देश के विधि आयोग ने लोगों की भारी प्रतिक्रिया को देखते हुए समान नागरिक संहिता या यूसीसी पर लोगों के लिए सुझाव देने का समय दो सप्ताह और बढ़ाने का निर्णय लिया है। इस पर सुझाव देने की पूर्व में समय सीमा शुक्रवार तक ही थी। 14 जून 2023 को विधि आयोग ने बड़े पैमाने पर आम लोगों और धार्मिक संगठनों से यूसीसी पर सुझाव मांगा गया था। अब सुझाव देने की तिथि को बढ़ा कर आयोग ने यूसीसी पर अधिक सुझावों को आमंत्रित किया है।
विधि आयोग को ईमेल या उसके पते पर डाक से सुझाव भेजा जा सकता हैं। इसका ईमेल आइडी membersecretary-lci@gov.in है। डाक से भेजने का पता है, सदस्य सचिव, भारतीय विधि आयोग, चौथा तल, लोकनायक भवन, खान मार्केट, नई दिल्ली- 110 003 , इस पर सुझाव दो सप्ताह में भेजा जा सकता है।
यूसीसी पर विधि आयोग को अब तक मिले करीब 50 लाख सुझाव
यूनिफॉर्म सिविल कोड पर विधि आयोग को अब तक करीब 50 लाख सुझाव प्राप्त हो चुके हैं। आयोग ने 14 जून को नोटिस जारी कर आम लोगों और संगठनों से इस पर सुझाव मांगे थे।पूर्व में 14 जुलाई सुझाव देने की अंतिम तिथि थी।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक आयोग आने वाले दिनों में कुछ संगठनों और लोगों को व्यक्तिगत रूप से बातचीत के लिए भी बुला सकता है।
इससे पहले 21वें विधि आयोग ने भी इस विषय पर अध्ययन किया था। उसने इस मुद्दे की जांच की थी और दो बार सभी हितधारकों से सुझाव मांगे थे। 21वें विधि आयोग का कार्यकाल अगस्त 2018 में समाप्त हो गया था।
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मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड आपत्ति दर्ज करा चुका
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने विधि आयोग के 14 जून 2023 के नोटिस पर अपनी आपत्ति दर्ज करा चुका है। आयोग से भी समान नागरिक संहिता पर राय और प्रतिक्रिया मांगी गई थी।बोर्ड के प्रवक्ता डॉ. एसक्यूआर इलियास ने बताया कि यूसीसी पर विधि आयोग को हमने अपनी प्रतिक्रिया और आपत्तियों से अवगत करा दिया है। बोर्ड ने अपनी आपत्तियों का विवरण देते हुए विधि आयोग को भेजे गए पत्र में कहा है कि आयोग द्वारा आमंत्रित किए जाने वाले सुझावों की शर्तें गायब हैं। ऐसा लगता है कि जनमत संग्रह के लिए इतना बड़ा मुद्दा सार्वजनिक डोमेन में लाया गया है।
बोर्ड ने अपने पत्र में कहा कि यह मुद्दा पूरी तरह से कानूनी मुद्दा होने के बावजूद राजनीति और मीडिया के लिए प्रोपेगेंडा का पसंदीदा मुद्दा बन गया है। पूर्व के आयोग ने इस मुद्दे की जांच की थी और वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि समान नागरिक संहिता न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है। लेकिन इतने कम समय के भीतर, बिना कोई खाका बताए हुए कि आयोग करना क्या चाहता है, फिर से इस पर जनता की राय मांगना आश्चर्यजनक है।
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