लगता है कि तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के अध्यक्ष के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने मुख्यमंत्री की कुर्सी अपने बेटे के. तारक रामा राव को देने का मन बना लिया है। पार्टी के कई विधायक अब यह खुलकर कहने लगे हैं कि जल्द ही के. तारक रामा राव (केटीआर) की ताजपोशी होगी। तेलंगाना विधानसभा के उपाध्यक्ष टी. पद्मा राव ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में न सिर्फ केटीआर को भावी मुख्यमंत्री बताया, बल्कि उन्हें बधाई भी दे दी।
कई विधायक हैं जो अब यह बार-बार कहने लगे हैं कि केटीआर मुख्यमंत्री बनने के योग्य हैं और उनके मुख्यमंत्री बनने से प्रदेश और भी तेज़ी से तरक्की करेगा।
केटीआर फिलहाल पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हैं और तेलंगाना सरकार में मंत्री भी। अपने पिता के मंत्रिमंडल में वे शहरी विकास, नगर प्रशासन, उद्योग और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों की ज़िम्मेदारी संभाल रहे हैं।
सूत्रों का कहना है कि केसीआर ने बेटे को मुख्यमंत्री बनाने के बाद केंद्र की राजनीति में ‘बड़ी भूमिका’ अदा करने की योजना बनायी है। केसीआर ग़ैर-भाजपाई और ग़ैर-कांग्रेसी मोर्चा बनाना चाहते हैं। इससे पहले भी वे ‘फेडरल फ्रंट’ के नाम से तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश कर चुके हैं।
सूत्र बताते हैं कि केसीआर समाजवादी पार्टी, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, वाईएसआर कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, बीजू जनता दल, सीपीएम, सीपीआई, जनता दल सेक्युलर जैसी क्षेत्रीय पार्टियों को एक मंच पर लाकर फेडरल फ्रंट बनाना चाहते हैं।
गौर करने वाली बात है कि जब से कोरोना-काल शुरू हुआ है, तभी से मुख्यमंत्री के रूप में केसीआर के कार्यक्रम कम हो गये हैं। उनके बेटे केटीआर ही ज़्यादातर सरकारी कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे हैं। पार्टी और सरकार की सभी महत्वपूर्ण बैठकों की अध्यक्षता भी केटीआर ही कर रहे हैं। बड़े फैसले लेने की ज़िम्मेदारी भी केटीआर को सौंप दी गयी है।
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बीजेपी से लड़ना होगा
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि तेलंगाना में बीजेपी की आक्रामक शैली और सांप्रदायिक राजनीति करने की कोशिश ने केसीआर को अपनी राजनीतिक रणनीति बदलने पर मजबूर किया है। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने तेलंगाना की सत्रह में से चार लोकसभा सीटें जीती थीं। मुख्यमंत्री केसीआर की बेटी कविता निजामाबाद से बीजेपी के उम्मीदवार धर्मपुरी अरविंद से चुनाव हार गयी थीं।
तेलंगाना राष्ट्र समिति के गढ़ करीमनगर से केसीआर के बेहद करीबी विनोद कुमार की भी बीजेपी के उम्मीदवार बंडी संजय के हाथों हार हुई। कुछ महीने पहले, दुब्बका विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में बीजेपी ने यह सीट टीआरएस से हथिया ली।
ध्रुवीकरण की कोशिश
इसके बाद हुए हैदराबाद महानगर निगम चुनाव में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया और उसकी सीटें चार से बढ़कर 48 हो गयीं। इन लगातार जीतों के बाद से बीजेपी ने अपना रुख आक्रामक कर लिया है। बीजेपी केसीआर और असदुद्दीन ओवैसी के बीच राजनीतिक दोस्ती को भी राजनीतिक हथियार बनाने में जुटी है। बीजेपी के रुख से साफ है कि वह तेलंगाना में ध्रुवीकरण की कोशिश कर रही है।
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‘बाप-बेटे’ की सरकार?
सूत्रों का कहना है कि अगर बीजेपी तेलंगाना में राजनीति को सांप्रदायिक रंग देने में कामयाब रही, तो इसका सीधा नुकसान टीआरएस को होगा। बीजेपी ने जिस तरह राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को निशाना बनाने के लिए केंद्र को ‘माँ-बेटे की सरकार’ कहा था, ठीक उसी तरह तेलंगाना में वह राज्य सरकार को ‘बाप-बेटे’ की सरकार कहते हुए राजनीतिक हमले कर रही है।
विश्वसनीय सूत्रों ने बताया कि बीजेपी की रणनीति को नाकाम करने के मकसद से केसीआर ने बेटे को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया है। केसीआर को लगता है कि इस फैसले से कई फायदे होंगे। 44 साल के केटीआर के मुख्यमंत्री बनने से युवा पार्टी से जुड़े रहेंगे। 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव तक केटीआर पार्टी पर अपनी पकड़ और भी मजबूत कर सकेंगे। साथ ही नयी योजनाओं से पार्टी की ताकत और लोकप्रियता बढ़ाएँगे।
बेटे के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद केसीआर केंद्र की राजनीति पर ज़्यादा ध्यान दे सकेंगे। पता चला है कि फरवरी या मार्च में ही वह अपने बेटे को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा देंगे।
ज्योतिष-शास्त्र में विश्वास रखने वाले केसीआर होली से पहले बेटे को मुख्यमंत्री बना सकते हैं। इसके बाद 2022 में होने वाले राज्यसभा चुनाव के जरिये वह संसद पहुंचेंगे। सूत्र यह भी बताते हैं कि केसीआर की नज़र प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है। उन्हें लगता है कि दक्षिण की सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के अलावा वामपंथी पार्टियां भी उनका समर्थन करेंगी।
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