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पीएम जिनको कहते हैं दिव्यांग, योगी के मंत्री ने किया अपमान

देश के प्रधानमंत्री जिनको दिव्यांग कहते हैं उन्हीं का अपमान बीजेपी के नेता करते हैं। सिद्धार्थ नाथ सिंह यूपी की बीजेपी सरकार में मंत्री हैं। सिद्धार्थ नाथ सिंह पार्टी के शालीन नेता माने जाते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पोते हैं। लखनऊ में समाजवादी पार्टी और बीएसपी के बीच गठबंधन की ख़बरों पर प्रेस कांग्रेस कर रहे थे। उनसे पूछा गया कि क्या इस गठबंधन से बीजेपी को नुक़सान होगा? सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि बीजेपी बहुत मज़बूत है और लगातार मज़बूत होती जा रही है। जिन पार्टियों का अस्तित्व ख़त्म हो गया था वह अब एक-दूसरे से हाथ मिला रहे हैं। फिर वह निहायत भद्दे तरीके से बोले, “बैसाखियों का सहारा वे लेते हैं जो लूले-लंगड़े होते हैं।”

यह कौन-सा तरीक़ा है समाज के किसी तबके को संबोधित करने का। क्या बैसाखी से चलना ख़राब बात है?

क्या जो बैसाखियों का सहारा लेते हैं उन्हें समाज में इज़्ज़त की नज़र से नहीं देखना चाहिये? क्या ऐसे लोग सिर्फ़ कमज़ोरी के ही प्रतीक हैं? क्या सिद्धार्थ भूल गए कि स्टीवन हॉकिंग जिन्हें दुनिया जीनियस कहती है, वह आजीवन व्हील-चेयर पर रहे?
  • प्रधानमंत्री मोदी को विकलांग शब्द पर आपत्ति थी। उन्होंने इस समाज के लिये दिव्यांग शब्द का इस्तेमाल किया ताकि उनको सम्मान दिया जा सके। कोई भी उन्हें भद्दे शब्दों से संबोधित कर अपमानित न करे।
तो क्या सत्ता का अहंकार सिद्धार्थ के सिर चढ़ कर बोलने लगा है? वह अपने प्रधानमंत्री की बात भी भूल गये? क्या वह भी उस रंग में रंग गये हैं जिनमें आजकल बीजेपी, कांग्रेस और दूसरी पार्टियों के नेता रंग गये हैं? जहाँ किसी का किसी तरह का कोई लिहाज़ नहीं किया जाता। राजनीति में सामने वाले को परास्त करने के लिये कोई भी हथकंडा अपनाया जाता है। कोई भाषा बोलने से परहेज़ नहीं किया जाता। बस प्रतिद्वंद्वी को बेइज़्ज़त करना है। अगर वह भी इसी रंग में रंग गये हैं तो मुझे कुछ नहीं कहना। लेकिन अगर उनकी ज़ुबान फिसली है तो फिर उन्हें शालीनता से माफ़ी माँग लेनी चाहिये। 

मैं उन्हें याद दिलाना नहीं चाहता कि वह लाल बहादुर शास्त्री के परिवार से हैं जिन्होंने ताउम्र कभी किसी का अपमान नहीं किया। छोटा हो या बड़ा, हमेशा सबका सम्मान किया। सिद्धार्थ आप दूसरे बीजेपी के नेता की तरह नहीं बर्ताव कर सकते। शास्त्री जी की एक मर्यादा है। उनके कुछ मूल्य थे। आप मानें या न मानें पर लोग आपसे उम्मीद करते हैं कि उनके ख़ानदान का चिराग़ दूसरों जैसा नहीं बनेगा।

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आशुतोष
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