बीजेपी कश्मीर के अलगाववादी नेताओं को पूरी तरह बेनक़ाब करने में जुटी हुई है। गृह मंत्रालय ने हाल ही में ऐसे अलगाववादी नेताओं के नामों की सूची जारी की है जिनके बच्चे और परिवारों के सदस्य तो विदेशों में रह रहे हैं लेकिन वे अलग कश्मीर के नाम पर घाटी में हिंसा करवाते हैं, बंद बुलाते हैं और युवाओं को देश के ख़िलाफ़ भड़काते हैं। सरकार की ऐसे अलगाववादियों पर पैनी नज़र है। बीजेपी राज्य में सरकार बनाना चाहती है और उसकी रणनीति है कि अलगाववादियों को बेनक़ाब कर वह घाटी में अपनी जड़ें जमा ले। बीजेपी पहले भी पीडीपी के साथ मिलकर सरकार चला चुकी है। राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है और उम्मीद जताई जा रही है कि छह माह बाद विधानसभा के चुनाव हो सकते हैं।
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सवाल यह है कि अलगाववादी नेताओं के प्रदर्शन की वजह से कश्मीर में पिछले 3 सालों में से 240 दिन स्कूल और कॉलेज बंद रहे हैं। इस वजह से घाटी में रहने वाले छात्रों की पढ़ाई प्रभावित होती है लेकिन दूसरी ओर अलगाववादी नेताओं के बच्चे और रिश्तेदार विदेशों में पढ़ रहे हैं और नौकरियाँ कर रहे हैं। सरकार इस बात की जाँच कर रही है कि आख़िर इनकी पढ़ाई के लिए पैसा कहाँ से आ रहा है। आशंका है कि कहीं इसमें हवाला की रकम का तो इस्तेमाल नहीं हो रहा है।
दुख़्तरान-ए-मिल्लत की प्रमुख आसिया अंद्राबी के दो बेटे हैं और दोनों ही विदेश में पढ़ाई कर रहे हैं। एक बेटा मलेशिया में पढ़ाई कर रहा है और दूसरा बेटा ऑस्ट्रेलिया में पढ़ रहा है। हुर्रियत नेता बिलाल लोन के बच्चे लंदन और ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई कर रहे हैं। तहरीक-ए-हुर्रियत के चेयरमैन अशरफ़ सहरई के दो बेटे विदेशों में पढ़ चुके हैं और सऊदी अरब में काम करते हैं। हुर्रियत काऩ्फ़्रेंस के चेयरमैन सयैद अली शाह गिलानी के दो पोते पाकिस्तान और तुर्की में नौकरियाँ कर रहे हैं।
शब्बीर शाह और आसिया अंद्राबी के परिजन भी घाटी में सरकारी नौकरी करते हैं। लेकिन फिर भी ये सारे लोग भारत के ख़िलाफ़ लड़ाई के लिए टेरर फ़ंडिंग करने वालों के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं।
ग़ौरतलब है कि टेरर फ़ंडिंग में गिरफ़्तार चार प्रमुख लोगों यासीन मलिक, शब्बीर शाह, आसिया अंद्राबी और पत्थरबाजों के पोस्टर बॉय मसरत आलम को आमने-सामने बिठाकर पूछताछ की गई थी जिसमें एनआईए को कई सनसनीखेज जानकारियाँ मिली थीं।
एनआईए के सूत्रों के मुताबिक़, घाटी में आतंकी और अलगाववादी गतिविधियों के लिए पाकिस्तान और दुबई मूल के कारोबारियों से पैसा आता था। भारत में आए इस पैसे को बाँटने के लिए आईएसआई एजेंट, दिल्ली में मौजूद पाक उच्चायोग आदि का इस्तेमाल किया जाता था। उच्चायोग में किसी कार्यक्रम के बहाने अलगाववादियों को बुलाया जाता था और वहीं पर पैसे दिए जाते थे।
अंद्राबी ने स्वीकार किया था कि विदेश से मिलने वाली रकम का इस्तेमाल घाटी में महिलाओं को भड़काने में किया जाता था।
यासीन मलिक ने माना था कि उसने 2016 में घाटी में चले हिंसक प्रदर्शन के लिए हुर्रियत नेताओं को एक मंच पर एकत्रित करने की कोशिश की थी ताकि संयुक्त आंदोलन किया जा सके। इसके लिए फ़ंड देने वालों को घाटी में कारोबार बंदी की गारंटी दी गई थी। तब लगभग चार महीने तक घाटी में आर्थिक गतिविधियाँ बंद थीं। आंदोलन के दौरान जान-माल का काफ़ी नुक़सान भी हुआ था।एनडीटीवी के मुताबिक़, श्रीनगर के पत्रकार अहमद अली फ़ैयाज़ का कहना है कि जब अलगाववादी नेता बंद का आह्वान करते हैं तो उन्हें कश्मीर के लोगों के बारे में भी सोचना चाहिए, जिनकी वे नुमाइंदगी करते हैं। फ़ैयाज़ ने कहा कि कि ये अलगाववादी नेता आए दिन कश्मीर बंद का आह्वान करते हैं लेकिन अब जो जानकारी सामने आई है उससे साबित होता है कि उन्हें बंद बुलाने का कोई अधिकार ही नहीं है।
कहा जा रहा है कि ऐसा पहली बार हुआ है जब केंद्र ने अलगाववादी नेताओं के नापाक मंसूबों को बेनकाब कर दिया है। हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में बताया था कि किया था कि मोदी सरकार ने अलगाववादियों को दी गई सुरक्षा वापस ले ली है। शाह ने कहा था कि यह सुरक्षा ऐसे लोगों को दी जाती थी जो देश विरोधी बातें करते थे। केंद्र सरकार ने पुलवामा हमले के बाद हुर्रियत समेत अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा वापस लेने के साथ ही उनपर टेरर फ़ंडिंग को लेकर एनआईए और ईडी का शिकंजा कस दिया था।
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लेकिन यह बात वास्तव में हैरान करने वाली है कि जो अलगाववादी आए दिन कश्मीर बंद बुलाकर हज़ारों बच्चों के भविष्य से खेल रहे हैं, वे अपने बच्चों को विदेशों में पढ़ा रहे हैं। यह कश्मीर के बच्चों के साथ धोखा नहीं तो और क्या है। इस सूची के सामने आने के बाद अलगाववादियों के लिए घाटी के लोगों के सवालों का जवाब देना काफ़ी मुश्किल होगा।
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