मीडिया में हेट स्पीच (नफरती भाषा) पर चिन्ता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार 21 सितंबर को कहा कि हमारा देश किस दिशा में जा रहा है। लाइव लॉ के मुताबिक हेट स्पीच के खिलाफ एक मजबूत रेगुलेटरी मेकेनिज्म की जरूरत पर जोर देते हुए, अदालत ने केंद्र सरकार से सवाल पूछा, जब यह सब हो रहा है तो वह एक मूक गवाह के रूप में क्यों खड़ी है।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस केएम जोसेफ और हृषिकेश रॉय की बेंच ने इस बारे में 11 याचिकाओं की सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं। इन याचिकाओं में नफरती भाषा को कंट्रोल करने का निर्देश देने की मांग की गई है। इनमें सुदर्शन न्यूज टीवी द्वारा प्रसारित "यूपीएससी जिहाद" शो, धर्म संसद की बैठकों में दिए गए भाषण के अलावा सोशल मीडिया पर फैलाए जा रहे नफरती संदेशों के रेगुलेशन की मांग की गई थीं। कोविड महामारी के दौरान मामले को साम्प्रदायिक बनाने का मुद्दा याचिका के जरिए उठाया गया है। इसमें एक याचिका वकील अश्विनी उपाध्याय की भी है।
लाइव लॉ के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कहा-
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टीवी पर, अभद्र भाषा को रोकना एंकरों का कर्तव्य है। टीवी एंकरों की यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है कि उनके शो में अभद्र भाषा की बाढ़ न आए। मुख्यधारा के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया पर सामग्री काफी हद तक अनियंत्रित है।
-सुप्रीम कोर्ट, 21 सितंबर को मीडिया में हेट स्पीच पर
जस्टिस के.एम. जोसफ ने टीवी के संदर्भ में कहा-
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हम नफरत को हवा नहीं दे सकते।
-जस्टिस के.एम. जोसफ, सुप्रीम कोर्ट में 21 सितंबर को
लाइव लॉ के मुताबिक अदालत ने इस बात पर हैरानी जताई कि केंद्र सरकार इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में फैलाई जाने वाली नफरत पर मूकदर्शक बनी हुई है। अदालत इस पर एक ऐसी संस्था बनाए, जिसकी बात मानना सभी के लिए आवश्यक हो। अदालत ने इस संबंध में सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा है। इस संबंध में लॉ कमीशन ने जो गाइलाइन जारी की थी, उसमें 29 में से सिर्फ 14 राज्यों ने जवाब दाखिल किया है। अदालत इस मामले की अगली सुनवाई 23 नवंबर को करेगी।
द हिन्दू अखबार की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट टीवी पर नफरत को रोकने के लिए अपनी तरफ से लगातार कोशिश कर रहा है। जनवरी 2021 में, तत्कालीन चीफ जस्टिस एस ए बोबडे ने कहा था कि टीवी पर नफरत पर लगाम कसना कानून और व्यवस्था के लिए उतना ही जरूरी था जितना कि पुलिसकर्मियों को लाठियों से लैस करना और हिंसा और दंगों को फैलने से रोकने के लिए बैरिकेड्स लगाना।
जस्टिस बोबडे ने उस समय कहा था कि निष्पक्ष और सच्ची रिपोर्टिंग आम तौर पर कोई समस्या नहीं है। समस्या तब होती है जब टीवी शो को दूसरों को उत्तेजित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे टीवी शो हैं जो निश्चित रूप से लोगों को उकसाने का प्रभाव रखते हैं, न केवल एक समुदाय के खिलाफ, बल्कि किसी भी समुदाय के खिलाफ ... आप उनके लिए अंधे क्यों हैं ... आप इसके बारे में कुछ नहीं करते हैं? पूर्व सीजेआई का यह जुमला सरकार को संबोधित था।
अदालत उस समय जमीयत उलमा-ए-हिंद द्वारा दायर याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि मीडिया के कुछ वर्गों ने तब्लीगी जमात वालों को कोविड -19 फैलाने से जोड़कर महामारी को भी सांप्रदायिक बना दिया था।
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