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Citizenship Amendment Bill, 2019 passed in Lok Sabha with 311 'ayes' & 80 'noes'. https://t.co/InH4W4dr4F pic.twitter.com/Nd4HpkjlEo
— ANI (@ANI) December 9, 2019
सोमवार रात को हुई चर्चा में विधेयक को लेकर विपक्षी दलों के नेताओं के सवालों का जवाब देते हुए शाह ने कहा कि नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस (एनआरसी) और इस विधेयक को आपस में न जोड़ा जाए। शाह ने कहा कि एनआरसी से जुड़े सवालों का भी वह जवाब देंगे।
शाह ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा कि कांग्रेस ऐसी सेक्युलर पार्टी है जो केरल में मुसलिम लीग के साथ है जबकि महाराष्ट्र में इसकी सहयोगी शिवसेना है।
शाह ने पूर्वोत्तर में विधेयक के विरोध को लेकर उठे सवालों का जवाब देते हुए कहा, ‘अरुणाचल प्रदेश और मिज़ोरम इनर लाइन परमिट से सुरक्षित हैं और उन्हें इस विधेयक को लेकर डरने की ज़रूरत नहीं है। दीमापुर के छोटे इलाक़े को छोड़कर पूरा नगालैंड इनर लाइन परमिट से सुरक्षित है, इसलिए उन्हें भी डरने की ज़रूरत नहीं है।’ गृह मंत्री ने कहा कि रोहिंग्या बांग्लादेश से होते हुए आते हैं। उन्होंने कहा कि रोहिंग्या को कभी भी स्वीकार नहीं किया जाएगा।
शाह ने कहा कि शरणार्थी और घुसपैठिए में अंतर होता है। जो लोग धार्मिक प्रताड़ना के कारण और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए भारत में आये हैं वे शरणार्थी हैं और जो यहां अवैध रूप से आये हैं, वे घुसपैठिए हैं। शाह ने कहा, ‘पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर हमारा है और वहां के लोग भी हमारे हैं। आज भी हमने जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में 24 सीटें उनके लिए आरक्षित की हैं।’
विधेयक के पास होने के बाद कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि यह भारत के संविधान के लिए काला दिन है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक पूरी तरह मुसलमानों के ख़िलाफ़ है।
विधेयक पर चर्चा के दौरान कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि यह विधेयक असंवैधानिक है और समानता के मूल अधिकार के ख़िलाफ़ है। तिवारी ने कहा कि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 15, अनुच्छेद 21, अनुच्छेद 25 और 26 के ख़िलाफ़ है। कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने कहा कि यह विधेयक असम समझौते का उल्लंघन करता है। एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि सेक्युलरिज्म देश के मूलभूत ढांचे का हिस्सा है और यह विधेयक संविधान के ख़िलाफ़ है।
बीजेपी के नेतृत्व वाली पिछली एनडीए सरकार ने बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान से आने वाले ग़ैर मुसलिमों, ख़ासकर हिंदू आप्रवासियों को भारत की नागरिकता देने की बात की थी। दूसरी बार सरकार बनते ही बीजेपी ने तीन तलाक़, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद इसे अपने एजेंडे में प्राथमिकता से रखा है।
विधेयक को लेकर केंद्र सरकार का तर्क यह है कि इन देशों में हिंदुओं समेत दूसरे अल्पसंख्यकों का काफ़ी उत्पीड़न होता है, जिसके कारण वे भागकर भारत में शरण लेते हैं और मानवीय आधार पर ऐसे शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जानी चाहिए। सरकार का कहना है कि इसीलिए नागरिकता विधेयक लाया गया और इसमें इन देशों से आए हिंदू, सिख, जैन, पारसी, ईसाईयों को नागरिकता देना तय किया गया। इन देशों से आए मुसलिम शरणार्थियों को नागरिकता क़ानून से बाहर रखने के पीछे सरकार का तर्क यह है कि इन मुसलिम देशों में धर्म के आधार पर मुसलमानों का उत्पीड़न नहीं हो सकता।
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