पीएनबी में करीब 14 हजार करोड़ रुपये के घोटाले में नीरव मोदी और उनके मामा मेहुल चोकसी आरोपी हैं। इस साल जनवरी में घोटाले का पर्दाफाश होने से पहले दोनों देश छोड़कर भाग गए। मेहुल ने एंटिगा की नागरिकता ले ली। अब भारत सरकार मेहुल के प्रत्यर्पण की कोशिश में जुटी है। हालांकि, एंटिगा सरकार ने कहा है कि वह इस पर विचार कर रही है, लेकिन इसने यह भी साफ़ कर दिया है कि कानून के तहत ही कार्रवाई की जाएगी। लेकिन मुश्किल यह है कि एंटिगा की कानूनी प्रक्रियाएं काफी जटिल हैं।
मेहुल चोकसी के प्रत्यर्पण में पेच है। एंटिगा के साथ भारत की प्रत्यर्पण संधि नहीं है। ऐसे में एंटिगा के साथ भारत के दोस्ताना रिश्ते भी कितने कारगर हो पाएंगे?
हालांकि, कॉमनवेल्थ का सदस्य देश होने से भारत इन्हीं प्रावधानों से प्रत्यर्पण के प्रयास में है। लेकिन यह कितना मुश्किल होगा, यह इंग्लैंड में रह रहे विजय माल्या के प्रत्यर्पण मामले से समझा जा सकता है। कॉमनवेल्थ देशों में इंग्लैंड के प्रत्यर्पण के नियम सबसे आसान हैं, फिर भी माल्या को वापस नहीं लाया जा सका है। पिछले 16 सालों में इंग्लैंड में प्रत्यर्पण के 28 मामले सौंपे गए, लेकिन अब तक किसी को भी देश में नहीं लाया जा सका है।
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तो इस कारण एंटिगा से प्रत्यर्पण आसान नहीं?
कानूनी मसलों के अलावा भी कुछ अड़चनें हैं। वह यह है कि एंटिगा की अर्थव्यवस्था मोटे तौर पर विदेशी निवेश पर निर्भर हैं। इसी वजह से एंटिगा में बड़ा निवेश करने वालों को आसानी से नागरिकता दे दी जाती है। इसके लिए कई अतिरिक्त सुविधाएं भी दी जाती हैं। ऐसे नागरिकों को सुरक्षा देने के लिए पुख्ता कानून हैं। एंटिगा के पासपोर्ट पर 149 देशों में बिना वीजा के जाया जा सकता है। यदि इन नियमों की अनदेखी की गई तो निवेशक हतोत्साहित होंगे, जो एंटिगा नहीं करना चाहेगा।मेहुल की नागरिकता को रद्द करना भी आसान नहीं है। एंटिगा सरकार ने पहले ही कह दिया है कि मेहुल चोकसी के बारे में नागरिकता देने से पहले सारी पड़ताल की गई। 2017 में पड़ताल के बाद उन्हें नागरिकता के लिए ठीक पाया गया। इंटरपोल का नोटिस कितना कारगर
सीबीआई ने इंटरपोल से भी संपर्क साधा। इंटरपोल ने मेहुल के ख़िलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी कर दिया है। हालांकि, एंटिगा इंटरपोल का एक सदस्य देश है, लेकिन इससे यह सुनिश्चित नहीं होता है कि गिरफ़्तारी होगी ही। देश के हज़ारों भगोड़ों के ख़िलाफ इंटरपोल के नोटिस जारी हुए हैं, लेकिन संबंधित देशों से प्रत्यर्पण नहीं होने के कारण अब तक उनकी गिरफ़्तारी नहीं हो पाई है। प्रत्यर्पण की कानूनी प्रक्रिया इतनी लंबी होती है कि इसमें बरसों लग जाते हैं।
नीरव ‘बड़ा गुनहगार’ तो मेहुल का क्या दोष?
पीएनबी का पूरा घोटाला क़रीब 14 हज़ार करोड़ रुपये का है। इसमें से क़रीब पांच हज़ार करोड़ रुपए के घपले का आरोप मेहुल चोकसी पर है। सीबीआई मेहुल चोकसी और उनकी 17 कंपनियों के ख़िलाफ आरोप-पत्र पेश कर चुकी है। इसमें आपराधिक षड्यंत्र और धोखाधड़ी के आरोप लगाए गए हैं। आरोप है कि फ़र्ज़ी लेटर ऑफ़ अंडरटेकिंग्स (एलओयू) के ज़रिए मेहुल ने यह घोटाला किया। यह एलओयू भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं से छोटी अवधि के लिए कर्ज़ लेने में काम आते हैं। कर्ज़ की राशि का भुगतान एलओयू जारी करने वाला बैंक करता है जिसे बाद में ग्राहक को चुकाना होता है।
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