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छठे चरण में जीते तो जीते, हारे तो हारेः यह राउंड NDA और इंडिया के लिए क्यों खास

लोकसभा के पांच चरणों का चुनाव पूरा हो चुका है और सिर्फ दो चरण बाकी हैं। छठे चरण का चुनाव 25 मई को हो रहा है। आंकड़ों के मद्देनजर अगर देखें तो 2019 में पांचवें चरण तक, भाजपा ने 238 सीटें जीती थीं। यानी पांच चरणों में उसे जितनी सीटें मिली थीं, उससे उसकी सरकार नहीं बनने जा रही थी। उसकी सरकार तभी बन सकी जब वो अंतिम चरणों में बेहतर प्रदर्शन कर सकी थी। सरकार बनने या न बनने की कुंजी इन्हीं दो चरणों में है। इसलिए छठा और सातवां यानी अंतिम चरण एनडीए और इंडिया गठबंधन के लिए महत्वपूर्ण हैं।

छठे दौर में भाजपा सबसे ज्यादा 51 सीटों पर, उसके घटक में आने वाली जेडीयू 4 और ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन 1 सीट पर चुनाव लड़ रही है। वहीं कांग्रेस 25 सीटों, सपा 12 सीटों, आम आदमी पार्टी (आप) 5 सीटों, आरजेडी 4, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) 9, बीजू जनता दल (बीजेडी) 6, और बसपा 54 सीटों पर लड़ रही है।

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2019 के छठे चरण की बात अगर की जाए तो भाजपा का प्रदर्शन सुपर था। 2019 में भाजपा ने 53 सीटों में 40 पर जीत हासिल की थी। कांग्रेस जिन 44 सीटों पर लड़ी थी, उसे एक भी सीट नहीं मिली। एनडीए ने कुल मिलाकर 45 सीटें जीतीं थी। इंडिया गठबंधन हालांकि तब नहीं बना था लेकिन कुलमिलाकर 13 सीटें जीती थीं। लेकिन 2009 में कांग्रेस ने 58 सीटों में से 22 सीटें जीती थीं, जबकि भाजपा सिर्फ सात सीटें हासिल कर पाई थी। एनडीए की औसत जीत का अंतर 21% था, जबकि विपक्षी दलों की औसत जीत का अंतर 12% था। 
औसत जीत हार का अंतर बहुत मायने रखता है। 2019 में भाजपा का कुल मिलाकर स्ट्राइक रेट 69 फीसदी था। 29 सीटों पर औसत जीत का अंतर 10% वोटों से ज्यादा था, जबकि 11 सीटों पर यह इससे कम था। 2014 और 2019 दोनों में इस चरण की सीटों पर औसत मतदान लगभग 64% था। यानी ज्यादा मतदान पर भाजपा को फायदा हुआ था। इस बार वोटिंग वाले दिन मतदान प्रतिशत तो कम पिछली बार के मुकाबले कम आया। लेकिन चुनाव आयोग ने बाद में अंतिम आंकड़ों को बदला और मतदान प्रतिशत बढ़ा दिया। मतदान प्रतिशत को इस तरह घटाने-बढ़ाने पर सवाल उठ रहे हैं। चुनाव आयोग की विश्वसनीयता तेजी से गिर रही है।
इन तथ्यों से क्या संकेत निकलता है। संकेत यही है कि भाजपा को 2024 चुनाव के बाकी बचे दो चरणों में अपना 2019 का प्रदर्शन बरकरार रखना होगा। उसे यूपी, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में बढ़त हासिल करनी होगी। लेकिन भाजपा घबराई दिख रही है। इससे उसके पिछले पांच चरणों के अनुभव का पता चलता है। 10 सीटों वाले राज्य हरियाणा से तो खबरें पहले से ही खराब आ रही है। यूपी में राहुल-अखिलेश की जोड़ी भीड़ खींच रही है। बंगाल में सभी चरणों में जबरदस्त वोटिंग हुई है। कहा जा रहा है कि ममता बनर्जी अपना पिछला प्रदर्शन दोहरा न दें तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए। ओडिशा का हाल अजब है। बीजेडी एनडीए में भी न होकर एनडीए में है। यानी भाजपा ओडिशा में सीट बढ़ाती है तो वो उसके लिए वरदान होगा लेकिन अगर बीजेडी ज्यादा सीटें लाती है तो भी वो अवसरवादियों की तरह भाजपा सरकार को ही केंद्र में समर्थन दे सकती है।
हरियाणा में भाजपा को जाटों ने खून के आंसू रुला दिए हैं। राज्य में जाटों की आबादी 27 फीसदी है। किसान आंदोलन और महिला पहलवानों के आंदोलन ने सभी 10 सीटों पर भाजपा के खिलाफ माहौल बना दिया है। गांवों में भाजपा उम्मीदवारों की रैलियां तक नहीं हो सकीं। पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर को कई गांवों में काले झंडे दिखाए गए। कांग्रेस हरियाणा में अपने पारंपरिक जाट-दलित-मुस्लिम वोट को साधने का प्रयास कर रही है। ये तीनों समुदाय मिलकर राज्य की आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं। हालांकि भाजपा को जाट वोट कांग्रेस, इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के बीच बंटने की उम्मीद है और इसी में उसे अपनी जीत दिख रही है। लेकिन क्या जाट तमाम पार्टियों में बंटकर वोट करेंगे। फिलहाल ऐसा लग नहीं रहा है।

