मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार मेडिकल की पढ़ाई हिन्दी में कराने जा रही है। रविवार को देश के गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने एमबीबीएस के प्रथम वर्ष के हिन्दी सिलेबस का विमोचन भोपाल में किया। इस आयोजन में केन्द्र के शिक्षा, स्वास्थ्य और आयुष मंत्री अथवा इन तीनों में से किसी एक को भी आखिर क्यों नहीं बुलाया गया? यह बड़ा सवाल आम और खास लोगों के मन-मस्तिष्क में कौंध रहा है।
दर्शनशास्त्र में गोल्ड मेडल के साथ मास्टर्स की डिग्री अर्जित करने वाले शिवराज सिंह चौहान 29 नवंबर 2005 से राज्य के मुख्यमंत्री हैं। चौथी बार मुख्यमंत्री पद का निर्वहन कर रहे शिवराज सिंह लंबे वक्त से इस प्रयास में थे कि मेडिकल की पढ़ाई हिन्दी में करवाई जाये। प्रयास सार्थक हो गये हैं।
एमबीबीएस प्रथम वर्ष की एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री के अंग्रेजी सिलेबस को हिन्दी में परिवर्तित कर दिया गया है। इन विषयों के हिन्दी पाठ्यक्रम वाली पुस्तकों का विमोचन भोपाल के लाल परेड मैदान पर किया गया।
मध्य प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता और एमबीबीएस डॉक्टर, हितेष वाजपेयी शिवराज सरकार के हिन्दी में मेडिकल शिक्षा के नवाचार को मेडिकल शिक्षा का नया भविष्य बताते हैं। उनका कहना है, ‘हिन्दी सिलेबस भाषा के तनाव को कम करेगा। आने वाले समय में एलोपैथी का शब्दकोष गढ़ने की बड़ी चुनौती जरूर सामने होगी।’
नज़ीर पेश करने वाले इस आयोजन से केन्द्र के शिक्षा, स्वास्थ्य और आयुष मंत्री को दूर रखे जाने के सवाल के जवाब में डॉक्टर वाजपेयी ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘मंत्रिमंडल में रहने वाले हरेक मंत्री की सामूहिक जिम्मेदारियां होती हैं। नई शिक्षा नीति लागू करने के समय भी इस तरह का सवाल उठा था, जब अमित शाह ने नई शिक्षा नीति को शुरू कराने में अहम भूमिका अदा की थी। भाषण दिया था।’
जब उनसे पूछा गया कि मंच पर केन्द्र का कोई एक (शिक्षा, स्वास्थ्य और आयुष) मंत्री आ जाता तो कोई कठिनाई हो जाती?, वाजपेयी ने कहा, ‘मध्य प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग पूरे आयोजन को लीड कर रहे हैं।’
‘शिवराज बतायें किताबें छप गई हैं क्या?’
मध्य प्रदेश कांग्रेस मीडिया सेल के प्रमुख के.के.मिश्रा ने जलसे में केवल अमित शाह की उपस्थिति होने पर कहा, ‘भाजपा की सरकार अपने जलसे में किसे मेहमान बना रही है, यह उनका अपना दृष्टिकोण और विशेषाधिकार है।’
वे आगे कहते हैं, ‘सैद्धांतिक तौर पर सोचा और विचार किया जाये तो इस आयोजन में केन्द्र के संबंधित विभागों के मंत्रियों की उपस्थिति, राज्य एवं एमबीबीएस शिक्षा को हिन्दी में करने से जुड़ी सोच को मजबूती प्रदान करती। केन्द्रीय मंत्री इस मामले से जुड़ा अपने विभाग का दृष्टिकोण मंच से शेयर करते तो जरूर बेहतर संदेश और विचार निकलकर आता।’
मिश्रा कहते हैं, ‘अगले साल विधानसभा के चुनाव हैं। शिवराज सिंह और भाजपा अपने अस्तित्व को बचाने की जुगतबाज़ी में लगे हैं। इवेंटों के माध्यम से वोटरों को बरगलाना भाजपा का शगल है। यही शिवराज और भाजपा कर रही है, हालांकि आगे यह सब चलने वाला नहीं है। जनता इवेंट की राजनीति को पहचान चुकी है।’
मिश्रा कहते हैं, कुछ साल पहले शिवराज सिंह सरकार ने जनता जर्नादन की मेहनत की कमाई का 250 करोड़ रुपया बहाकर भोपाल में विश्व हिन्दी सम्मेलन का बड़ा इवेंट किया था। मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज ने घोषणा की थी कि सचिवालय में सारा काम हिन्दी में करेंगे। आज तक उस घोषणा पर अमल नहीं हुआ है? अधिकांश कामकाज अंग्रेजी में ही हो रहा है।
के.के.मिश्रा ने सवाल किया, ‘शिवराज सिंह बतायें जिस सिलेबस का विमोचन होने जा रहा है, उसकी पुस्तकें छप गई हैं? बाजार में कब तक आ रही हैं?’
‘सरकार किसी को भी बुलाये!’
भोपाल के शासकीय जयप्रकाश चिकित्सालय के अधीक्षक पद से रिटायर हुए सीनियर डॉक्टर सुरेन्द्र सक्सेना का कहना है, ‘मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य महकमे की दुर्दशा किसी से छिपी हुई नहीं है। स्वास्थ्य महकमे की कई सारी शाखाएं हैं। हरेक शाखा का हेड नौकरशाह है। जिलों में हेल्थ डिपार्टमेंट का सर्वेसर्वा कलेक्टर और तहसीलों में तहसीलदार है। इन्हीं के अंडर में डॉक्टर को काम करना होता है। जब डॉक्टरी या मेडिकल पेशे की आवश्यकताओं के बारे में ये ज्यादा जानते नहीं हैं, अन्य कामों में व्यस्तताएं ज्यादा हैं तब ढर्रा सुधरने की उम्मीद बेईमानी है।’
वे सवाल खड़ा करते हुए आगे कहते हैं, ‘इसीलिये कह रहा हूं, एमबीबीएस की पढ़ाई हिन्दी में कराये जाने के जलसे में राज्य की सरकार किसी को भी बुलाये, कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है!’
हिन्दी में एमबीबीएस की पढ़ाई को लेकर डॉक्टर सक्सेना की चिंता दूसरी है। उनका कहना है, ‘हरेक रिसर्च अंग्रेजी में होती है। मध्य प्रदेश में बच्चा हिन्दी में पढ़ेगा तो अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर स्वयं को सिद्ध नहीं कर पायेगा। विदेश में पढ़ने और इंटरनेशनल फोरम पर स्वयं को साबित करने की उसकी इच्छा अधूरी रह जायेगी।’
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