सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 पर गुरुवार को पांचवे दिन भी सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है।
गुरुवार को सीनियर एडवोकेट जफर शाह ने इसमें अपनी दलीलें दी। जफर शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर को संवैधानिक स्वायत्तता प्राप्त थी जिसे रद्द कर दिया गया है। हम सुप्रीम कोर्ट के समक्ष केवल उस संवैधानिक स्वायत्तता का दावा कर रहे हैं जो हमसे छीन ली गई है। हम उस संवैधानिक स्वायत्तता को कैसे पा सकते हैं? अनुच्छेद 370 एक कंकाल की तरह था, उसे सिर्फ इसलिए हटा दिया गया क्योंकि कहीं न कहीं वह किसी को परेशान कर रहा था। उन्होंने सवाल उठाया कि कि उन संवैधानिक प्रावधानों के बारे में क्या जिनके लिए सहमति आवश्यक है और राष्ट्रपति को सहमति के बाद संशोधनों के साथ इसे लागू करना है? क्या ऐसा प्रावधान अन्य राज्यों के लिए भी है?'
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राज्य के कई कानून केंद्रीय कानून के समान थे
सीनियर एडवोकेट जफर शाह ने कहा कि राज्य विधानसभा द्वारा कानून बनाने की शक्ति महत्वपूर्ण थी। राज्य के कई कानून केंद्रीय कानून के समान थे जैसे निवारक निरोध अधिनियम केंद्रीय कानून के समान था। रणबीर दंड संहिता आईपीसी के समान थी। राज्य विधानसभा आरपीसी में संशोधन कर सकती थी,आईपीसी में नहीं। कानून बनाने की शक्ति ने हमें संवैधानिक स्वायत्तता प्रदान की। शाह ने कहा कि महाराजा की सारी शक्तियां आर्टिकल 370 में समाहित हो गईं थी। कानून बनाने की शक्ति सबसे महत्वपूर्ण शक्ति थी जो महाराजा ने अपने पास रखी थी। जफर शाह ने अपनी दलीलें देते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर के लिए यह विशेष व्यवहार क्यों? सिर्फ इसलिए क्योंकि कोई विलय समझौता नहीं हुआ था इसलिए इस स्वायत्तता को बनाए रखना होगा।लेकिन कौन सी संविधान सभा?
सुनवाई कर रही बेंच के जस्टिस कौल ने कहा, यह कहना मुश्किल होगा कि अनुच्छेद 370 का चरित्र कुछ ऐसा है कि इसमें संशोधन नहीं किया जा सकता। इस जफर शाह ने कहा, अगर हमें अनुच्छेद 370 नहीं चाहिए तो हमें यह देखना होगा कि क्या यह अस्थायी था या स्थायी हो गया, क्योंकि इसे हटाने के लिए मशीनरी उपलब्ध नहीं थी।इस पर जस्टिस कौल ने उनसे पूछा कि यदि उस मशीनरी को दोबारा बना दिया जाए, तो क्या 370 को हटाया जा सकता है? शाह इसके जवाब में कहा कि यानी संविधान सभा दोबारा बनाई जाएगी, लेकिन कौन सी संविधान सभा?शाह ने कहा कि अगर पूर्ण एकीकरण करना है तो विलय समझौता करना होगा। उनके इस तर्क पर जस्टिस कौल ने कहा कि क्या यह सब कुछ इस एक बात पर निर्भर नहीं है कि इसके लिए अपनाई गई प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण थी या नहीं, यहां सवाल यही है।
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संसद अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकती है?
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सीमित अर्थों में एकमात्र सवाल यह था कि क्या संसद इस मामले में अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकती है। उन्होंने कहा कि राज्य के साथ सहमति केवल जम्मू-कश्मीर के लिए अनोखी बात नहीं है। अनुच्छेद 248 देखें। भारत की संसद उस क्षेत्र पर भी कानून बना सकती है जो केवल राज्य सूची में है, लेकिन इसके लिए उस राज्य की सहमति की जरूरत होती है। लेकिन इससे संघ की संप्रभुता पर कोई असर नहीं पड़ता इसलिए यह जम्मू-कश्मीर के लिए कोई अनोखी बात नहीं है।बुधवार को वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने दी थी दलीलें
इससे पहले, चौथे दिन बुधवार को हुई सुनवाई में याचिकाकर्ता मुजफ्फर इकबाल खान की ओर से वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम पेश हुए थे। उन्होंने दलीलें दी थी कि जम्मू-कश्मीर संविधान सभा अनुच्छेद 370 को निरस्त नहीं करना चाहती थी। उसने इसे इसे जारी रखने की अनुमति दी थी।इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि भारतीय संविधान जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा की बात करता है। यह उसके संविधान का बिल्कुल भी उल्लेख नहीं करता है।
इससे पहले हुई सुनवाई में सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलील दी थी कि एक विधानसभा को संविधान सभा में परिवर्तित नहीं किया जा सकता। उन्होनें तर्क दिया था कि एकतरफा कार्यकारी निर्णय किसी रिश्ते की शर्तों को नहीं बदल सकता है जो संवैधानिक रूप से अनुच्छेद 370 में अंतर्निहित हैं।
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