किसानों और मोदी सरकार के बीच सुलह होती नहीं दिख रही है। सरकार के नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली के बॉर्डर्स पर बैठे किसानों ने भारत बंद भी बुलाया। इससे सरकार पर दबाव ज़रूर बढ़ा है लेकिन वह पीछे हटती नहीं दिखाई देती। इस बीच, 9 दिसंबर को होने वाली बैठक रद्द हो गई है।
पिछले कई दौर की बातचीत के बेनतीजा रहने के बाद किसान आक्रामक हैं और उनका कहना है कि सरकार तुरंत इन क़ानूनों को वापस ले। इस मुद्दे पर मंथन करने के लिए बुधवार सुबह केंद्रीय कैबिनेट की बैठक भी बुलाई गई और इसके बाद सरकार की ओर से किसानों को एक प्रस्ताव भेजा गया है।
रात को हुई बैठक
दूसरी ओर, किसानों के उग्र तेवरों के बीच सरकार ने एक बार फिर बातचीत के लिए हाथ आगे बढ़ाया। विवाद का हल निकालने के लिए मंगलवार शाम को गृह मंत्री अमित शाह सामने आए। शाह और किसान नेताओं के बीच दिल्ली स्थित इंडियन काउंसिल ऑफ़ एग्रीकल्चर रिसर्च (आईसीएआर) के गेस्ट हाउस में काफी देर तक बैठक हुई। बैठक के बाद किसान नेताओं ने बताया कि अमित शाह ने किसानों से कहा है कि सरकार किसानों के सामने एक प्रस्ताव रखेगी।
तीनों कृषि क़ानूनों को ख़त्म करने के अलावा किसानों की यह भी मांग है कि एमएसपी पर क़ानून बनाया जाए, पराली जलाने से संबंधित अध्यादेश और बिजली बिल 2020 को भी वापस लिया जाए।
भारत बंद का रहा असर
किसानों के भारत बंद में किसान संगठनों के साथ ही कुछ राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता और ट्रेड यूनियनों से जुड़े लोग भी सड़क पर उतरे। कुछ राज्यों में बंद का व्यापक असर रहा। बिहार, बंगाल, पंजाब, झारखंड, हरियाणा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश सहित कई राज्यों में सड़कों पर भारत बंद का असर दिखा।
उत्तर प्रदेश में एसपी कार्यकर्ता किसानों के समर्थन में उतरे। पार्टी नेताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री के इशारे पर एसपी के नेताओं को घरों में नज़रबंद करना अलोकतांत्रिक एवं निंदनीय है और कई जिलों में कार्यकर्ताओं ने भारत बंद में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।
आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने भी उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद, मेरठ, जौनपुर, गौतम बुद्ध नगर सहित कई जगहों पर प्रदर्शन किया। पार्टी नेताओं ने कहा कि यूपी पुलिस ने कार्यकर्ताओं को नज़रबंद करके, गिरफ्तार करके डराने की कोशिश की।
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