हाल ही में पाँच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों का विश्लेषण करने से यह तथ्य उभर कर सामने आता है कि प्रचार कर पार्टी को जीत दिलवाने के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बेहतर प्रदर्शन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का रहा।
प्रधानमंत्री ने 70 फ़ीसद रैलियाँ मध्य प्रदेश और राजस्थान में कीं। वहाँ उन्होंने 52 सीटों के लिए प्रचार किया, लेकिन बीजेपी 22 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी। बाक़ी के तीन राज्यों, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिज़ोरम में मोदी का प्रदर्शन बदतर रहा। वहाँ उन्होंने 28 सीटों पर पार्टी के लिए वोट माँगे, लेकिन सिर्फ़ एक सीट पर बीजेपी उम्मीदवार जीत सका।
आदित्यनाथ ने चार राज्यों की 69 सीटों के लिए पार्टी के लिए चुनाव प्रचार किया। बीजेपी उम्मीदवार 27 सीटों पर कामयाब रहे। गोरक्षपीठ के पूर्व प्रमुख की सफलता की दर 39 प्रतिशत रही, जबकि प्रधानमंत्री की कामयाबी सिर्फ़ 28 फ़ीसद रही।
आदित्यनाथ ने राजस्थान और मध्य प्रदेश की 27 विधानसभा सीटों के लिए 27 जनसभाएँ कीं, उनके उम्मीदवार 21 सीटों पर जीत गए। यह भी अहम है कि विधानसभा चुनावों के दौरान चार राज्यों में जाकर पार्टी उम्मीदवार के लिए प्रचार करने वाले बीजेपी शासित राज्यों के अकेले मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ही हैं। वे दक्षिण भारत के राज्य तेलंगाना भी गए।
इन चुनाव नतीजों को बैरोमीटर माना जाए तो लगता है कि जनता की नब्ज़ पर मोदी की पकड़ पहले जैसी नहीं रही, उनकी अपील में वह दम नहीं रहा। उनके मुक़ाबले आदित्यनाथ से अधिक लोग प्रभावित होते हैं। क्या यह मान लिया जाए कि स्टार प्रचारक की भूमिका में अब आदित्यनाथ होंगे और मोदी गौण हो जाएंगे? क्या हम यह कह सकते हैं कि बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अगले ‘मैस्कट’ यानी शुभंकर मोदी की जगह उत्तर प्रदेश के फ़ायरब्रान्ड मुख्यमंत्री होंगे? यह निष्कर्ष निकालना जल्दबाज़ी होगी।
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