दिल्ली में कड़ाके की ठंड के बीच सिंघु, टिकरी और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर डटे किसानों को हटाने की मांग वाली याचिकाओं पर गुरूवार को एक बार फिर सुनवाई हुई। जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन की बेंच ने मामले में सुनवाई की।
सुनवाई के दौरान सीजेआई बोबडे ने केंद्र से कहा कि वह इस पर विचार करे कि क्या किसान क़ानूनों को होल्ड (रोका) किया जा सकता है। इस पर केंद्र की ओर से कहा गया कि ऐसा नहीं किया जा सकता। सीजेआई ने कहा कि केंद्र इस पर विचार करे और इस बीच किसान संगठनों को नोटिस भेजा जाए। अब इस मामले में अगले सप्ताह सुनवाई होगी।
केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अटार्नी जनरल तुषार मेहता ने बेंच से कहा, ‘किसान केवल यही मांग कर रहे हैं कि कृषि क़ानूनों को वापस लिया जाना चाहिए। वे छह महीने के लिए तैयार होकर आए हैं।’ उन्होंने कहा कि किसी शहर को इस तरह जाम करने के हालात सिर्फ जंग के दौरान ही बनते हैं।
सीजेआई बोबडे ने कहा कि वे लोग शहर के एक छोर पर बैठे हैं ऐसे में पूरे शहर को कैसे बंद किया जा सकता है। इस पर अटार्नी जनरल ने कहा कि किसान दूसरी सड़कों को भी जाम कर रहे हैं। सीजेआई ने पूछा कि क्या किसी ने इस बात को कहा है कि वे दिल्ली की सारी सड़कों को जाम कर देंगे।
बहुत नुक़सान हो रहा: केंद्र
अटार्नी जनरल ने कहा, ‘पिछले 21 दिनों में बहुत ज़्यादा नुक़सान हो चुका है। वहां बैठे लोगों के पास मास्क नहीं हैं, लोग झुंडों में बैठे हैं, ऐसे में कोरोना फैल सकता है। इसके बाद वे गांवों में जाएंगे तो वहां भी वायरस फैलाएंगे और फिर पूरे देश में फैलाएंगे। उन्हें इस तरह बैठने की इजाजत नहीं दी जा सकती।’
इस पर सीजेआई ने कहा, ‘कोई भी आंदोलन तब तक संवैधानिक है, जब तक इसमें किसी संपत्ति का नुक़सान नहीं होता या फिर इससे किसी के जीवन को ख़तरा पैदा नहीं होता। किसानों और सरकार को बात करनी चाहिए। ऐसे में अदालत इस पर विचार कर रही है कि एक निष्पक्ष और स्वतंत्र कमेटी बना दी जाए।’
सीजेआई बोबडे ने कहा, ‘किसानों को आंदोलन करने का अधिकार है, आप कीजिए लेकिन आप सालों तक धरने पर नहीं बैठ सकते।’
अटार्नी जनरल ने कहा कि किसानों के उन सभी प्रतिनिधियों को नोटिस भेजा जाए जो अब तक सरकार के साथ बातचीत में शामिल रहे हैं। सीजेआई बोबडे ने कहा कि सभी आंदोलनकारी किसान संगठनों को नोटिस भेजा जाएगा।
सीजेआई ने कहा, ‘हम भी भारतीय हैं, किसानों का दर्द जानते हैं और उनकी परेशानियों से सहानुभूति रखते हैं। बस आपको अपने आंदोलन का तरीक़ा बदलना होगा। हम एक कमेटी बनाने पर विचार कर रहे हैं।’
सीजेआई बोबडे ने कहा कि अब इस मामले को वैकेशन बेंच सुनेगी क्योंकि किसानों का कोई भी संगठन अदालत में मौजूद नहीं है। उन्होंने कहा कि बिना किसानों को सुने कोई आदेश पास नहीं किया जा सकता है।
आंदोलनकारी किसानों का कहना है कि किसी तरह की कमेटी बनाने से इस मसले का हल नहीं निकलेगा और वे चाहते हैं कि इन क़ानूनों को बिना देर किए वापस ले लिया जाए। किसानों ने कहा है कि सरकार को क़ानून बनाने से पहले किसानों और अन्य लोगों की कमेटी बनानी चाहिए थी।
कमेटी बनाने का प्रस्ताव
किसानों को हटाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं पर बुधवार को भी सुनवाई हुई थी। सुनवाई के बाद अदालत ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था।
सुनवाई के दौरान सीजेआई एसए बोबडे ने केंद्र सरकार से कहा था कि अगर आप खुले मन से बातचीत नहीं करेंगे तो यह फिर से फ़ेल हो जाएगी।
