कार्यपालिका और
न्यायपालिका के बीच चल रहे टकराव के बीच, केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरण रिजिजू ने मंगलवार को एक बयान देते हुए कहा
कि हाइकोर्ट के जजों के रूप में तीन अधिवक्ताओं की नियुक्ति पर सरकार की आपत्तियों
को सुप्रीमकोर्ट द्वारा सार्वजनिक किया जाना एक गंभीर मुद्दा
है।
भारत के चीफ जस्टिस डीवाई
चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने 19 जनवरी को, पांच अधिवक्ताओं
को हाईकोर्ट के जजों के रूप में नियुक्त करने के अपने फैसले को दोहराया था। कॉलोजियम
द्वारा इन वकीलों के नाम तीसरी बार सरकार के पास भेजे गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने इन नामों
पर सरकार की आपत्ति को और अपने जबाव की पुनरावृत्ति को सार्वजनिक कर दिया था। इसमें
सरकार की आपत्ति सौरभ कृपाल के नाम पर ज्यादा थी, जोकि समलैंगिक हैं और उनके साथी
एक विदेशी नागरिक हैं।
कॉलोजियम ने जिन पांच नामों
की सिफारिश की थी उसमें वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ किरपाल, बंबई हाइकोर्ट के जज के रूप में वकील सोमशेखर
सुंदरेसन, मद्रास हाइकोर्ट के लिए अधिवक्ता
जॉन सत्यन, कलकत्ता हाइकोर्ट के जज
के रूप में शाक्य सेन और अमितेश बनर्जी की वकालत की थी।
ताजा ख़बरें
कानून मंत्री ने अपने बयान
में कहा कि गोपनीय रिपोर्टों का सार्वजनिक करना गंभीर चिंता का विषय है। मैं इस
बारे में उचित समय आने पर बोलूंगा। यदि संबंधित
अधिकारी जो गुप्त रूप से राष्ट्र के लिए काम कर रहा है, तो दो बार सोचेगा कि उसकी रिपोर्ट को भी पब्लिक डोमेन में
रखा जा सकता है और इसका क्या प्रभाव पड़ेगा।
इससे पहले, कानून मंत्री किरेण रिजिजू ने दिल्ली उच्च
न्यायालय के रिटार्यड जज आर एस सोढ़ी के इंटरव्यू की क्लिप साझा की थी। सोढ़ी नें इस
इंटरव्यू में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट
ने जजों को नियुक्त करने का अधिकार अपने पास लेकर संविधान को ‘हाईजैक’ कर लिया है। वीडियो
क्लिप साझा करते हुए रिजिजू ने ट्वीट किया था वास्तव में
अधिकांश लोगों के विचार समान हैं।
सुप्रीम कोर्ट और सरकार के
बीच जजों की नियुक्ति को लेकर काफी दिनों से खींचतान चल रही है। और दोनों ही संस्थाएं
एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रही हैं।
अपनी राय बतायें