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चौरी-चौरा: 100 साल पहले जब हिंसक उठा था किसानों का शांतिपूर्ण प्रदर्शन

गणतंत्र दिवस के दिन जब किसानों की ट्रैक्टर परेड बेकाबू हो गई और हज़ारों किसान तयशुदा रूट छोड़ कर और पुलिस बैरिकेड तोड़ कर दिल्ली में दाखिल हो गए थे तो लोगों को बरबस चौरी-चौरा कांड की याद आई थी। यह भी कहा गया था कि किसान नेताओं को हिंसा की ज़िम्मेदारी लेते हुए इस आन्दोलन को फिलहाल रोक देना चाहिए। 

जिस चौरी-चौरा कांड की याद लोगों को ताज़ा हो गई, गुरुवार को उसके सौ साल पूरे हो गए। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले में यह कस्बा है, जहाँ 4 फरवरी 1922 को शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर रही किसानों की भीड़ उग्र हो उठी थी। गुस्साए किसानों ने पुलिस चौकी पर हमला कर उसमें आग लगा दी थी। इस कांड में 22 पुलिस वाले मारे गए थे। 

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असहयोग आन्दोलन

महात्मा गांधी ने 1 अगस्त, 1920, को असहयोग आन्दोलन छेड़ा, जिसके तहत विदेशी चीजों, ख़ास कर, मशीन से बने कपड़ों का बहिष्कार करना प्रमुख था। इसमें शिक्षण संस्थानों, अदालतों और प्रशासन का भी बायकॉट करना शामिल था। इसके एक-डेढ़ साल में इस आन्दोलन ने जोर पकड़ लिया और पूरे देश में बड़ी तादाद में स्वयंसेवक इससे जुड़ गए। 

साल 1921-22 की सर्दियों में कांग्रेस और ख़िलाफ़त आन्दोलन के कार्यकर्ताओं को मिला कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक बल का गठन किया गया। जनवरी, 1922 में गोरखपुर ज़िला के कांग्रेस और ख़िलाफ़त कमेटी के पदाधिकारियों ने एक बैठक की, जिसमें आन्दोलन तेज़ करने, चंदा एकत्रित करने और शराब की दुकानों पर धरना देने के कार्यक्रमों की रूपरेखा तय की गई। 

mahatma gandhi suspended non-cooperation movement after chauri-chaura  - Satya Hindi
असहयोग आन्दोलन 1920-22

क्या हुआ था आज से 100 साल पहले?

गोरखपुर की ज़िला पुलिस ने इन कार्यकर्ताओं से सख़्ती बरती। विदेशी कपड़ों की होली जलाने, शराब की दुकान बंद कराने और मांस-मछली की कीमत तय करने के मुद्दे पर प्रदर्शन हुआ, जिसमें सेना की नौकरी छोड़ कर आए कार्यकर्ता भगवान अहीर को पुलिस ने बुरी तरह पीटा था। 

शाहिद अमीन की किताब 'इवेंट, मेटाफ़र, मेमोरी-चौरी चौरा 1922-1992' के मुताबिक़,

कांग्रेस के स्वयंसेवकों ने 4 फ़रवरी को बैठक की और उसके बाद धरना देने के लिए निकल पड़े। वे जब मुंडेरा बाज़ार से जुलूस लेकर जा रहे थे, पुलिस ने हवा में गोलियाँ चलाईं। इसके बाद पुलिस ने भीड़ पर गोलियाँ दागीं, जिसमें तीन प्रदर्शनकारी मारे गए।

इस पर गुस्साई भीड़ ने पत्थर फेंके। पुलिस वाले डर कर थाने के अंदर घुस गए। इसके बाद लोगों ने थाने में आग लगा दी। 

भाग रहे पुलिस कर्मियों में से कुछ को उत्तेजित भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला, कुछ ने अपनी लाल पगड़ी फेंक कर जान बचाई। लोगों के गुस्से का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि उन लोगों ने पुलिस की फ़ेंकी लाल पगड़ी के चिथड़े-चिथड़े कर दिए। हथियार समेत पुलिस की पूरी संपत्ति नष्ट कर दी गई। थाने को नेस्तनाबूद कर देने को कुछ लोगों ने 'गांधी राज' आने की तरह समझा। 

