हरियाणा के कैमला में सरकार की ओर से आयोजित किसान महापंचायत को किसानों ने नहीं होने दिया। पुलिस फ़ोर्स की तैनाती के बीच ही किसान आंदोलनकारी कार्यक्रम के मंच पर पहुंच गए और उसे तहस-नहस कर दिया। निश्चित रूप से लोकतंत्र में इस तरह के हिंसक व्यवहार को जायज नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन यह घटना बताती है कि बीजेपी के नेताओं के ख़िलाफ़ कितना ग़ुस्सा किसानों में है।
उत्तराखंड में विरोध
ऐसी ही एक घटना उत्तराखंड के दिनेशपुर इलाक़े में हुई है। उत्तराखंड की बीजेपी सरकार के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय का किसानों ने जोरदार विरोध किया। पांडेय ने कृषि क़ानूनों का समर्थन किया था। लेकिन किसानों को यह नागवार गुजरा। उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले में सिखों और पंजाबियों की बड़ी आबादी है और इसे उत्तराखंड का मिनी पंजाब भी कहा जाता है।
पंजाब में भी विरोध
इसके अलावा पंजाब में बीजेपी के नेताओं को किसानों के ग़ुस्से का सामना करना पड़ रहा है। कई जगहों पर बीजेपी नेताओं के कार्यक्रमों में पहुंचकर किसानों ने उनका विरोध किया है और इस दौरान पुलिस से भी वे भिड़े हैं। पूर्व कैबिनेट मंत्री तीक्ष्ण सूद के घर के बाहर तो किसानों ने गोबर से भरी ट्राली उलट दी।
इससे ये पता चलता है कि हरियाणा-पंजाब से बाहर जहां-जहां भी किसानों की आबादी है, सिखों की आबादी है, वहां पर बीजेपी के नेताओं का जबरदस्त विरोध हो रहा है। बीजेपी के सहयोगी दलों की हालत भी ख़राब है। पंजाब में उसकी सहयोगी शिरोमणि अकाली दल, राजस्थान में सहयोगी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी कृषि क़ानूनों की मुखालफत करने के साथ एनडीए से बाहर जा चुकी हैं।
निगम चुनाव में मिली हार
हरियाणा में सहयोगी जेजेपी पर जबरदस्त दबाव है और इसके नेता दुष्यंत चौटाला की किसान जमकर आलोचना कर रहे हैं। हाल ही में हुए नगर निगम के चुनाव में बीजेपी-जेजेपी गठबंधन का प्रदर्शन बेहद ख़राब रहा है। तीन नगर निगमों में से बीजेपी-जेजेपी गठबंधन को सिर्फ़ एक निगम में जीत मिली है। पिछले महीने बरोदा सीट पर हुए उपचुनाव में भी बीजेपी-जेजेपी गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा था।
इस सबके बाद जब मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने करनाल जिले के कैमला गांव में किसान महापंचायत में आने की बात कही तो किसान लामबंद होने लगे थे और उन्होंने विरोध करने की चेतावनी दी थी। कैमला में किसानों की पुलिस के साथ जबरदस्त झड़प भी हुई। पुलिस ने किसानों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े।
बहिष्कार का एलान
हरियाणा के जींद जिले की 10 खाप पंचायतों ने एलान किया है कि वे बीजेपी-जेजेपी के नेताओं को बागंड़ इलाक़े में घुसने नहीं देंगे। इसके अलावा बीजेपी नेताओं के चौपाल कार्यक्रमों का भी विरोध हो रहा है। हाल ही में किसानों ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को काले झंडे दिखाए थे। इसके बाद खट्टर सरकार ने किसानों पर हत्या के प्रयास तक के मुक़दमे दर्ज करा दिए थे।
कैमला की घटना से साफ है कि बीजेपी के लिए हालात बेहद मुश्किल हैं। पंजाब में तो उसकी राजनीतिक हैसियत ज़्यादा नहीं है लेकिन हरियाणा में सरकार में होने के बाद भी अगर मुख्यमंत्री का हेलिकॉप्टर किसान न उतरने दें तो समझ जाना चाहिए कि पानी सिर से ऊपर हो चुका है।
चौधरी बीरेंद्र सिंह समर्थन में
किसानों के इस आंदोलन को बीजेपी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह का समर्थन हासिल है। चौधरी बीरेंद्र सिंह किसानों के समर्थन में धरने पर भी बैठ चुके हैं। हरियाणा में बीजेपी-जेजेपी के नेताओं में किसानों के इस आंदोलन के कारण खलबली है क्योंकि किसानों के बिना यहां सियासत करना मुश्किल है। चौधरी बीरेंद्र सिंह के किसानों के समर्थन में आने के कारण बीजेपी की किरकिरी हो रही है।
26 जनवरी की जोरदार तैयारी
26 जनवरी को होने वाली किसान ट्रैक्टर परेड के लिए भी किसानों की जोरदार तैयारी है। भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के प्रधान जोगिंदर नैन ने कहा है कि परेड के लिए हर गांव से कम से कम 10 ट्रैक्टर ट्राली भेजी जाएंगी। इसके अलावा हर किसान परिवार से एक सदस्य इस परेड में भेजने के लिए कहा गया है। इसके लिए पूरे हरियाणा में अभियान चल रहा है।
ऐसा नहीं है कि यह विरोध सिर्फ़ हरियाणा-पंजाब में ही है। क्योंकि इन दो राज्यों में किसानों की ज़्यादा आबादी है, इसलिए विरोध ज़्यादा है। वरना कृषि क़ानूनों का विरोध दक्षिण के राज्यों तक हो रहा है और वहां से भी लोग दिल्ली आकर आंदोलन में भागीदारी कर रहे हैं।
बीजेपी और मोदी सरकार पिछले पांच महीनों से कृषि क़ानूनों के किसानों के हक़ में होने की दुहाई दे रहे हैं लेकिन किसानों का आंदोलन इस दौरान जबरदस्त विस्तार ले चुका है। दिल्ली के बॉर्डर्स पर लाखों किसान बैठे हुए हैं। ऐसे में इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि हरियाणा और पंजाब में बीजेपी नेताओं का जिस तरह विरोध हो रहा है, वह दूसरे राज्यों में भी हो सकता है।
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