सरकार की ओर से पेश हुए अटार्नी जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि सरकार ऐसा कुछ भी नहीं करेगी जो किसानों के ख़िलाफ़ हो। उन्होंने कहा कि किसान सरकार के साथ बैठें और हर क्लॉज पर चर्चा करें, तभी खुले मन से बात हो सकती है।
खुले मन से हो चर्चा
अदालत ने कहा था कि हम इस मसले को सुलझाने के लिए एक कमेटी बनाने का प्रस्ताव रख रहे हैं जिसमें देश भर के किसान संगठनों के प्रतिनिधियों, सरकार के अलावा बाक़ी संबंधित लोगों को भी शामिल किया जा सकता है।
इस पर सीजेआई ने कहा कि ऐसा लगता है कि आपकी बातचीत से बात नहीं बन पा रही है, आप हमें किसानों की यूनियन का नाम दीजिए। जस्टिस बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन की बेंच ने इस मामले में किसान संगठनों को पक्षकार बनाने की अनुमति दे दी थी।
खारिज किया सरकार का प्रस्ताव
बुधवार को किसानों ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की ओर से भेजे गए प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। किसानों ने कहा था कि इसमें वही सारी बातें हैं, जो पिछले दौर की बातचीत में हो चुकी हैं। किसान नेताओं ने कहा है कि वे बातचीत के दौरान सरकार को अपने मुद्दों के बारे में पहले ही बता चुके हैं, इसलिए वे इस प्रस्ताव का कोई जवाब नहीं दे रहे हैं।
दूसरी ओर, सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर पंजाब-हरियाणा और बाक़ी राज्यों से बड़ी संख्या में किसान पहुंच रहे हैं। ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से आए किसान भी बड़ी संख्या में डटे हुए हैं।
सुनिए, किसान आंदोलन पर चर्चा-
सिख धर्मगुरू ने की आत्महत्या
सिंघु बॉर्डर पर चल रहे किसानों के आंदोलन में बुधवार शाम को उस वक़्त बड़ी घटना हो गई जब सिख धर्म गुरू संत बाबा राम सिंह ने ख़ुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली। संत बाबा राम सिंह हरियाणा के करनाल के रहने वाले थे। उन्होंने सुसाइड नोट भी छोड़ा है। जिसमें लिखा है कि वह किसानों की बेहद ख़राब हालत के कारण यह आत्मघाती क़दम उठा रहे हैं। बड़ी संख्या में लोग संत बाबा राम सिंह के कीर्तन को सुनते थे।
उन्होंने आगे लिखा है, ‘मैं अपने हक़ के लिए लड़ रहे किसानों का दर्द समझता हूं और सरकार उन्हें इंसाफ़ दिलाने के लिए कुछ नहीं कर रही है। जुल्म करना पाप है तो जुल्म सहना भी पाप है। मैंने ख़ुद की क़ुर्बानी देने का फ़ैसला किया है।’
सोनीपत के डीसीपी श्याम लाल पूनिया ने कहा है कि घटना के बाद संत बाबा राम सिंह को पानीपत के पार्क अस्पताल ले जाया गया लेकिन डॉक्टर्स ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। 65 साल के संत बाबा राम सिंह इन दिनों किसानों के आंदोलन में शामिल होने के लिए सिंघु और टिकरी बॉर्डर जाते थे।
दिल्ली सिख गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा है कि संत बाबा राम सिंह की आत्मा को शांति मिले। उन्होंने सभी से संयम बनाए रखने की विनती की है।
किसानों ने सरकार को चेताया
दिल्ली-यूपी के तमाम बॉर्डर्स पर डेरा डालकर बैठे किसानों ने मोदी सरकार को चेताया है कि वह उनके आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश बंद करे।
किसानों के तमाम संगठनों की ओर से केंद्रीय कृषि मंत्रालय के सचिव विवेक अग्रवाल को भेजे गए पत्र में लिखा गया है कि वे सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह किसानों के सभी संगठनों को बराबर अहमियत दे और सभी से बात करे। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, कृषि मंत्रालय ने किसानों की ओर से पत्र मिलने की पुष्टि की है।
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