भारत में कुछ लोग यह प्रचारित कर रहे हैं कि डोनल्ड ट्रंप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़ास दोस्त हैं और इस वजह से अमेरिका भारत की मदद कर रहा है, भारत से उसके रिश्ते सुधरे हैं। इन लोगों का यह भी कहना है कि डोनल्ड ट्रंप भारत के मित्र हैं, शुभचिंतक हैं और इसलिए भारत आ रहे हैं। पर सच यह नहीं है।
ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के पहले ही चुनाव प्रचार के दौरान से लेकर अब तक कई बार ऐसी बातें कहीं हैं, जिससे भारत परेशान हुआ है। उन्होेंने भारत के व्यापारिक हितों पर चोट की है, कश्मीर पर मध्यस्थता की बात कह कर दिल्ली को हैरान किया है और अब वह धार्मिक स्वतंत्रता पर बात करने वाले हैं।
अपने चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने भारत की तारीफ़ करते हुए कहा था, ‘मैं हिन्दुओं से प्रेम करता हूं।’ उनके बयान की आलोचना हुई और उन्हें समझाया गया कि भारत का मतलब हिन्दू नहीं है और उस देश में मुसलमान समेत दूसरे धर्मों के लोग भी रहते हैं। बाद में उन्होंने कहा कि उनका मतलब यह है कि वह भारत के साथ मिल कर काम करना चाहते हैं।
अमेरिका फ़र्स्ट-निशाने पर भारत
राष्ट्रपति ट्रंप ने अमेरिका फ़र्स्ट की नीति को जब सख़्ती से लागू करना शुरू किया तो भारत को भी निशाने पर लिया। वह इस बात से ख़फ़ा थे कि भारत-अमेरिका दोतरफ़ा व्यापार में पलड़ा भारत की ओर झुका हुआ है। उनका तर्क था कि भारत अमेरिका से कई तरह की रियायतें लेता है। उन्होंने साफ़ कह दिया कि ऐसा नहीं चल सकता। उसके बाद ट्रंप प्रशासन ने भारत के आयात को निशाने पर लिया और इस पर चुन-चुन कर हमले शुरू कर दिए।
भारत को सबक सिखाने की कोशिशों के तहत ट्रंप ने उसे जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ़ प्रीफ़रेसेंज से बाहर कर दिया है, कुछ भारतीय सामानों को मिलने वाली सुविधाएँ अब नहीं मिलेंगी। भारत से होने वाले 5.60 अरब डॉलर का निर्यात बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसकी घोषणा करते हुए कहा थी कि भारत दोतरफा व्यापार में अमेरिका को बराबरी का दर्ज नहीं देता है। उन्होंने कहा : 'भारत ने अमेरिका को अपने बाज़ार में बराबरी और उचित तरीके से व्यापार करने की सुविधा देने का भरोसा नहीं दिया है। इसलिए मैं यह घोषणा करता हूँ कि विकासशील देशों को मिलने वाली छूट भारत को 5 जून से नहीं मिलेगी।'
ई-व्यापार नीति से ख़फ़ा अमेरिका?
ट्रंप प्रशासन इसी नीति पर चलते हुए भारत को मिलने वाली रियायत के बदले उसके बाज़ार में बेरोकटोक पहुँच चाहता है, भले ही इससे भारत की अर्थव्यवस्था को नुक़सान ही क्यों न हो। पर्यवेक्षकों का कहना है कि ट्रंप प्रशासन भारत की ई-व्यापार नीति से ख़फ़ा है। इसके अलावा वह भारत के दवा व्यापार और मेडिकल उपकरणों के बाज़ार पर भी अपना कब्जा चाहता है और कई तरह की रियायतों की माँग की है। इस हाथ दे, उस हाथ ले
अमेरिका का कहना है कि अब वह किसी भी देश के साथ बराबरी के आधार पर ही व्यापार सम्बन्ध रखेगा। वह किसी देश को रियायत तब ही देगा जब उसे उस देश से भी रियायत मिलेगी। इसके तहत वाशिंगटन चाहता है कि भारत उसे अपने यहाँ कम आयात शुल्क पर सामान बेचने दे, तो वह भी भारत को जीपीएस की सुविधा देगा। बात यहीं नहीं रुकी। ट्रंप ने भारत पर नकेल डालने के लिए दूसरे काम भी किए।
अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (यूएस ट्रेड रीप्रेजेन्टेटिव) के कार्यालय ने भारत को विकासशील देशों की सूची से निकाल कर विकसित देशों की सूची में डाल दिया। उसका तर्क है कि भारत विकासशील देशों की परिभाषा में फिट नहीं बैठता है।
अमेरिका का कहना है कि भारत विश्व व्यापार संगठन की ओर से तय किए गए मानदंड यानी कुल अंतरराष्ट्रीय व्यापार के 0.50 प्रतिशत से ऊपर निकल चुका है। भारत कुल अंतरराष्ट्रीय व्यापार का 1.67 प्रतिशत व्यापार करता है। लिहाज़ा, इसे इस श्रेणी से बाहर किया जा रहा है। 2018 में इस बारें में किया गया ट्वीट अपमानजनक है । उन्होने कहा था :
धोखाधड़ी?
