वेज बैंक का महत्व क्या है
इस साल भारतीय मछुआरों ने हालांकि श्रीलंकाई अधिकारियों द्वारा तमिल मछुआरों की गिरफ्तारी के विरोध में त्यौहार का बहिष्कार किया। यह बहिष्कार मीडिया की सुर्खियां बटोर नहीं सका। लेकिन भारतीय मछुआरों के लिए श्रीलंकाई जल क्षेत्र मुसीबत वाला बन गया है। आए दिन पकड़-धकड़ होती रहती है। लेकिन भारत सरकार की ओर से इसे कभी मुद्दा बनाने की कोशिश नहीं की गई। मौजूदा भारत सरकार की नजर में महत्वपूर्ण मुद्दा कुछ और है।
कैसे शुरू हुआ विवादः इस छोटे से द्वीप का इस्तेमाल मछली पकड़ने के जाल सुखाने और मछुआरों के आराम करने, चर्च में प्रार्थना करने और गपशप के लिए किया जाता है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में एक ट्वीट किया कि कांग्रेस ने कच्चातिव को 1970 के दशक में श्रीलंका को "बेवकूफी से सौंप दिया।" मोदी ने इस विवाद में तमिलनाडु की क्षेत्रीय पार्टी डीएमके को भी टारगेट किया। मोदी ने कच्चातिव द्वीप के लिए द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) और कांग्रेस की आलोचना करते हुए कहा कि तमिलनाडु के सत्तारूढ़ गठबंधन दलों ने राज्य के हितों की रक्षा के लिए कुछ नहीं किया है। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले विपक्ष पर प्रधानमंत्री के आरोप से विवाद बढ़ गया है।
Eye opening and startling!
— Narendra Modi (@narendramodi) March 31, 2024
New facts reveal how Congress callously gave away #Katchatheevu.
This has angered every Indian and reaffirmed in people’s minds- we can’t ever trust Congress!
Weakening India’s unity, integrity and interests has been Congress’ way of working for…
लोकसभा चुनाव से कैसे है संबंधः प्रधानमंत्री के ट्वीट के बाद भाजपाई नेता और केंद्र सरकार के मंत्री कांग्रेस और तमिलनाडु के सीएम स्टालिन पर टूट पड़े। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर डाली। उन्होंने आरोप लगाया कि यह मुद्दा "जनता की नजरों से बहुत लंबे समय तक छिपा रहा था।" राजनीति की समझ रखने वाला आसानी से समझ सकता है कि मोदी से लेकर जयशंकर तक ने यह मुद्दा क्यों उठाया होगा। तमिलनाडु में भाजपा तमिल मतदाताओं का वोट कभी प्राप्त नहीं कर पाई यानी उसकी सीटें कभी नहीं आईं। अब 400 सीटों का मोदी लक्ष्य पाने के लिए हर हथियार का इस्तेमाल भाजपा कर रही है। मोदी और भाजपा को लगता है कि यह मुद्दा उठाकर वो तमिलनाडु में डीएमके औऱ कांग्रेस को कमजोर कर देगी और कुछ सीटें हासिल कर लेगी। 2019 में डीएमके गठबंधन को 39 में से 38 सीटें मिली थीं। 2014 के लोकसभा चुनाव में जयललिता के नेतृत्व वाली एआईएडीएमके ने 39 में से 37 सीटें हासिल की थीं। उसने बिना किसी गठबंधन के चुनाव लड़ा था। इन दोनों आंकड़ों से साफ है कि मोदी लहर के बावजूद भाजपा की दाल पिछले दो चुनावों में तमिलनाडु में नहीं गली। इससे पहले के चुनाव में भी भाजपा कभी बड़े स्टेकहोल्डर के तौर पर तमिलनाडु में नहीं उभरी। जबकि तमिलनाडु में दो प्रमुख क्षेत्रीय दल डीएमके और एआईडीएमके के अलावा कांग्रेस बड़ी स्टेकहोल्डर रही है। बहुत साफ है कि मोदी और उनकी मंडली ने कच्चातिव द्वीप का मुद्दा लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर उठाया है।
मुद्दे के समय (टाइमिंग) पर सवाल
भाजपा और मोदी का पिछला स्टैंड क्या थाः एआईएडीएमके नेता और तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री स्व. जयललिता समेत राज्य के कई नेताओं ने भी इस मुद्दे को उठाया था। जयललिता ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था। दरअसल, अगस्त 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि कच्चातिव द्वीप को वापस पाने के लिए देश को युद्ध छेड़ना होगा। पिछले साल तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की भारत यात्रा के दौरान इस मामले पर चर्चा की जानी चाहिए। मोदी सरकार ने इस मुद्दे को श्रीलंकाई पीएम के सामने नहीं उठाया। जिस भाजपा ने 2014 में सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि कच्चातिव को पाने के लिए श्रीलंका के खिलाफ युद्ध छेड़ना होगा। 2014 से 2024 तक खामोश रही। उसने कोई युद्ध नहीं छेड़ा। लेकिन उसने कांग्रेस और डीएमके को राजनीतिक रूप से घेरने के लिए मुद्दा उठा दिया और बाकियों से उठवा दिया।
वेज बैंक मुद्दा क्या है
इतिहास में तो यही लिखा है कि 1974 में इंदिरा गांधी ने यह द्वीप श्रीलंका को एक समझौते में सौंप दिया। लेकिन भाजपा, मोदी और उनकी मंडली को शायद यह याद नहीं है कि 1976 में इंदिरा गांधी ने इस द्वीप से भी बड़ी जगह श्रीलंका से हासिल की थी। दरअसल, श्रीलंका के साथ 1976 में हुए एक अलग समझौते में भारत को केप कोमोरिन के पास स्थित एक बहुत बड़े क्षेत्र वेज या वाज बैंक (Wadge Bank) पर विशेष अधिकार मिल गया। वेज बैंक खनिज संपदाओं से भरपूर जगह है।श्रीलंका के पूर्व दूत को भी सुनिए
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में श्रीलंका के पूर्व दूत ऑस्टिन फर्नांडो ने कहा कि भाजपा ने भले ही तमिल "वोटरों को आकर्षित" के लिए यह कार्ड खेला हो, लेकिन भारत सरकार के लिए 1974 के समझौते से पीछे हटना मुश्किल होगा। अनुभवी अधिकारी फर्नांडो ने फोन पर इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि यदि भारत सरकार श्रीलंकाई समुद्री अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा को पार करती है, तो इसे "श्रीलंकाई संप्रभुता के उल्लंघन" के रूप में देखा जाएगा। उन्होंने 1980 के दशक के अंत में भारतीय शांति सेना पर श्रीलंकाई राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा के बयानों को याद दिलाया। उन्होंने सवाल किया- अगर पाकिस्तान गोवा के पास इस तरह के समुद्री अतिक्रमण का प्रस्ताव रखता है, तो क्या भारत इसे बर्दाश्त करेगा? या अगर बांग्लादेश बंगाल की खाड़ी में ऐसा कुछ करता है, तो भारत की प्रतिक्रिया क्या होगी?'' फर्नांडो 2018 और 2020 के बीच भारत में श्रीलंका के उच्चायुक्त थे। फर्नांडो ने कहा, "तमिलनाडु में बीजेपी की तुलनात्मक रूप से ज्यादा पकड़ नहीं है, इसलिए इसने यह मुहिम शुरू कर दी है।"
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