कर्नाटक, गोवा के बाद क्या अब बीजेपी की नज़र पश्चिम बंगाल पर है? यह सवाल इसलिए सामने आया है क्योंकि बीजेपी नेता मुकुल रॉय ने दावा किया है कि तृणमूल कांग्रेस, वाम दलों और कांग्रेस के 107 विधायक उनके संपर्क में हैं। अगर रॉय के दावे पर यकीन करें तो यह माना जा सकता है कि वहाँ की ममता बनर्जी सरकार का गिरना तय है।बता दें कि रॉय पहले तृणमूल में ही थे और ममता बनर्जी के क़रीबी माने जाते थे। लेकिन 2017 में वह तृणमूल छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे।
294 सदस्यों वाली पश्चिम बंगाल विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस के 211 विधायक हैं। बहुमत के लिए 148 विधायकों की ज़रूरत है। ऐसे में यदि तृणमूल के 70 विधायक भी पाला बदल कर बीजेपी में चले जाते हैं तो ममता बनर्जी की सरकार गिर सकती है क्योंकि तब उसके पास विधानसभा में सिर्फ़ 141 विधायक ही रह जाएँगे। और रॉय के 107 विधायकों के दावे को देखते हुए ऐसा होना मुश्किल नहीं लगता। इसे इसलिए भी मुश्किल नहीं माना जा सकता क्योंकि हाल ही में तृणमूल के कई पार्षद, संगठन के पदाधिकारी बीजेपी में शामिल हो गए थे। बता दें कि बीजेपी ने दावा किया था कि पश्चिम बंगाल से एक के बाद एक सात चरणों में दूसरे दलों के नेता बीजेपी में शामिल होंगे।
लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एक रैली में कहा था कि ममता बनर्जी की पार्टी के 40 विधायक उनके संपर्क में हैं और वे लोकसभा चुनाव के बाद पाला बदल लेंगे।
रॉय ने दावा किया है कि ये सभी 107 विधायक अपनी पार्टी छोड़ने के लिए तैयार हैं। रॉय ने यह भी कहा कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सेवाएँ लेने के बाद यह साफ़ हो गया है कि तृणमूल मान चुकी है कि ममता बनर्जी का करिश्मा ख़त्म हो गया है और उसे अपनी सरकार बचाने के लिए एक चुनावी रणनीतिकार का सहारा लेना पड़ रहा है।
पश्चिम बंगाल में 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अभी से सियासी बिसात बिछनी शुरू हो गई है और बंगाल बीजेपी और तृणमूल की सियासी लड़ाई का अखाड़ा बन गया है। सियासी जानकारों के मुताबिक़, बीजेपी की पैनी नज़र 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर है। लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही बीजेपी काफ़ी उत्साहित है।
ग़ौरतलब है कि इस बार पश्चिम बंगाल की कुल 42 सीटों में से 18 पर बीजेपी को जीत मिली है जबकि 2014 में वह सिर्फ़ 2 सीटों पर जीती थी। जबकि तृणमूल 2014 में 34 सीटों पर जीती थी और इस बार उसकी सीटें घटकर 22 हो गई हैं।
बीजेपी ने वोट शेयर में भी लंबी छलांग लगाते हुए 2014 में मिले 23.23% वोट के मुक़ाबले इस बार 40.25% वोट हासिल किए हैं। जबकि तृणमूल का वोट शेयर पिछली बार के मुक़ाबले (39.79%) थोड़ा सा बढ़ा है और उसे 43.28% वोट मिले हैं।
इसके अलावा बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस एक-दूसरे के कार्यकर्ताओं पर हत्या का आरोप लगाते रहे हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान भी लगभग हर चरण में राज्य में हिंसा हुई है।
इस तरह देखें तो जहाँ विपक्षी दलों की सरकारें हैं, वहाँ के भी विधायक अपनी पार्टियों को छोड़कर बीजेपी में शामिल हो रहे हैं और जहाँ बीजेपी की सरकारें हैं, वहाँ भी विपक्षी दलों के विधायक बीजेपी में शामिल हो रहे हैं। ऐसे में मजबूत लोकतंत्र की उम्मीद कैसे की जा सकती है और इसी ओर बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने हाल ही में इशारा किया है। स्वामी ने कहा है कि अगर विपक्ष नहीं बचा और सिर्फ़ बीजेपी रही तो इससे लोकतंत्र कमजोर हो जाएगा।
जैसा कि बीजेपी नकारती रही है कि कांग्रेस और अन्य दल अपने विधायकों को नहीं संभाल पा रहे हैं और उनके विधायकों के अपनी पार्टी से इस्तीफ़ा देने में बीजेपी का कोई हाथ नहीं है। लेकिन तब भी देश में ऐसा ठोस दल-बदल क़ानून तो बनना ही चाहिए कि एक-दो तो छोड़िए अगर दो-तिहाई विधायक या सांसद भी इस्तीफ़ा दे देते हैं तो भी उनकी सदस्यता चली जानी चाहिए। वरना, तो विधायकों और सांसदों की ख़रीद-फरोख़्त ऐसे ही चलती रहेगी और लोकतंत्र का तमाशा बनकर रह जाएगा।
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