत्रों में से एक के रूप में अंग्रेजी को हटा दिया गया है। ये सभी संघीय सिद्धांतों के खिलाफ हैं। यह सिर्फ़ हमारा संविधान और हमारे राष्ट्र के बहुभाषी ताने-बाने को नुक़सान पहुंचाएगा।'
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने कहा है कि हिंदी के अलावा अन्य भाषा बोलने वाले लोगों की संख्या भारतीय संघ में हिंदी भाषी लोगों की तुलना में अधिक है।
स्टालिन ने कहा है, 'भावनाओं का सम्मान करते हुए और भारतीय एकता व सद्भाव बनाए रखने की ज़रूरत को समझते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आश्वासन दिया था कि 'जब तक गैर-हिंदी भाषी लोग चाहते हैं, अंग्रेजी आधिकारिक भाषाओं में से एक बनी रहेगी'। इसके बाद राजभाषा पर 1968 और 1976 में पारित संकल्प, और उसके तहत निर्धारित नियमों के अनुसार, केंद्र सरकार की सेवाओं में अंग्रेजी और हिंदी दोनों का उपयोग सुनिश्चित किया गया।'
उन्होंने कहा, "लेकिन, मुझे डर है- 'एक राष्ट्र' के नाम पर हिंदी को बढ़ावा देने के निरंतर प्रयास विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के लोगों के भाईचारे की भावना को नष्ट कर देंगे और भारत की अखंडता के लिए हानिकारक होंगे।'
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