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ज़ोमैटो: धार्मिक आधार पर नफ़रत फ़ैलाने वालों को मिल रहा सपोर्ट

ऑनलाइन फ़ूड सर्विस देने वाली कंपनी ज़ोमैटो के एक मुसलिम डिलीवरी बॉय से खाना लेने से इनकार करने के बाद सोशल मीडिया पर तूफ़ान मचा रहा। बता दें कि मध्य प्रदेश के जबलपुर के रहने वाले पंडित अमित शुक्ला नाम के ग्राहक ने ज़ोमैटो के मुसलिम डिलीवरी बॉय से खाना लेने से इनकार कर दिया। ग्राहक ने कहा कि अभी सावन का महीना चल रहा है और वह मुसलिम लड़के के हाथ से डिलीवर किया हुआ खाना नहीं खा सकता। इस पर ज़ोमैटो ने भी क़रारा जवाब देते हुए ट्वीट किया कि खाने का कोई धर्म नहीं होता, खाना ख़ुद एक धर्म है।
इसके बाद तो ट्विटर पर संग्राम छिड़ गया और ट्विटर पर एक पक्ष की ओर से #IStandWithAmit और दूसरे पक्ष की ओर से #IStandWithZomato ट्रेंड करवाया गया। इसमें ज़ोमैटो का साथ देने वाले लोगों में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस.वाई. क़ुरैशी जैसी हस्तियों के भी नाम हैं। लेकिन सवाल यह है कि धर्म विशेष के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने वालों को सोशल मीडिया पर अच्छा ख़ासा समर्थन कैसे मिल रहा है। डिलीवरी बॉय का नाम फैयाज़ है और उसने कहा है कि उसे इससे बुरा ज़रूर लगा है लेकिन वह एक ग़रीब व्यक्ति है और उसे ऐसी बातों से जूझना पड़ता है।
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#IStandWithAmit हैशटैग के साथ ट्वीट करने वाले यूजर्स ने पूरी तरह अमित शुक्ला का बचाव किया। इन यूजर्स ने कहा कि अमित का क़दम पूरी तरह सही थी। एक यूजर ने लिखा, ‘क्या आज़ादी की स्वतंत्रता केवल बीफ़ खाने, राष्ट्रगान के सम्मान में नहीं खड़े होने, प्रियंका चोपड़ा के सिगरेट पीने और महिलाओं के सबरीमाला में प्रवेश तक ही सीमित है। सावन के दौरान क्या अमित शुक्ला के एक ग़ैर-हिंदू डिलीवरी बॉय से खाना न लेने पर इतना ढोंग क्यों किया जा रहा है?’
Jabalpur man amit shukla Zomato muslim rider Saavan - Satya Hindi
#IStandWithAmit हैशटैग का सपोर्ट करने वाले कुछ यूजर्स ने लिखा कि ज़ोमैटो को सबक सिखाया जाना ज़रूरी है और उन्होंने कंपनी का एप अनइंस्टाल करने के स्क्रीनशॉट को पोस्ट किया।
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जबकि #IStandWithZomato हैशटैग को सपोर्ट करने वाले यश चव्हाण नाम के ट्विटर यूजर ने लिखा कि उनके हिसाब से मुसलिम बॉय से डिलिवरी लेने से मना करने वाले लोग अनपढ़ हैं और आधुनिक समय में भी ऐसी सोच को बढ़ावा देते हैं। उन्होंने कहा कि वह हिंदू हैं और वह ज़ोमैटो के ख़िलाफ़ चल रहे हैशटैग के ख़िलाफ़ हैं। 
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#IStandWithZomato हैशटैग पर दीपिका भारद्वाज नाम की ट्विटर यूजर ने लिखा कि उन्हें इस घटना से बुरा लगा है कि कुछ लोगों के कारण ज़ोमैटो को ग़लत कहा जा रहा है। उन्होंने कहा कि ज़ोमैटो को ऐसे लोगों की बात पर ध्यान नहीं देना चाहिए। 
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जॉयदीप मजूमदार नाम के ट्विटर यूजर ने लिखा कि वह ज़ोमैटो के इस जवाब से सहमत हैं कि खाने का कोई धर्म नहीं होता। उन्होंने अमित शुक्ला से पूछा है कि क्या वह ब्लड बैंक में भी धर्म खोजते हैं। 
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लेकिन कुछ ऐसे भी ट्विटर यूज़र थे, जिनकी राय जुदा थी। अनुषिका खंडेलवाल नाम की ट्विटर यूजर ने लिखा कि उन्हें ज़ोमैटो के डिलीवरी बॉय के धर्म से कोई परेशानी नहीं है। लेकिन इस मामले में कंपनी पाखंड कर रही है। 
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‘ओला’ कैब पर हुआ था विवाद

