मथुरा के श्री कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित स्थल की वीडियोग्राफी कराने का आदेश दिया है। जस्टिस पीयूष अग्रवाल की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह आदेश दिया। अदालत ने कहा कि चार माह में वीडियोग्राफी कराकर सर्वे रिपोर्ट हाई कोर्ट में जमा की जाए।
इस साल मई में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मथुरा की एक अदालत से कहा था कि इस मामले में 4 महीने के भीतर सभी अर्जियों का निस्तारण कर दिया जाए। हाई कोर्ट में मनीष यादव की ओर से याचिका दायर कर अनुरोध किया गया था कि मथुरा की अदालत में चल रहे सभी मामलों को एक साथ जोड़कर उनकी सुनवाई की जाए।
हिंदू संगठनों का दावा है कि मुगल शासक औरंगजेब ने 1669 में मंदिर को तुड़वा दिया था और इसके एक हिस्से में मसजिद का निर्माण कराया था। इन संगठनों का मानना है कि ईदगाह मसजिद वाली जगह पर ही कंस की जेल हुआ करती थी।
ज्ञानवापी मस्जिद विवाद
कुछ महीने पहले वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर भी वीडियोग्राफी कराई गई थी। यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में वाराणसी की जिला अदालत का फैसला आने दिया जाए।
ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे के बाद से हिंदू और मुसलिम पक्ष एक नई लड़ाई में उलझ गए थे। हिंदू पक्ष का कहना है कि मस्जिद के अंदर से जो आकृति मिली है वह शिवलिंग की है जबकि मुसलिम पक्ष ने साफ कहा है कि यह फव्वारा है।
क्या है विवाद
- यह विवाद मुख्य तौर पर 13.37 एकड़ ज़मीन का है। इसमें से 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मसजिद के पास है।
- श्रीकृष्ण विराजमान और अन्य हिंदू संगठन उस पूरी ज़मीन पर मालिकाना हक चाहते हैं। वे चाहते हैं कि मसजिद कहीं और शिफ़्ट की जाए।
- विवाद की वजह 400 साल पहले के घटनाक्रमों में ढूंढा जाता है। 1669-1670 में मुगल शासक औरंगजेब ने कथित तौर पर मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर को ध्वस्त करवा दिया था और एक हिस्से में मसजिद बनवाई थी।
- कहा जाता है कि 1770 में मुगलों और मराठाओं में जंग हुई और इसमें मराठाओं की जीत हुई। इसके बाद मराठाओं ने फिर से वहाँ भगवान केशवदेव मंदिर का निर्माण कराया।
- दावा किया जाता है कि धीरे-धीरे ये मंदिर भी जर्जर होता चला गया, कुछ सालों बाद भूकंप में मंदिर ध्वस्त हो गया और आखिरकार यह टीले में बदल गया।
- अंग्रेजों ने 1815 में कटरा केशवदेव की जमीन को बनारस के राजा पटनीमल को बेच दिया।
- 1920-1930 के दशक में जमीन खरीद को लेकर विवाद शुरू हुआ। मुसलिम पक्ष ने दावा किया कि अंग्रेजों ने जो जमीन बेची, उसमें कुछ हिस्सा ईदगाह मसजिद का भी था।
- 1944 में उद्योगपति जुगल किशोर बिरला ने राजा पटनीमल के वारिसों से ये जमीन खरीद ली। आज़ादी के बाद 1951 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट बना और ये 13.37 एकड़ जमीन कृष्ण मंदिर के लिए इस ट्रस्ट को सौंप दी गई।
- 1953 में मंदिर निर्माण शुरू हुआ और 1958 में पूरा हुआ। यह मंदिर शाही ईदगाह मसजिद से सटकर बनाया गया। 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान बना।
- 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मसजिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ एक समझौता किया। इसमें तय हुआ कि 13.37 एकड़ जमीन पर मंदिर और मसजिद दोनों बने रहेंगे।
लेकिन अब जो मथुरा की विभिन्न अदालतों में याचिकाएँ दायर की गई हैं उनमें कहा गया है कि वे उस समझौते को नहीं मानते हैं। श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट दावा करता रहा है कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान द्वारा किया गया समझौता ग़लत है क्योंकि उसको ऐसा करने का अधिकार नहीं है।
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