प्रशांत भूषण से जुड़े अवमानना मामले में जिस तरह से स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई की गयी है उस पर अब बार एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया ने गहरी चिंता जताई है। इस मामले में इसने मंगलवार को एक बयान जारी किया है। एसोसिएशन ने कहा है कि जैसे यह अवमानना कार्रवाई की गई है उससे संस्था की प्रतिष्ठा बने रहने से ज़्यादा नुक़सान पहुँचने की संभावना है। इसने कहा है कि कुछ ट्वीट से सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा को नुक़सान नहीं पहुँचाया जा सकता है। इससे पहले 1500 से ज़्यादा वकीलों ने भी प्रशांत भूषण के समर्थन में बयान जारी किया है।
बार एसोसिएशन ने बयान में कहा है कि जब कोर्ट ने इस मामले को संज्ञान में लिया था तब इसने अपना पक्ष सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया था, लेकिन ग़लती से सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने इसे शामिल नहीं किया। एसोसिएशन ने कहा है कि उसमें बार के बोलने की ड्यूटी से जुड़ी धारा का भी उल्लेख था। उसमें कहा गया है, 'न्यायपालिका, न्यायिक अधिकारियों व न्यायिक आचरण से संबंधित संस्थागत और संरचनात्मक मामलों पर टिप्पणी करना सामान्य रूप से न्याय प्रशासन और एक ज़िम्मेदार नागरिक के तौर पर भी वकीलों की ड्यूटी है।' प्रशांत भूषण ने एसोसिएशन के इस बयान को ट्वीट किया है।
Bar Association of India is "deeply dismayed by the manner of exercise of Suo Moto contempt jurisdiction by the SC against a member of the legal profession" pic.twitter.com/dkY1NLsdRm
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) August 18, 2020
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट अवमानना मामले में दोषी ठहराए गए प्रशांत भूषण के समर्थन में बार के वरिष्ठ सदस्य सहित देश भर के 1500 से ज़्यादा वकील सामने आए। उन्होंने प्रशांत भूषण के पक्ष में बयान जारी किया है और कोर्ट से अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है ताकि 'न्याय की हत्या' न हो। बयान में वकीलों ने कहा कि 'अवमानना के डर से खामोश' बार से सुप्रीम कोर्ट की 'स्वतंत्रता' और आख़िरकर 'ताक़त' कम होगी। प्रशांत भूषण के ख़िलाफ़ अवमानना के दो मामले चल रहे हैं। एक मामला है सुप्रीम कोर्ट और पिछले चार जजों पर ट्वीट को लेकर और दूसरा मामला है 2009 में सुप्रीम कोर्ट के 16 में से आधे मुख्य न्यायाधीशों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने का। ट्वीट वाले ताज़ा मामले में प्रशांत भूषण को दोषी ठहराया गया है और 20 अगस्त को सज़ा सुनाई जानी है, जबकि दूसरे मामले में अभी सुनवाई जारी है।
जब से सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया है तब से कई वकील, रिटायर्ड जज और बुद्धिजीवी इस फ़ैसले पर सवाल उठाते रहे हैं। जिस मामले में उन्हें दोषी ठहराया गया है वह उनके दो ट्वीट से जुड़ा मामला है। एक ट्वीट में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट व भारत के पिछले 4 मुख्य न्यायाधीशों का ज़िक्र किया था और आरोप लगाया था कि उन्होंने लोकतंत्र को बचाने के लिए कुछ नहीं किया। उन्होंने एक अन्य ट्वीट में कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन के दौरान अदालतों को बंद रखने के लिए मुख्य न्यायाधीश बोबडे की आलोचना की थी। इस ट्वीट में एक फ़ोटो में सीजेआई बोबडे हार्ले डेविडसन बाइक पर बैठे नज़र आए थे।