ऐसा नहीं है कि हिंदू-मुसलमान के नाम पर धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा या धर्म के आधार पर नफ़रत फैलाने वाला यह मामला पहली बार सामने आया है। समाज में धार्मिक आधार पर फैलाई जा रही नफ़रत का असर इससे पहले तब देखने को मिला था जब अप्रैल 2018 में अभिषेक मिश्रा नाम के एक व्यक्ति ने मुसलिम ड्राइवर होने के कारण ‘ओला’ कैब को कैंसिल कर दिया था। अभिषेक ने दावा किया था कि वह विश्व हिंदू परिषद से जुड़ा है और उसने अपनी कैब इसलिए कैंसिल कर दी थी क्योंकि वह अपना पैसा जिहादी लोगों को नहीं देना चाहते। ख़ास बात यह है कि अभिषेक मिश्रा को बीजेपी के कुछ बड़े नेता भी फॉलो करते थे। तब भी अभिषेक मिश्रा को ट्विटर पर अच्छा-ख़ासा समर्थन मिला था।
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रैगर के समर्थन में किया था उत्पात

पिछले कुछ सालों में ऐसे ही कई मामले सामने आए हैं, जब एक धर्म विशेष के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाई गई और उसके बचाव में सैकड़ों लोग कूद पड़े। ऐसा ही एक मामला दिसंबर, 2017 में राजस्‍थान के उदयपुर में हुआ था। जब शंभूलाल रैगर के समर्थकों ने अदालत परिसर में जमकर उत्पात मचाया था। 

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ख़बरों के मुताबिक़, रैगर के सैकड़ाें समर्थकों ने पुलिस पर भी हमला किया था और कई पुलिसकर्मियों को जख़्मी कर दिया था। रैगर ने पश्चिम बंगाल से आए मजदूर अफराजुल को राजस्थान के राजसमंद में कुल्हाड़ी से काट डाला था और फिर आग लगाकर उसकी हत्या कर दी थी। इस घटना का वीडियो भी वायरल हुआ था जिसमें रैगर लव जिहाद के कारण अफराजुल की हत्या करने की बात करता नज़र आया था।
तब कई व्हाट्स एप ग्रुपों में इस तरह के संदेशों की बाढ़ आ गई थी। 
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लेकिन ओला, ज़ोमैटो सिर्फ़ एक-दो प्रकरण नहीं हैं। धर्म के आधार पर नफ़रत फैलाने के ऐसे मामले मॉब लिन्चिंग में तब्दील हो चुके हैं। ऐसी कई घटनाएँ हो चुकी हैं जिनमें मुसलमानों को धर्म आधारित नफ़रत का शिकार बनाकर उनकी हत्या तक कर दी गई है। कभी गोरक्षा के नाम पर तो कभी गो मांस घर पर रखे होने या पकाने के शक में। अख़लाक से लेकर रक़बर ख़ान और तबरेज़ अंसारी तक कई नाम इस नफ़रत का शिकार हो चुके हैं।

दुनिया भर में हुई किरकिरी

पिछले ही महीने अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट की एक रिपोर्ट ‘एनुअल 2018 इंटरनेशनल रिलीजियस फ़्रीडम’ आई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में सत्तारूढ़ बीजेपी के वरिष्ठ सदस्य अल्पसंख्यकों के विरुद्ध भड़काऊ बयान देते रहते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन बयानों से प्रेरित होकर अतिवादी हिंदू संगठन, जिनको सरकार और पुलिस का समर्थन मिलता है, कभी ‘जय श्री राम’ के नाम पर तो कभी गाय के नाम पर खुलेआम अल्पसंख्यकों से मारपीट करते हैं और हत्या भी कर देते हैं। हालाँकि अंतरराष्ट्रीय जगत में किरकिरी होने के बाद सरकार ने इस रिपोर्ट को ख़ारिज़ कर दिया था और कहा था कि हम धर्मनिरपेक्षता का पूरी तरह से पालन करते हैं। सरकार ने यह भी कहा था कि हम सभी वर्गों को सुरक्षित रखने का काम करते हैं और हमारे आंतरिक मामलों में अमेरिका को दख़ल नहीं देना चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ का नारा दिया है। दूसरी बार लोकसभा चुनाव जीतने के बाद अपने पहले भाषण में उन्होंने कहा था कि भारत में आज तक अल्पसंख्यकों के साथ छल हुआ है और अब उनकी सरकार अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतेगी। लेकिन जिस तरह का समर्थन नफ़रत फैलाने वालों को मिलता दिख रहा है, उससे पता चलता है कि धर्म विशेष के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने वालों की एक लंबी जमात इस देश में तैयार हो चुकी है। हालाँकि कुछ लोग पुरजोर ढंग से इसका विरोध कर रहे हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय जगत में किरकिरी होने के बाद भी हालात सुधर नहीं रहे हैं। 

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क़मर वहीद नक़वी
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