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न्यूनतम आमदनी गारंटी के राहुल के पिटारे में क्या होगा? ऐसे समझें

राहुल की न्यूनतम आमदनी गारंटी स्कीम कैसी होगी? अभी तक तो इतना ही पता है कि ग़रीबों को पैसा दिया जाएगा। लेकिन इन ग़रीब लोगों में कौन शामिल होगा? और कितना पैसा दिया जाएगा? इनका जवाब तो कांग्रेस आधिकारिक रूप से अपने चुनावी घोषणा-पत्र में देगी, लेकिन उनकी इस योजना को अभी ही आसानी से समझा जा सकता है।

इसे राहुल गाँधी के भाषण, कांग्रेस के घोषणा-पत्र ड्राफ़्टिंग कमेटी के अध्यक्ष पी. चिदंबरम के बयान और कुछ आँकड़ों से समझा जा सकता है। राहुल गाँधी ने कहा है कि न्यूनतम आमदनी गारंटी से भूख और ग़रीबी मिटाने में मदद मिलेगी। इसके बाद चिदंबरम ने भी साफ़ किया कि न्यूनतम आमदनी गांरटी बीजेपी की यूनिवर्सल बेसिक इनकम से अलग है और इससे ग़रीबों को टारगेट किया जाएगा। इन बयानों और कुछ तथ्यों से पता चलता है कि इसका लाभ देने के लिए दो तरीके़ अपनाए जा सकते हैं।

पहला तरीक़ा

  • कांग्रेस ग़रीबों की कमाई के आधार पर योजना का लाभ दे सकती है। पार्टी के बयानों से संकेत मिलते हैं कि यह न्यूनतम मज़दूरी के आधार पर तय किया जा सकता है। यानी सरकार द्वारा तय न्यूनतम मज़दूरी से कम पाने वाले ग़रीब को इसका लाभ दिया जा सकता है। इसके तहत उतने ही रुपये मिलेंगे जितनी न्यूनतम मज़दूरी तय होगी। फ़िलहाल न्यूनतम मज़दूरी 300 से लेकर 350 रुपये के बीच प्रति दिन है। ऐसे में यदि कोई ग़रीब 350 रुपये न्यूनतम मज़दूरी का हक़दार है और वह 200 रुपये ही कमा पाया हो तो उसे 150 रुपये दिए जाने का प्रावधान किया जा सकता है। 

संभव है कि इसके लिए फ़िलहाल तय की गई न्यूनतम मज़दूरी की सीमा को बढ़ाया जाए। 

दूसरा तरीक़ा

  • ग़रीबी रेखा से नीचे यानी बीपीएल परिवारों को भी आधार बनाया जा सकता है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बीपीएल परिवार तय करने का आधार अलग-अलग है। फ़िलहाल, यदि परिवार के प्रत्येक सदस्य की क्षमता एक दिन में ग्रामीण क्षेत्र में 27 रुपये से कम और शहरी क्षेत्र में 33 रुपये से कम है तो वह बीपीएल की श्रेणी में आता है। देश में क़रीब 27 करोड़ लोग ग़रीबी रेखा से नीचे आते हैं। 
अब यदि ग़रीबी रेखा के आधार पर न्यूनतम आमदनी गारंटी योजना लागू होती है और प्रति व्यक्ति आमदनी दस हज़ार रुपये पहुँचाना तय होता है तो इसके लिए क़रीब 2 लाख 70 हज़ार करोड़ रुपये की ज़रूरत पड़ेगी। 

कहाँ से आएगी इतनी बड़ी रकम

न्यूनतम आमदनी गारंटी को लेकर पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा है कि सारे सवालों के जवाब और इसकी पूरी जानकारी कांग्रेस अपने चुनावी घोषणा-पत्र में देगी। तो इसकी घोषणा अभी क्यों की गई? सूत्रों का कहना है कि सरकार के अंतरिम बजट से बीजेपी के वाहवाही लूटने से पहले कांग्रेस ऐसी वाहवाही लूटना चाहती है। बता दें कि कयास लगाए जा रहे हैं कि मोदी सरकार इस बजट में किसानों के लिए न्यूनतम मासिक आमदनी की योजना की घोषणा कर सकती है।

न्यूनतम आमदनी गारंटी साहस या दुस्साहस?

