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लॉकडाउन में ज़िंदगियाँ कराह रही हैं लेकिन अपराध, आत्महत्याएँ, सड़क हादसे कम हुए

कोरोना वायरस महामारी के बाद लागू किए गए लॉकडाउन के बाद करोड़ों लोगों की नौकरियाँ गईं, दूसरे राज्यों में फँसे करोड़ों मज़दूर संकट में हैं, ग़रीबों के सामने भूखे रहने की स्थिति आ गई है और घरों में बंद दूसरे लोगों की ज़िंदगियाँ भी कराह रही हैं, लेकिन इसी लॉकडाउन के कारण दूसरे अनपेक्षित फ़ायदे भी हुए हैं। अपराध कम हो गए हैं, सड़क हादसों और इसमें घायल व मरने वालों की संख्या में कमी आई है, आत्महत्याएँ कम हुई हैं और थानों में रिपोर्ट दर्ज होने के मामलों में भी कमी आई है। हालाँकि, यह आधिकारिक तौर पर सरकार की तरफ़ से आँकड़ा जारी नहीं किया गया है, लेकिन एक मीडिया रिपोर्ट में यह बात कही गई है। 

हो सकता है कि लॉकडाउन के दौरान अपराध, सड़क हादसों, आत्महत्याएँ और हिंसा के मामलों के आँकड़े सरकार की तरफ़ से बाद में जारी हो, लेकिन फ़िलहाल 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने इस पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसमें देश भर के आँकड़े तो नहीं हैं, लेकिन कई राज्यों के आँकड़ों, पुलिस थानों में दर्ज रिपोर्ट, हॉस्पिटलों में आने वाले घायलों और पुलिस अधिकारियों के आकलन का ज़िक्र है।

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रिपोर्ट के अनुसार, केरल के तिरुअनंतपुरम में राज्य अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के उप अधीक्षक करुणाकरण ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान अपराध में कमी आई है। उन्होंने कहा, 'हमने पिछले साल की तुलना में इस साल 25 मार्च से 14 अप्रैल की अवधि में हत्या के मामलों में 40% की गिरावट देखी। इसी तरह, बलात्कार के मामलों में 70% और महिलाओं और बच्चों के ख़िलाफ़ हिंसा के मामलों में 100% गिरावट आई है। चूँकि अभी सड़क पर कम वाहन हैं तो स्वाभाविक है कि दुर्घटनाएँ भी कम हुई हैं।'

केरल में इस 21 दिन में सिर्फ़ 105 दुर्घटनाएँ रिपोर्ट की गई हैं जबकि पिछले साल इस अवधि में यह 1787 थी। इस साल इस अवधि में ऐसे हादसों में 13 लोगों की जानें गईं जबकि पिछले साल 185 लोग मारे गए थे।

पुलिस के अनुसार पिछले साल जहाँ इसी अवधि में 13 हत्याएँ हुई थीं वहीं इस साल 8 हुई हैं। पिछले साल जहाँ 851 लोग ग़ायब हुए थे वहीं इस साल 132 ग़ायब हुए हैं। 2019 में इस अवधि में जहाँ 445 लोगों ने आत्महत्याएँ की थीं वहीं इस साल यह संख्या 132 है। इस साल लॉकडाउन के दौरान 21 दिन में 630 असामयिक मौतें हुईं वहीं पिछले साल इस दौरान 1052 लोगों की ऐसी मौतें हुई थीं।

'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, असम में पुलिस का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान कर्फ्यू जैसी स्थिति होने के कारण अपराधी सामान्य दिनों की तरह अपराध नहीं कर रहे हैं। ढूबरी ज़िला के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कहते हैं कि इस ज़िले में अपराध के मामले काफ़ी ज़्यादा होते हैं, लेकिन लॉकडाउन के बाद इसमें काफ़ी कमी आई है। नगाँव ज़िले के एसपी अभिजीत गुरव कहते हैं कि हाइवे पर लूट, स्नैचिंग, ड्रग से जुड़े अपराध तो कम हुए ही हैं, सड़क दुर्घटनाएँ भी 7-10 फ़ीसदी कम हुई हैं। 

मणिपुर में इंफ़ाल पश्चिम के पुलिस प्रमुख के मेघचंद्र कहते हैं कि लॉकडाउन के बाद हमला, हत्या या दुर्घटना की कोई भी एफ़आईआर दर्ज नहीं हुई है। ऐसा तब है जब सामान्य दिनों में हर रोज़ कम से कम 2 मामले तो आते ही थे।

तेलंगाना में क़रीब 60 फ़ीसदी अपराध की दर कम हो गई है। आधिकारिक आँकड़े बताते हैं कि राज्य में 2019 में 22 मार्च से 22 अप्रैल के बीच 16 हज़ार 942 मामले दर्ज किए गए थे। इस साल इसी अवधि के दौरान यह संख्या 6 हज़ार 923 हो गई है।

इस साल जो रिपोर्ट दर्ज हुई हैं उनमें भी लॉकडाउन के उल्लंघन, फ़ेक सैनेटाइजर बनाने, खाद्य पदार्थों में मिलावट और शराब बेचने के मामले शामिल हैं। इस साल 455 सड़क दुर्घटनाएँ हुईं जबकि पिछले साल इसी अवधि के दौरान 1749 दुर्घटनाएँ हुई थीं।

राज्य में रेलवे के ट्रैक पर हर महीने क़रीब 40 आत्महत्याओं के केस आते थे, लेकिन अप्रैल महीने में ऐसी 6 मौतें दर्ज की गई हैं। जनवरी और फ़रवरी में जहाँ 3395 और 2138 मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किए गए थे वहीं 25 मार्च से 27 अप्रैल के बीच सिर्फ़ 132 मृत्यु प्रमाण पत्र ऑनलाइन वेबसाइट पर अपलोड किए गए हैं। हालाँकि इसको लेकर अधिकारी ही कह रहे हैं कि लॉकडाउन की वजह से लोग मृत्यु प्रमाण पत्र बनाने के लिए कार्यालय नहीं पहुँच रहे हैं और इसमें उन्हें काफ़ी दिक्कतें हो रही हैं। 

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कर्नाटक के बेंगलुरु में सेंट पीटर्स फ्यूनरल अंडरटेकर के जॉर्ज विन्सेंट का कहना है कि कोरोना वायरस महामारी से पहले अंतिम संस्कार के लिए हर रोज़ कम से कम 8 शव लाए जाते थे जो अब अधिक से अधिक 3 ही लाए जाते हैं।

हॉस्पिटलों में सड़क हादसे में घायल लोगों की संख्या कम हो गई है। बेंगलुरु के एसीई सुहास हॉस्पिटल के मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. जगदीश हिरेमाथ ने कहा कि पहले इंडस्ट्रीयल दुर्घटनाओं के कम से कम 10 मामले और सड़क हादसे के मामले भी आते थे। लेकिन लॉकडाउन के बाद से हॉस्पिटल में ऐसा कोई भी केस नहीं आया है। कोचि के एमएजे हॉस्पिटल में भी ऐसी ही स्थिति है। त्रिपुरा में कोरोना वायरस के लिए राज्य के नोडल अधिकारी कहते हैं कि ओपीडी में भी संख्या काफ़ी कम हो गई है। उनके अनुसार जीबी पंत हॉस्पिटल में जहाँ सामान्य रूप से 1200 से 1500 ओपीडी के मरीज़ आते थे वे घटकर 600-650 रह गए हैं।

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