'दुनिया के सबसे धनी देश डब्लूटीओ के नियमों से बचने के लिए विकासशील देशों की परिभाषा का इस्तेमाल कर विशेष फ़ायदा उठाते हैं। अब और नहीं। मैंने यूएस ट्रेड रीप्रेजेन्टेटिव को निर्देश दिया है कि वह कार्रवाई करें ताकि अमेरिका की कीमत पर दूसरे देश धोखाधड़ी करना बंद करें।’
'धोखाधड़ी' शब्द पर ध्यान दें। क्या इस तरह के शब्द दोस्त के लिए इस्तेमाल होते हैं?
भारत पर असर
विकासशील देश होने की वजह से अमेरिका में भारतीय उत्पादों पर 2 प्रतिशत कम टैक्स लगता है, अब यह सुविधा नहीं मिलेगी, यानी भारतीय उत्पादों पर फ्रांस या ब्रिटेन या किसी दूसरे विकसित देश की तरह ही टैक्स लगेगा। इससे भारतीय उत्पाद महंगे हो जाएंगे, उन्हें दूसरे विकसित देशों के साथ व्यापारिक होड़ में टिकना होगा। यह संभव है कि भारतीय उत्पाद कम बिकें।
बात यहीं नहीं रुकी। भारत यात्रा से चंद दिन पहले ट्रंप ने कहा कि वह भारत जा रहे हैं, भारत ने उनसे बहुत ही बुरा व्यवहार किया है। इसलिए वह कोई व्यापारिक क़रार नहीं करेंगे, वह तभी कोई क़रार कर सकते हैं जब अमेरिका भारत को छूट दे।
कश्मीर पर क्या है ट्रंप का रवैया?
इसी तरह कश्मीर पर ट्रंप का रवैया भारत को परेशान करने वाला रहा है। जब भारतीय संसद ने 5 अगस्त को अनु 370 में बदलाव कर कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म कर दिया, तब पूरी दुनिया में शोर मचा था।तब डोनल्ड ट्रंप ने कश्मीर में मध्यस्थता की बात कहकर सनसनी फैला दी थी। ट्रंप ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के साथ एक मुलाक़ात के दौरान कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे कश्मीर मामले पर मध्यस्थता करने की गुजारिश की थी। भारत ने ट्रंप के इस बयान का जोरदार खंडन किया था।
ट्रंप ने हाल ही में फिर कहा कि वह कश्मीर पर मध्यस्थता करने के लिए तैयार हैं और
धर्म भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का एक प्रमुख कारण है। ट्रंप ने कहा था कि भारत और पाकिस्तान लंबे समय से साथ नहीं आए हैं और स्थिति बेहद ही ख़राब है।
पेरिस में हुए जी-7 सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रंप से स्पष्ट कहा था, ‘भारत-पाकिस्तान के बीच कई द्विपक्षीय मामले हैं, लेकिन हम किसी तीसरे पक्ष को तकलीफ़ नहीं देना चाहते। जो भी मामले हैं, हम आपसी बातचीत से सुलझा लेंगे।’
लेकिन बावजूद इसके अमेरिका और ट्रंप कश्मीर पर बयान देने से बाज़ नहीं आते और कुछ दिन पहले ही अमेरिका ने एक बार फिर कश्मीर में स्थानीय लोगों पर पाबंदी जारी रहने को लेकर चिंता जताई थी और कहा था कि वह हालात पर नज़र रखे हुए है।
अमेरिका ने जम्मू-कश्मीर की स्थितियों को लेकर भारत से अपील की कि वह मानवाधिकारों का सम्मान करे। अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मोर्गन ऑर्टेगस ने कहा, ‘हम कश्मीर में जारी प्रतिबंधों को लेकर बेहद चिंतित हैं, इसमें राजनेताओं, व्यवसायियों और उस क्षेत्र के निवासियों पर लगे प्रतिबंध शामिल हैं। हम वहाँ के कुछ इलाक़ों में इंटरनेट और मोबाइल फ़ोन को लेकर जारी प्रतिबंध पर भी चिंतित हैं।’ मोर्गन ने आगे कहा, ‘हम अपील करते हैं कि वे मानवाधिकारों का सम्मान करें और ज़रूरी सुविधाएं जैसे इंटरनेट और मोबाइल को फिर से चालू करें।’
नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी जैसे मुद्दों पर ट्रंप प्रशासन शुरू में चुप रहा, बाद में उसके अधिकारियों ने कहा कि यह भारत का आंतरिक मामला है। लेकिन उसके बाद ट्रंप प्रशासन ने स्थिति पर चिंता भी जताई।
समझा जाता है कि ट्रंप भारत पहुँचने के बाद धार्मिक आज़ादी का मुद्दे उठाएंगे। एक अमेरिकी अधिकारी ने कह दिया है कि ट्रंप यह मुद्दा सार्वजनिक तौर पर ये बातें कह सकते हैं और मोदी के साथ होने वाली बैठक में भी इस पर बात कर सकते हैं।
इससे साफ़ है कि ट्रंप को अपने देश, अपने प्रशासन से मतलब है। उन्हें भारत से कोई ख़ास लगाव नहीं है, वह भारत के मित्र उसी हद तक हैं जिस हद तक उनके देश का फायदा है। इसलिए यह कहना कि ट्रंप भारत के दोस्त हैं, बेवकूफ़ी है।
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