कर्नाटक में हिजाब विवाद के मामले में हाई कोर्ट ने मंगलवार को अपना फैसला सुना दिया है। हाई कोर्ट ने कहा है कि शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर बैन जारी रहेगा और यह जरूरी धार्मिक प्रथा नहीं है। अदालत ने इस मामले में दायर सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया।
कर्नाटक हाई कोर्ट ने पिछले महीने हिजाब, भगवा स्कार्फ या किसी अन्य तरह के धार्मिक कपड़ों पर अस्थाई रूप से रोक लगा दी थी।
यह फैसला उन छात्राओं के लिए बहुत बड़ा झटका है जिन्होंने हिजाब पर बैन को अदालत में चुनौती दी थी। इस मामले में अदालत में 5 याचिकाएं दायर की गई थीं। याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत में पेश हुए एडवोकेट केवी धनंजय ने कहा है कि वे इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।
अदालत ने तैयार किए 4 सवाल
अदालत ने कहा कि उसने इस मामले में सुनवाई के दौरान प्रमुख रूप से चार सवालों को तैयार किया। पहला सवाल यह कि हिजाब पहनना क्या इसलाम में एक जरूरी धार्मिक प्रथा है और अनुच्छेद 25 के तहत इसे सुरक्षा हासिल है। दूसरा सवाल यह कि स्कूल यूनिफार्म को तय करना क्या अधिकारों का उल्लंघन है।
तीसरा सवाल यह कि क्या 5 फरवरी को दिया गया आदेश अधूरा था और क्या यह अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है और चौथा यह कि क्या कॉलेज के प्रशासन के खिलाफ किसी तरह का अनुशासनात्मक जांच का कोई मामला बनता है। बता दें कि 5 फरवरी को कर्नाटक सरकार ने स्कूलों में ऐसे कपड़ों को पहनने पर रोक लगा दी थी जो ग़ैर क़ानूनी थे।
अदालत ने खुद ही इन 4 सवालों के जवाब दिए और पहले सवाल के जवाब में कहा कि किसी मुसलिम महिला का हिजाब पहनना इसलाम में जरूरी धार्मिक प्रथा नहीं है। दूसरे सवाल का जवाब यह कि स्कूल की यूनिफ़ॉर्म को तय करने की संवैधानिक रूप से अनुमति दी जा सकती है और छात्र इसका विरोध नहीं कर सकते। तीसरे सवाल के जवाब में अदालत ने कहा कि 5 फरवरी का जो शासनादेश सरकार ने जारी किया था उसके पास ऐसा करने की शक्ति है और यह अमान्य नहीं है।
जबकि चौथे सवाल के जवाब में अदालत ने कहा कि अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का कोई मामला नहीं बनता है। अदालत ने इसके बाद सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया।
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यह विवाद 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान शुरू हुआ था और देखते ही देखते देशभर में इसका समर्थन और विरोध होने लगा। फ़ैसले के मद्देनजर राज्य में धारा 144 लागू कर दी गई है। मेंगलुरु में सुरक्षा के मद्देनजर स्कूल, कॉलेज बंद कर दिए गए हैं।
हिजाब विवाद जनवरी में शुरू हुआ था जब उडुपी के एक स्कूल की छात्राओं ने शिक्षकों के अनुरोध के बावजूद हिजाब हटाने से इनकार कर दिया था। इसके बाद पांच छात्राएं कोर्ट गईं। छात्रों के एक वर्ग ने भगवा स्कार्फ पहन कर हिजाब का विरोध किया था।
उडुपी की कुछ छात्राओं ने अदालत में जाकर राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में स्कार्फ पर पाबंदी को चुनौती दी थी।
छात्राओं का तर्क था कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब के इस्तेमाल पर रोक लगाता हो। उनका तर्क है कि हिजाब, संविधान द्वारा दी गई धार्मिक स्वतंत्रता के तहत संरक्षित है और कोई भी कॉलेज मैनेजमेंट यह निर्णय लेने के लिए बाध्य नहीं है कि सार्वजनिक व्यवस्था के उल्लंघन को देखते हुए इसे प्रतिबंधित किया जा सकता है या नहीं।
हिजाब के समर्थन में दलित छात्रों ने नीले रंग को अपनाया। इस बीच, हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई करने वाले न्यायाधीश ने इसे एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया और एक अंतरिम आदेश में फैसला सुनाया कि स्कूल और कॉलेज फिर से खुल सकते हैं लेकिन हिजाब सहित किसी भी धार्मिक कपड़ों की अनुमति नहीं दी जाएगी।
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