दिल्ली के बॉर्डर पर बैठे किसानों का आंदोलन जितना ज़मीन पर है, उससे कहीं ज़्यादा सोशल मीडिया पर। सोशल मीडिया के जरिये यह आंदोलन दुनिया भर में फैले पंजाबियों तक पहुंच चुका है। किसानों पर हरियाणा सरकार ने जो आंसू गैस के गोले छोड़े हैं, ठंड में बुजुर्गों पर पानी की बौछार की है, उससे पंजाबियों में बहुत नाराज़गी दिखाई देती है।
किसान आंदोलन के दौरान सिखों को खालिस्तानी कहे जाने, उन्हें देश विरोधी बताए जाने या उनके आंदोलन को विदेशों से फंडिंग होने की बात कहने से ज़मीन चीरकर अन्न उगाने वाले अन्नदाताओं के मान-सम्मान को ठेस पहुंची है। इस तरह की बातों से पंजाब का माहौल बिगड़ सकता है। कैसे, इसके लिए थोड़ा इतिहास में जाते हैं।
पंजाब बहुत संवदेनशील सूबा है। ये विशाल पंजाब था, जिसका 1947 में हुए बंटवारे के दौरान लगभग आधा हिस्सा पाकिस्तान में चला गया। आज भी बोली दोनों जगह लगभग एक है।
आतंकवाद की चपेट में रहा पंजाब
1948 में मास्टर तारा सिंह की अगुवाई में ‘पंजाबी सूबा’ आंदोलन चला था और इसके आगे झुकते हुए 1966 में पंजाब को अलग सूबा बनाना पड़ा था। इसके बाद पंजाब के अंदर उठने वाले अलगाववादी स्वरों ने सिखों के लिए अलग राष्ट्र की भावना को जन्म दे दिया। इसे खालिस्तान कहा गया।
1970-1980 के दौरान यह भावना इतनी प्रबल हो गयी थी कि पंजाब आतंकवाद की चपेट में आ गया था और अलगाववादी जरनैल सिंह भिंडरावाला के नेतृत्व में खालिस्तान आंदोलन चरम पर पहुंच गया था। वह वक़्त पंजाब में ख़ून-ख़राबे का था और हजारों निर्दोष हिंदुओं-सिखों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। खालिस्तानी ऐसे सिखों के भी ख़िलाफ़ थे, जो उनके सिखों के लिए अलग राष्ट्र के विचार का विरोध करते थे।
भिंडरावाले ने जब स्वर्ण मंदिर पर कब्जा कर लिया था तो उसे बाहर निकालने के लिए 6 जून, 1984 को इंदिरा गांधी की सरकार ने ऑपरेशन ब्लू स्टार किया था। इसमें स्वर्ण मंदिर को खासा नुक़सान पहुंचा था और इससे सिख बेहद नाराज़ हुए थे। सरकारी नौकरी कर रहे कई सिखों ने इस्तीफ़ा दे दिया था।
सिख विरोधी दंगे
उसके बाद 31 अक्टूबर, 1984 को इंदिरा गांधी की सुरक्षा में तैनात सिखों ने जब उनकी हत्या कर दी तो देश में सिख विरोधी दंगे शुरू हो गए। बड़ी संख्या में सिखों की दुकानों-घरों में आग लगा दी गई और उनके केश काट दिए गए। तब से यह डर पैदा हुआ कि पंजाब में अलगाववादी आंदोलन और भड़केगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
आज भी विदेशों में बैठे खालिस्तानी आतंकवादी संगठन लगातार पंजाब का माहौल ख़राब करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं।
भड़का रही आईएसआई
बीते कुछ समय से पंजाब को अशांत करने की नापाक कोशिशें तेज हुई हैं और इसके पीछे पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी इंटर सर्विसेज़ इंटेलिजेंस यानी आईएसआई का हाथ बताया जाता है। इसके अलावा सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियो दिखते हैं जिनमें 2020 में खालिस्तान के लिए रेफ़रेंडम यानी जनमत संग्रह कराने की बात कही गई है। ऐसा सिख आतंकवादी संगठनों के इशारे पर किया जा रहा है और वे आईएसआई के साथ मिलकर पंजाब के नौजवानों को खालिस्तान के नाम पर भड़काने में जुटे हैं।
