कोरोना वायरस रोकने के लिए लॉकडाउन का असर स्वास्थ्य, सामाजिक और आर्थिक स्तर पर ही नहीं पड़ेगा, इसका मनोवैज्ञानिक पहलू भी है। आर्थिक दिक्क़तों और सामाजिक परेशानियों का असर लोगों के मनोविज्ञान और मानसिकता पर भी पड़ेगा, यह लाज़िमी है।
वित्तीय असुरक्षा का असर
ज़ेन लैबोरेटरीज़ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी संजय धीर ने इंडिया टुडे से बातचीत में कहा, 'कर्मचारियों के मन पर वित्तीय असुरक्षा का गहरा असर होगा, नियोक्ताओं को बग़ैर काम के ही वेतन देना होगा, उससे उनकी पेरशानियाँ बढ़ेंगी।'चंडीगढ़ के वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक रवींद्र देओल का मानना है कि ऐसी स्थिति में जब आप बाहर नहीं जा पाते हैं, पहला साइड इफेक्ट यह होता है कि आप कुंठित होते हैं क्योंकि आप जो करना चाहते हैं, नहीं कर पाते हैं।
मनोवैज्ञानिक दबाव
उन्होंने इंडिया टुडे से कहा, 'मनुष्य सामाजिक जीव है, समूह में रहने वाला है, आप लोगों से मिलना चाहते हैं, उनसे बात करना चाहते हैं और आप यह भी चाहते हैं कि लोग आपसे मिलें, बात करें। इस पर रोक लगा दी गई है। यह किसी के लिए ठीक नहीं है।'खालीपन का अहसास
रवींद्र देओल ने कहा कि इतना ही नहीं, बुजुर्गों और काम करने वाले पेशेवरों पर भी लॉकडाउन का असर पड़ना तय है।लोगों में एक तरह की कमी का भाव, एक तरह का खालीपन उभरता है। वे मोबाइल फोन से लोगों से संपर्क कर सकते हैं, पर यह पर्याप्त नहीं है। इससे उनमें भी कुंठा पनपती है।
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