तो सवाल है कि मेघालय में ऐसा क्या हो गया कि बीजेपी का प्रदर्शन ख़राब रहा। पीएम मोदी ने मेघालय चुनाव से पहले शिलांग में बड़ी रैली की थी। एनपीपी से नाता तोड़ने के बाद बीजेपी ने मेघालय की सभी 60 सीटों पर अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। मेघालय में बीजेपी की हार के कई कारण बताए जा रहे हैं। पार्टी के साथ कोई मजबूत क्षेत्रीय दल नहीं है। बीजेपी के पास त्रिपुरा-नगालैंड की तरह कोई सीएम चेहरा नहीं था। बीजेपी 5 साल सरकार में एनपीपी के साथ रही लेकिन चुनाव से पहले गठबंधन तोड़ लेने से उसको नुक़सान हुआ।
मेघालय और नगालैंड में क्षेत्रीय दलों की सहयोगी की भूमिका में रही भाजपा इस बार अपने बूते सत्ता पाने या कम से कम किंगमेकर बनने की भूमिका में आने की कवायद में जुटी रही थी। इन राज्यों के चुनाव अभियान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भाजपा के दिग्गज नेताओं ने जोर-शोर से चुनाव प्रचार किया था।
मेघालय और नगालैंड में एग्ज़िट पोल की भविष्यवाणी
आंकड़ों के लिहाज से देखें तो पिछली बार बीजेपी ने मेघालय में दो और नागालैंड में महज 12 सीटें जीती थीं। लेकिन वह दोनों जगह गठबंधन सरकार में शामिल थी।
इन दोनों राज्यों में कई समानताएँ हैं। पहली यह कि दोनों में विधानसभा की 60-60 सीटें हैं। दूसरी यह कि दोनों ईसाई बहुल राज्य हैं और तीसरी यह कि कांग्रेस का दौर खत्म होने के बाद यहां क्षेत्रीय दलों या गठबंधन की सरकार ही सत्ता में रही है। यह कहना ज्यादा सही होगा कि इन राज्यों में सरकार के गठन में क्षेत्रीय दलों और निर्दलीयों की भूमिका बेहद अहम होती है।
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