पाकिस्तान की नापाक नज़र
खालिस्तान आंदोलन को पाकिस्तान की पूरी शह है। पाकिस्तान के इन नापाक इरादों का पता बीते साल नवंबर में करतारपुर स्थित गुरुद्वारे के उद्घाटन के दौरान भी चला था। तब पाकिस्तान की सरकार के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से जारी किए गए थीम सांग में तीन खालिस्तानी आतंकवादियों का पोस्टर भी दिखाया गया था और इसमें रेफ़रेंडम 2020 लिखा था।
एक अलगाववादी संस्था सिख फ़ॉर जस्टिस को भारत सरकार ने हाल ही में बैन किया था और इससे जुड़ी 40 वेबसाइटों पर भी प्रतिबंध लगा दिया था। इस साल जुलाई में भारत ने नौ खालिस्तानी आतंकवादियों पर यूएपीए लगा दिया था।
खालिस्तानी बताने पर तुले
अब आते हैं, आज के वक़्त पर। किसानों के आंदोलन के दौरान जिस तरह बीजेपी नेताओं ने किसानों को खालिस्तानी बताया है या कुछ न्यूज़ चैनलों और सोशल मीडिया पर यह प्रोपेगेंडा चल रहा है कि इस आंदोलन को खालिस्तानियों का समर्थन है, यह बेहद गंभीर बात है।
ऐसी बातें करने वाले शायद नहीं जानते कि बार-बार खालिस्तानी कहे जाने से सिखों में नाराज़गी बढ़ेगी और हिंदुस्तान की बर्बादी का सपना देख रही आईएसआई और पाकिस्तानी आतंकवादी इस मौक़े का फ़ायदा उठाने से नहीं चूकेंगे। हालांकि किसान आंदोलन के बाद इस तरह की बातों को देखते हुए सुरक्षा एजेंसियां बेहद सतर्क हैं।
दिल्ली के बॉर्डर पर जमे ये लाखों सिख 1984 के नरसंहार के जख़्मों को भुला चुके हैं और अपने हक़ की आवाज़ को उठा रहे हैं। लेकिन जब उन्हें खालिस्तानी कहकर टारगेट किया जाएगा तो युवा पीढ़ी के मन में दिल्ली की हुक़ूमत के ख़िलाफ़ नफ़रत पैदा होगी।
सर्दी-गर्मी में कड़ी मेहनत कर अन्न उगाने वाले और सरहदों पर तैनात सिखों को भी आंदोलनकारी सिखों और किसानों को खालिस्तानी कहे जाने से निश्चित रूप से पीड़ा भी होगी और ग़ुस्सा भी आएगा।
Punjabi farmers in India are subjected to torture, communities and minorities are under threat in #Modi #Endia https://t.co/B8iCbWzduV
— Ch Fawad Hussain (@fawadchaudhry) November 27, 2020
कांग्रेस के भीतर चिंता
कांग्रेस पार्टी के भीतर भी इस मुद्दे पर चिंता है। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, पंजाब कांग्रेस के कई नेताओं ने इस बात पर चिंता जताई कि किसानों का आंदोलन जिस तरह बढ़ रहा है, उससे इसके आउट ऑफ़ कंट्रोल होने का डर है। पंजाब कांग्रेस के नेताओं को उम्मीद है कि केंद्र किसानों की बातों को जल्द समझेगा।
एक नेता ने अख़बार से कहा, ‘पंजाब कांग्रेस के उन नेताओं को जिन्होंने राज्य में आतंकवाद का दौर देखा है, वे जानते हैं कि किसानों का यह आंदोलन राज्य की शांति को ख़त्म कर सकता है।’ पार्टी नेताओं का कहना है कि कट्टरपंथी तत्व इस आंदोलन का इस्तेमाल अपने मतलब के लिए कर सकते हैं और इससे फसाद हो सकता है।
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