बीजेपी ने उप राष्ट्रपति के चुनाव में एक ऐसे नाम पर दांव खेला जिसके बारे में चर्चा दूर-दूर तक नहीं थी। पार्टी ने राजस्थान से आने वाले और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ को उम्मीदवार बनाया है। धनखड़ का नाम सामने आते ही यह सवाल पैदा होता है कि आखिर धनखड़ ही क्यों। इस सवाल का जवाब दिल्ली और इससे लगते राज्यों की सियासत में जाट राजनीति के ताकतवर होने के पीछे छुपा है।
किसान आंदोलन के दौरान बड़ी संख्या में जाट नेताओं ने मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। हरियाणा, राजस्थान, पश्चिम उत्तर प्रदेश, पंजाब में यह आंदोलन बहुत ताकतवर था और यहां पर बड़े जाट नेताओं ने इस आंदोलन की कमान संभाली थी। तब हालात इतने खराब थे कि बीजेपी के नेता अपनी ही जाट बिरादरी के लोगों के बीच में जाने में कांपते थे।
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इसलिए जब मौका उप राष्ट्रपति के चुनाव का आया तो शायद इसे ही ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने जगदीप धनखड़ के नाम पर दांव लगाया। लेकिन जगदीप धनखड़ अगर उप राष्ट्रपति बन जाते हैं तो क्या बीजेपी से जाटों की नाराजगी दूर होगी? यह नाराजगी होने की बात किसान आंदोलन और जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान और उसके बाद से कही जाती रही है।
इस सवाल के जवाब से पहले यह देखना होगा कि जाटों की राजनीतिक ताकत क्या है।
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चौधरी साहब का तमगा
जाटों की बड़ी ताकत इनके पास जमीन होना है। इस वजह से इन्हें जमींदार कहा जाता है। ये फसल उगाते हैं और इनका सम्मान चौधरी साहब के रूप में हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के बाहरी इलाकों में किया जाता है। चौधरी साहब का मतलब ऐसे शख्स से है जिसकी गांव और अपने इलाके में चौधर है।
भारत के तमाम बड़े किसान और जाट नेताओं में महेंद्र सिंह टिकैत पश्चिमी उत्तर प्रदेश से थे और पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल हरियाणा से थे। किसान आंदोलन में भी महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे राकेश और नरेश टिकैत ने कमान संभाली थी।
किसान आंदोलन के दौरान जाट राजनीति में आए उबाल के बाद बीजेपी सहम गई थी।
किस राज्य में कितनी ताकत?
राजस्थान में जाट सबसे बड़ी आबादी वाला समुदाय है यहां जाटों की आबादी 10 फीसद से ज्यादा है और 200 विधानसभा सीटों में से 80 से 90 सीटों पर इनका असर है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह, चौधरी अजीत सिंह उनके बेटे जयंत चौधरी, केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान जाट सियासत के बड़े नाम हैं। यहां जाट समुदाय की आबादी 18 फीसद है।
दिल्ली में द्वारका से लेकर पालम, महरौली,नजफगढ़, बिजवासन, मुंडका, नांगलोई, नरेला, बवाना, मुनिरका आदि इलाकों में जाटों के गांव हैं। साहिब सिंह वर्मा जाट बिरादरी से थे और अब उनके बेटे प्रवेश वर्मा जाट चेहरे के तौर पर बीजेपी के सांसद हैं। राजधानी में जाट 6 फीसद के आसपास हैं।
हरियाणा को तो जाटों का गढ़ कहा जाता है और यहां अधिकतर मुख्यमंत्री जाट बिरादरी से ही रहे हैं। लेकिन पिछले दो विधानसभा चुनाव में हरियाणा में बीजेपी ने गैर जाट मुख्यमंत्री का दांव खेला। इसे लेकर जाट समुदाय की नाराजगी खुलकर भी सामने आई। हरियाणा में जाटों की आबादी 25 फीसद है।
पंजाब में सिख जाटों की आबादी 22 से 25 फीसदी है। अधिकतर मुख्यमंत्री वहां जाट समुदाय से ही रहे हैं।
ओबीसी और किसान कार्ड
जाट समुदाय ओबीसी वर्ग में आता है इसलिए बीजेपी ने एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश की है। वह जगदीप धनखड़ को ओबीसी के चेहरे और किसान पुत्र के रूप में पेश कर रही है। जगदीप धनखड़ उप राष्ट्रपति बन गए तो अगले साल होने वाले राजस्थान के विधानसभा चुनाव में और उसके कुछ महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव 2024 तक बीजेपी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े हुए संगठन जाट नौजवानों, बुजुर्ग जाटों के बीच में यह मैसेज देने का काम करेंगे कि बीजेपी ने इस बिरादरी के नेता को बड़ा सम्मान दिया है।
बीजेपी के इस कदम के बाद जाट समुदाय की नाराजगी कितनी कम होगी यह राजस्थान, हरियाणा के चुनाव या फिर लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों से पता चलेगा।
लेकिन इतना तय है कि बीजेपी ने धनखड़ को आगे करके जाट समुदाय को मनाने की कोशिश की है और उसे इस क़दम से थोड़ा बहुत सियासी फायदा मिलने से इनकार नहीं किया जा सकता।
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