अंग्रेजों की सख़्ती

अंग्रेजी प्रशासन ने इस पूरे मामले को सख़्ती से कुचला। बड़े पैमाने पर कार्यकर्ताओं की धर-पकड़ हुई, उन पर मुकदमे चलाए गए। जिन 225 कार्यकर्ताओं पर मुकदमा चलाया गया, उनमें से 172 को मौत की सज़ा सुनाई गई। अंत में 19 लोगों को फाँसी की सज़ा दे दी गई। 

mahatma gandhi suspended non-cooperation movement after chauri-chaura  - Satya Hindi

महात्मा गांधी इस वारदात से बुरी तरह परेशान हो गए। उन्होंने इस कांड की निंदा की और 12 फ़रवरी, 1922 को असहयोग आन्दोलन स्थगित कर दिया। चौरी- चौरा और आस पास की कमेटियों को भंग कर दिया गया, चौरी- चौरा मदद कोष की स्थापना की गई और गांधी जी ने 'प्रायश्चित' करने का निर्णय किया। 

क्या कहना था नेहरू का?

जवाहरलाल नेहरू ने 1936 में प्रकाशित अपनी आत्मकथा 'एन ऑटोबायोग्राफ़ी' में लिखा कि किस तरह वे लोग ताज्जुब में पड़ गए थे कि जिस समय आन्दोलन अपनी जड़ें जमा रहा था और ज़्यादा से ज़्यादा लोग इससे जुड़ रहे थे, गांधी ने इसे स्थगित कर दिया। नेहरू ने लिखा कि खुद उन्हें गांधी जी के इस कदम पर बहुत गुस्सा आया था, लेकिन जेल में बंद वे लोग कर ही क्या सकते थे? 

मोती लाल नेहरू, चित्तरंजन दास और सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं ने गांधी जी के इस फ़ैसले पर अचरज जताया था। 

महात्मा गांधी ने का कहना था कि अहिंसक आन्दोलन में उनकी आस्था अटूट है। उन्होंने 'यंग इंडिया' के 16 फरवरी, 1922, के अंक में लिखा था,

'मैं आन्दोलन को हिंसा से दूर रखने के लिए हर तरह का अपमान, यंत्रणा और अकेले पड़ जाने को सहने को तैयार हूँ।"


महात्मा गांधी, 'यंग इंडिया'. 16 फरवरी, 1922

क्या कहना है कि इतिहासकारों का?

इतिहासकार बिपिन चंद्र पाल का मानना था कि गांधी जी का असहयोग आन्दोलन इस पर टिका हुआ था कि अहिंसक आन्दोलन को कुचलने से ब्रिटिश साम्राज्यवाद अंदर से कमज़ोर होगा, चौरी चौरा कांड इस मक़सद के उलट था। पाल ने यह भी लिखा कि टकराव मोल नहीं लेने की नीति गांधी जी की रणनीति का हिस्सा थी, यह विश्वासघात नहीं था। 

लेकिन चौरी चौरा कांड के बाद असहयोग आन्दोलन को स्थगित कर देने से कई लोगों ख़ास कर युवाओं को यह संकेत गया कि अहिंसक आन्दोलनों से देश को आज़ाद नहीं कराया जा सकता है। 

क्रांतिकारी युग की शुरुआत

इसके बाद ही क्रांतिकारी युग की शुरुआत हुई और रामप्रसाद बिस्मिल, सचिन सान्याल, जोगेश चटर्जी, अशफ़ाकउल्ला ख़ान, जतिन दास, भगत सिंह, सूर्य सेन जैसे क्रांतिकारियों का उद्भव हुआ। 

कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दो महीने से चल रहे शांतिपूर्ण आन्दोलन के दौरान चौरी चौरा कांड की याद आना स्वाभाविक है। लेकिन सवाल यह उठता है कि किसान नेता इससे क्या शिक्षा लेंगे और आगे आन्दोलन को किस तरह अहिंसक बनाए रखेंगे। 

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क़मर वहीद नक़वी
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