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हज़ारों करोड़पति देश छोड़कर विदेशों में ठिकाना क्यों बना रहे हैं?

इस साल भी हज़ारों की संख्या में करोड़पति भारत छोड़कर विदेशों में बसने का अनुमान है। अंतरराष्ट्रीय निवेश प्रवास सलाहकार फर्म हेनले एंड पार्टनर्स की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, इस साल लगभग 4,300 करोड़पतियों के भारत छोड़ने का अनुमान है। पिछले साल इसी की रिपोर्ट में कहा गया था कि ऐसे 5100 करोड़पति भारतीयों ने विदेश में अपना नया ठिकाना बनाया। वैसे, यह संख्या तो सिर्फ़ करोड़पतियों की है, लेकिन देश छोड़ने वाले कुल भारतीयों की संख्या लाखों में है। 2022 में यह संख्या सवा दो लाख से ज़्यादा थी।

बहरहाल, हेनले एंड पार्टनर्स की रिपोर्ट के अनुसार जिन करोड़पतियों के देश छोड़ने की संभावना है वे यूएई को अपने गंतव्य के रूप में चुन रहे हैं। दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था भारत के, चीन और यूके के बाद करोड़पतियों के प्रवास के मामले में वैश्विक स्तर पर तीसरे स्थान पर रहने की संभावना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत से हर साल हजारों करोड़पति बाहर चले जाते हैं, जिनमें से कई यूएई को पसंद करते हैं। 

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रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि भारत से जाने वाले कई करोड़पतियों ने भारत में व्यावसायिक हित और दूसरा घर बनाए रखा है। इसका मतलब है कि वे भारत में अपने आर्थिक संबंध बनाए हुए हैं। इसका संकेत इससे भी मिलता है कि भारतीय निजी बैंक और धन प्रबंधन प्लेटफ़ॉर्म अपने ग्राहकों को निर्बाध निवेश सलाहकार सेवाएँ देने के लिए सक्रिय रूप से यूएई में विस्तार कर रहे हैं। 

रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में लगभग 1,28,000 करोड़पतियों के 2024 में दूसरे देश में शिफ्ट होने की संभावना है। इसमें यूएई और यूएसए पसंदीदा जगहों की सूची में सबसे ऊपर हैं। प्रवास करने वाले करोड़पति अपने साथ पर्याप्त संपत्ति ले जाकर विदेशी मुद्रा भंडार में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इससे स्थानीय शेयर बाजारों को प्रोत्साहन मिलता है।

वैसे, ये तो बात हुई करोड़पतियों के विदेशों में बसने की, लेकिन बड़ी संख्या उन लोगों की है जो करोड़पति नहीं हैं। पिछले साल मोदी सरकार ने ही संसद में कहा था कि पिछले साल सवा दो लाख से ज़्यादा भारतीयों ने भारत की नागरिकता त्याग दी। यह कम से कम पिछले एक दशक में रिकॉर्ड आँकड़ा है। 
प्रधानमंत्री बनने से पहले गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने 2012 में कहा था कि 'मैं उस दिन का इंतज़ार कर रहा हूँ जब अमेरिकी भारतीय वीजा के लिए कतार में खड़े होंगे।'

इसके दो साल बाद ही वह प्रधानमंत्री बन गए और 2014 से लगातार वह इस पद पर हैं। लेकिन इन वर्षों के बाद सरकार ने ही पिछले साल कहा था कि 2022 में 2,25,620 भारतीयों ने देश की नागरिकता छोड़ दी। इससे पहले के वर्षों में भी बड़ी तादाद में भारतीयों ने नागरिकता छोड़ी। 

भारतीयों के नागरिकता छोड़ने की ख़बर भारत सरकार ने ही दी है, तो इस पर विवाद की गुंजाइश कम ही है। दरअसल, संसद में सरकार से इस बारे में सवाल पूछा गया था।

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राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने नागरिकता छोड़ने वाले भारतीयों की वर्षवार संख्या बताई थी। जयशंकर ने कहा था कि 2015 में अपनी भारतीय नागरिकता त्यागने वाले भारतीयों की संख्या 1,31,489 थी, जबकि 2016 में 1,41,603 लोगों ने और 2017 में 1,33,049 लोगों ने नागरिकता छोड़ी। 2018 में यह संख्या 1,34,561 थी, जबकि 2019 में 1,44,017 और 2020 में 85,256 और 2021 में 1,63,370 ने अपनी नागरिकता छोड़ी थी। 

जयशंकर ने कहा था कि नागरिकता छोड़ने वालों का आँकड़ा 2011 में 1,22,819 था, जबकि 2012 में यह 1,20,923, 2013 में 1,31,405 और 2014 में 1,29,328 था। इस तरह 2011 के बाद से अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले भारतीयों की कुल संख्या 16,63,440 हो गई है। बता दें कि 2020 में नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या पिछले एक दशक में सबसे कम रही। यह वही साल था जब कोरोना महामारी का काल था और दुनिया भर में तबाही मची थी।

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प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में दुनिया भर में भारत की साख बढ़ने का लगातार दावा किया जाता रहा है। चाहे पिछले साल बजट पेश करने के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बयान हो या फिर उससे भी पहले नवंबर में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का बयान। राजनाथ सिंह ने अपने निर्वाचन क्षेत्र में कहा था कि देश में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की साख बढ़ी है। खुद प्रधानमंत्री मोदी भारत को 'विश्वगुरु' बनाने का सपना देख चुके हैं और गृहमंत्री अमित शाह तो उनके जन्मदिन पर इसके लिए तारीफ़ भी कर चुके हैं। 
लेकिन क्या प्रधानमंत्री का सपना पिछले 9 सालों में पूरा होता दिख रहा है? अब सवाल है कि आख़िर भारतीय इतनी बड़ी संख्या में नागरिकता क्यों छोड़ रहे हैं?

2022 की जुलाई में संसद में एक सवाल के जवाब में तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने संसद को बताया था कि विदेश मंत्रालय के अनुसार भारतीय नागरिकों ने अपने व्यक्तिगत कारणों से नागरिकता छोड़ी। यह व्यक्तिगत कारण आख़िर क्या है? क्या पढ़ाई और नौकरी की मजबूरी? क्या सिर्फ़ इसके लिए कोई नागरिकता छोड़ता है? क्या कुछ वर्ष पहले का वह विवाद आपने सुना था जिसमें एक जानी-मानी शख्सियत ने असहिष्णुता के माहौल को लेकर कह दिया था कि 'देश में उन्हें डर लगता है'? क्या सरकार से असहमति रखने वाले लोगों से विदेशों में बसने के बारे में चर्चा करते आपने सुना है?

ये चर्चाएँ आम तौर पर उन लोगों में तेज हुई हैं जो सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की गिरफ़्तारी, ऑल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ़्तारी, आदिवासियों के लिए काम करने वाले स्टेन स्वामी के जेल में निधन या ऐसे ही दूसरे एक्टिविस्टों पर कार्रवाई और सांप्रदायिक नफ़रत फैलाए जाने पर चिंताएँ जताते रहे हैं। हालाँकि, सड़कों की ख़राब हालत, यातायात जाम, भ्रष्टाचार जैसे मामलों से खीझे लोग भी अक्सर विदेशों में बस जाने की बात करते रहे हैं। 

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क़मर वहीद नक़वी
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