इस बार सरकार बनने बिगड़ने के खेल में बिहार की भी भूमिका रहेगी। 2019 में एनडीए ने सभी आठ सीटें (4 भाजपा को, 3 जेडीयू को, और 1 लोक जनशक्ति पार्टी को) औसतन 26% के शानदार अंतर से जीतीं थीं। लेकिन आरजेडी इस बार भाजपा सहित एनडीए के घटक दलों से कड़ा मुकाबला कर रही है। तेजस्वी यादव युवकों में काफी लोकप्रिय हैं। 2020 के विधानसभा चुनावों में भी आरजेडी ने कड़ी टक्कर दी थी। बिहार में जातीय समीकरण बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। लेकिन जिस तरह दलितों और मुस्लिमों का वोट पैटर्न सामने आया है, उसने भाजपा और जेडीयू की नींद उड़ा दी है।

इस बार सीन और समीकरण दोनों बदले हुए हैं। सबसे ज्यादा 80 सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश में इस बार कांग्रेस और सपा का समझौता है। पिछले चुनाव यानी 2019 में सपा और बसपा मिलकर चुनाव लड़े थे। 2019 में यूपी में कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत ही खराब रहा था और वो सिर्फ रायबरेली सीट हासिल कर सकती थी। सपा-बसपा गठबंधन को 15 सीटें मिली थीं, जिसमें सपा की 5 और बसपा की 10 सीटें शामिल हैं। लेकिन इस बार समीकरण बदलने की आंच भाजपा शिद्दत से महसूस कर रही है। इस बार छठे चरण में 14 सीटों पर चुनाव हो रहा है। 2019 में भाजपा ने इन 14 सीटों में से 12 पर जीत हासिल की थी। इन 12 सीटों में से सात पर 10% से कम वोट अंतर के साथ जीत मिली थी। यानी सात सीटों पर करीबी मुकाबला था। मछलीशहर में तो महज 181 वोटों से जीत हुई थी। पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में दलित आबादी है और यहां सपा और बसपा का प्रदर्शन काफी हद तक नतीजों को प्रभावित कर सकता है। सपा अपनी बदली हुई रणनीति से गैर-यादवों, ओबीसी और जाटवों को लुभाने में कामयाब रही है। लेकिन भाजपा के सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP), संजय निषाद की निषाद पार्टी और अपना दल जैसे छोटे दल भी भूमिका निभाएंगे। यानी मुकाबला कांटे का है। यह नहीं कहा जा सकता कि भाजपा को कहीं भी बढ़त हासिल है।

दिल्ली कितनी दूर

दिल्ली में भी चुनावी समीकरण बदले हुए हैं। 2019 में भाजपा ने यहां सभी सात सीटें जीती थीं। लेकिन तब त्रिकोणीय मुकाबला था। जिसमें भाजपा, कांग्रेस और आप ने आपस में टकराव का रास्ता अपनाया था। इस बार कांग्रेस और आप का गठबंधन है। आप चार सीटों पर और कांग्रेस तीन सीटों पर चुनाव लड़ रही है। बीच में आप प्रमुख अरविन्द केजरीवाल को कथित शराब घोटाले में जेल भेजा गया। वो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर चुनाव प्रचार करने बाहर आए। केजरीवाल के लिए दिल्ली में सहानुभूति लहर है। विश्लेषक कहते हैं कि दिल्ली में 36 फीसदी ऐसे मतदाता हैं जो किसी भी तरह झुक सकते हैं। लोकसभा और विधानसभा में उनकी पसंद भी अलग होती है। लोकसभा में वो राष्ट्रीय पार्टी को वोट देते हैं तो विधानसभा में उनकी पसंद आप होती है। 2019 में भाजपा और कांग्रेस को 18-18 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में अकेले आप को 36 फीसदी वोट मिले। इसका मतलब क्या हुआ, इसका मतलब यह हुआ कि कांग्रेस और आप के मामले में इस बार मतदाता यही पैटर्न अपनाते हैं तो भाजपा को परेशानी होगी।

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बंगाल में क्या फिर खेला होबे

पश्चिम बंगाल की 8 सीटों पर 2019 के चुनाव में भाजपा का दबदबा रहा था। भाजपा ने 5 और टीएमसी ने 3 सीटें जीती थीं। जंगल महल के नाम से मशहूर इस इलाके की कांथी और तमलुक जैसी सीटों पर शुवेंदु अधिकारी परिवार का कब्जा रहा है और है। लेकिन 2019 में शुवेंदु अधिकारी के परिवार ने दोनों सीटें टीएमसी में रहते हुए जीती थीं। वही शुवेंदु अधिकारी अब भाजपा में हैं। वो खुद नेता प्रतिपक्ष हैं और उनके छोटे भाई को भाजपा ने टिकट दिया है। शुवेंदु के पिता भी यहां से सांसद रहे हैं। भाजपा अधिकारी परिवार के दबदबे के आधार पर सभी 8 सीटें जीतने का दावा कर रही है, जो इतना आसान भी नहीं है। लेकिन एक महत्वपूर्ण आंकड़ा बता रहा है कि 2019 में भाजपा ने पांचों सीट 10 फीसदी अंतर से जीती थीं यानी मुकाबला बहुत नजदीकी था। इस बार ममता ने क्या रणनीति अपनाई है, कोई नहीं जानता। लेकिन जिस तरह से सबसे ज्यादा वोट बंगाल में डाले जा रहे हैं, उससे टीएमसी उत्साहित है।
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क़मर वहीद नक़वी
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