'द अटलांटिक'
अमेरिकी पत्रिका 'द अटलांटिक' ने अपने लेख में दिल्ली दंगों को 'क़त्लेआम' क़रार दिया है। उसने हेडिंग लगाई है, 'व्हाट हैपेन्ड इन देलही इज़ पोग्रोम' यानी दिल्ली में जो कुछ हुआ, वह क़त्लेआम है।'द न्यूयॉर्क टाइम्स'
अमेरिकी अख़बार 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' ने हेडिंग लगाई, 'इन इंडिया, मोदीज़ पॉलिटिक्स हैज़ लिट अ फ़्यूज़।' इसमें यह कहा गया है कि 'दिल्ली में दंगा होना ही था और यह पहले से बन रहे हिन्दू-मुसलिम वातावरण का नतीजा है।''द गार्जियन'
लंदन से छपने वाले अख़बार 'द गार्जियन' ने हेडिंग लगाई, 'मोदी स्टोक्ड द फ़ायर', यानी मोदी ने आग को हवा दी। अपने संपादकीय में अख़बार ने लिखा है कि 'सरकार ने कई दिनों तक कुछ नहीं किया और चुप्पी साधे रही। उन्होंने विभाजन बढ़ाने पर खड़े अपने कैरियर को छुपाने की भी कोशिश नहीं की।''द गार्जियन' ने यह भी कहा है कि '2002 के दंगों के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने मोदी को अलग-थलग कर दिया था, प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद उनका पुनर्वास हुआ।'
'द खलीज़ टाइम्स'
मध्य पूर्व से छपने वाले अख़बार 'द खलीज़ टाइम्स' ने हेडिंग दी, 'पोलिटिशियन्स स्टोक्ड देलही रॉयट्स' यानी 'राजनेताओं ने दिल्ली दंगों को हवा दी।' इसने अपने संपादकीय में लिखा है कि 'यह अनुमान लगाने की कोई ज़रूरत नहीं है कि हिंसा के लिए ज़िम्मेदार कौन लोग हैं।' इसने यह भी लिखा है कि 'पक्के सबूत देने के लिए पर्याप्त आंकड़े मिल जाएंगे।' इस लेख का अंत यह कहते हुए किया गया है कि 'फ़िलहाल, पूरे भारत के लिए शर्म की बात है।''द टाइम्स'
लंदन से छपने वाले अख़बार 'द टाइम्स' ने दिल्ली हिंसा की तुलना गुजरात दंगों से की है, ख़ास कर मरने वालों की तादाद बढ़ने तक मोदी की चुप्पी की बात उठाई है।'डेर स्पीजल'
जर्मनी के अख़बार 'दर स्पीजल' ने कहा कि यह दंगा उस समय हुआ जब वहां से कुछ किलोमीटर ही दूर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की आगवानी कर रहे थे। उसने लिखा, 'मुसलिम विरोधी बातों से विदेशों में भारत की छवि को नुक़सान हो सकता है, हालांकि देश में यह चलता है।' उसने इसकी हेडिंग लगाई, 'आउटसाइड शो-ऑफ़, इनसाइड प्रोटेस्ट'।'द वॉशिंगटन पोस्ट'
टेलीविज़न चैनल एमएसएनबीसी ने अपने एक कार्यक्रम में इसी तरह की बात कही है।अमेरिकी अख़बार 'द वॉशिंगटन पोस्ट' ने दिल्ली दंगों पर अपनी ख़बर की हेडिंग दी 'व्हाई इंडियाज़ स्टूडेंट्स आर एंग्री एंड इट्स मुसलिम्स आर वरीड' यानी 'भारत के छात्र क्यों गुस्सा में हैं और इसके मुसलमान क्यों चिंतित हैं'? उसने इस लेख में लिखा है कि मोदी के हिन्दुत्व प्रभावित शासनकाल में धर्मनिरपेक्षता को नुक़सान पहुँचा है।
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