क्या ग़रीबों के खाते में पैसा दिया जाएगा? कम से कम राहुल गाँधी की न्यूनतम आमदनी गारंटी की घोषणा से तो यही सवाल उठता है। ये सवाल इसलिए कि इस योजना के लिए इतनी बड़ी रकम की व्यवस्था कैसे होगी? ऐसी किसी योजना पर किसी भी पार्टी ने अब तक हिम्मत नहीं जुटा पाई। बीजेपी भी इससे मिलती-जुलती योजना यूनिवर्सल बेसिक स्कीम पर दो साल से घोषणा करने की साहस नहीं कर पाई है। तो राहुल गाँधी ने ऐसे ‘दुस्साहस’ वाला कदम कैसे उठा लिया।

न्यूनतम आमदनी गारंटी जैसी किसी योजना में सबसे बड़ी बाधा बड़ी रकम की व्यवस्था करना है। यह जोखिम उठाना किसी भी पार्टी के लिए आसान नहीं रहा है। तभी तो ऐसी किसी योजना पर सालों से सिर्फ़ विचार ही हुआ है।

आज़ादी से पहले भी हुई थी ऐसी योजना पर चर्चा

यह पहली बार नहीं है जब ग़रीबों को पैसा देने के लिए योजना आई है। ऐसी योजना का ज़िक्र 1938 में आया था जब अंग्रेज़ों की हूकुमत थी। तब न्यूनतम आय को लेकर सिर्फ़ चर्चा ही हुई थी। फिर साल 1964 मे भी ऐसी योजना शुरू करने पर विचार किया गया था। साल 2011-12 में पहली बार इस पर ठोस प्रगति हुई। मध्य प्रदेश में दो पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया था। 

2016-17 के इकोनॉमिक सर्वे में देश में सबसे नीचे के 75 फ़ीसदी लोगों के लिए ऐसी योजना का सुझाव दिया था। लेकिन इसे शुरू नहीं किया जा सका। बीजेपी भी यूनिवर्सल बेसिक स्कीम पर दो साल से विचार कर रही है।

वैसे, इस पर फ़ैसले नहीं लिए जाने के पीछे कई कारण रहे हैं, लेकिन जानकार नीति-निर्माताओं में डर को कारण बताते रहे हैं। नीति-निर्माताओं को यह डर मोटे तौर पर दो कारणों से लगता है।

  1. सरकार इतने रुपये कहाँ से लाएगी
  2. मुफ़्त में पैसे मिलने से लोग कामचोर हो जाएँगे 

हालाँकि, ये दोनों कारण को सिद्ध करने का कोई ठोस तर्क नहीं है। यही वजह है कि दुनिया भर के कई देशों में न्यूनतम आय जैसी योजना को लागू किया गया है। हालाँकि कुछ वजहों से यह कई देशों में असफल भी रहा है। कई देशों में इसे वापस लिया जा चुका है और कुछ में इसे वापस लेने पर विचार भी चल रहा है। कई देशों ने सफलता पूर्वक इसे चलाया है।

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तो भारत में क्या यह सफल होगा?

कांग्रेस न्यूनतम आमदनी गारंटी को ऐतिहासिक बता रही है। इसका दावा है कि इसके दो बड़े फ़ायदे होंगे। 

  1. इससे ग़रीबी रेखा से नीचे के लोगों को ऊपर उठाने में मदद मिलेगी 
  2. लोगों के पास पैसा आएगा तो लोग ख़र्च करेंगे और अर्थव्यवस्था गति पकड़ेगी
कांग्रेस का मानना है कि ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना और खाद्य सुरक्षा क़ानून से 10 साल में 14 करोड़ लोग ग़रीबी से बाहर आ गए। हाल ही में राहुल गाँधी ने कहा था कि मनरेगा ने श्रम बाजार में सुधार किया।

पार्टी का मानना है कि सबसे ग़रीब लोगों को आमदनी होगी तो लोगों को ख़र्च करने की क्षमता में बढ़ोतरी होगी। खपत बढ़ने पर अर्थव्यवस्था के विकास नें गति आएगी। कांग्रेस का कहना है कि पिछली यूपीए सरकार में कई योजनाओं के आने के बाद ऐसी वृद्धि हुई थी।

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क़मर वहीद नक़वी
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