वकीलों द्वारा इस जारी बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में श्रीराम पाँचू, अरविंद दातार, श्याम दीवान, मेनका गुरुस्वामी, राजू रामचंद्रन, बिस्वजीत भट्टाचार्य, नवरोज सेवरई, जनक द्वारकावास, इक़बाल छागला, डेरियस खंबाटा, वृंदा ग्रोवर, मिहिर देसाई, कामिनी देसाई आदि शामिल हैं। उन्होंने बयान में कहा है कि संवैधानिक लोकतंत्र में एक स्वतंत्र न्यायपालिका, जिसमें स्वतंत्र न्यायाधीश और वकील शामिल हैं, क़ानून के शासन का आधार है।
वकीलों ने बयान में कहा है, '
“
हमें विश्वास है कि सर्वोच्च न्यायालय इस विषय पर पिछले 72 घंटों में चारों ओर से व्यक्त किए गए लोगों की आवाज़ को सुनेगा और न्याय की हत्या को रोकने के लिए सुधारात्मक क़दम उठाएगा एवं आम तौर पर नागरिकों ने जो विश्वास जताया व सम्मान दिया है उसको बहाल करेगा।
वकीलों का बयान
वकीलों के इस बयान में कहा गया है कि यह निर्णय जनता की नज़र में अदालत के अधिकार को बहाल नहीं करता है बल्कि, यह वकीलों को मुखर होने से हतोत्साहित करेगा। इसमें कहा गया है कि यह वह बार रहा है जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा में सबसे पहले खड़ा हुआ है।
बयान में यह भी कहा गया है कि एक स्वतंत्र न्यायपालिका का मतलब यह नहीं है कि न्यायाधीशों पर जाँच और टिप्पणी नहीं की जा सकती है। बयान में कहा गया है, 'किसी भी तरह की कमियों को स्वतंत्र रूप से बेंच और जनता के ध्यान में लाना वकीलों का कर्तव्य है। जबकि हममें से कुछ श्री प्रशांत भूषण के दो ट्वीट और सामग्री पर अलग-अलग विचार रख सकते हैं, लेकिन हम इस विचार से एकमत हैं कि अदालत की अवमानना का कोई भी इरादा नहीं था...'
बता दें कि इन दो ट्वीट के मामले में ही 14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया है। जस्टिस अरुण मिश्रा, बीआर गवई और कृष्ण मुरारी की तीन जजों की बेंच ने भूषण के ट्वीट पर फ़ैसला सुनाया था। सुनवाई के दौरान भूषण ने कहा था कि वह अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग कर रहे हैं और अदालत के कामकाज के बारे में अपनी राय दे रहे हैं। उन्होंने कहा था कि उनकी यह राय 'न्याय में बाधा' नहीं है जिससे अवमानना की कार्रवाई की जाए। लेकिन उनकी दलीलें नहीं चली थीं।
कोर्ट ने प्रशांत भूषण के दो ट्वीट के संबंध में नोटिस दिया था। उनका एक ट्वीट 27 जून को पोस्ट किया गया था जिसमें उन्होंने पिछले चार सीजेआई का ज़िक्र किया था। भूषण ने ट्वीट किया था, जब भविष्य के इतिहासकार पिछले 6 वर्षों को देखेंगे कि औपचारिक आपातकाल के बिना भी भारत में लोकतंत्र कैसे नष्ट कर दिया गया है तो वे विशेष रूप से इस विनाश में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को चिह्नित करेंगे, और विशेष रूप से अंतिम 4 प्रधान न्यायाधीशों की भूमिका।'
उनका दूसरा ट्वीट सीजेआई को लेकर था जिसमें एक तसवीर में वह नागपुर में एक हार्ले डेविडसन सुपरबाइक पर बैठे हुए दिखे थे। यह ट्वीट 29 जून को पोस्ट किया गया था। इस ट्वीट में भूषण ने कहा था कि ऐसे समय में 'जब नागरिकों को न्याय तक पहुँचने के उनके मौलिक अधिकार से वंचित करते हुए वह सुप्रीम कोर्ट को लॉकडाउन मोड में रखते हैं, चीफ़ जस्टिस ने हेलमेट या फ़ेस मास्क नहीं पहना'।
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