अब जबकि यह साफ़ हो गया है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सेना जमी रहेगी, भारतीय सेना ने भी वहाँ लंबे समय के लिए मोर्चेबंदी शुरू कर दी है। इसके तहत लद्दाख में भारतीय सैनिक जमे रहेंगे और ठंड के समय भी उनके वहाँ से हटने की फिलहाल कोई योजना नहीं है।
भारतीय सेना को ठंडे में उतनी ऊँचाई पर जमे रहने के लिए सामान मुहैया कराने में ख़ासी दिक्क़तों का सामना करना पड़ेगा। सेना में यह काम लॉजिस्टिक्स विभाग करता है। इस समय लॉजिस्टिक्स विभाग के साथ दो चुनौतियाँ हैं, उन्हें इतनी ऊँचाई पर खाने-पीने और दूसरी तमाम चीजें पहुँचानी है। दूसरी चुनौती है ठंडे मौसम की क्योंकि उस ऊँचाई पर बर्फ पड़ने के कारण रास्ता बंद हो जाता है।
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क्या है योजना?
इंडियन एक्सप्रेस ने एक ख़बर में कहा है कि अगले 6 हफ़्ते में यह तय हो जाएगा कि लद्दाख में कितने सैनिकों को रखा जाएगा। उस संख्या के आधार पर ही आगे की पूरी योजना तैयार की जाएगी।सेना के जिस डिवीज़न की भूमिका पहले से तय नहीं है, वहाँ उसे भेजना ज़्यादा मुश्किल होगा। इसके अलावा दूसरी ईकाइयों को भी भेजने में दिक्क़त होगी क्योंकि उन सैनिकों को मैदानी इलाक़ों से भेजा जाएगा। दो महीने बाद मैदानी इलाक़े से इस दुर्गम पहाड़ी पर लोगों को भेजने और वहाँ तैनात करने में दिक्क़तें होंगी, यह तय है।
जाड़े में दिक्क़त
उत्तरी कमान के लॉजिस्टिक्स का काम संभाल चुके एक अफ़सर ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘यदि अतिरिक्त सैनिकों को तैनात करना पड़ा और उन्हें हाई अलर्ट की स्थिति में रहने को कहा गया तो मुश्किल होगी। इन्हें एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में असुविधा होगी। लेकिन सबसे बड़ी दिक्क़त होगी ठंडे के मौसम में तमाम चीजें ऊँचाई तक पहुंचाना।’दुर्गम पहाड़
सेना में इन चीजों की सप्लाई एडवांस्ड विंटर स्टॉकिंग के ज़रिए की जाती है, यह वह विभाग है जो गर्मियों के समय से ही जाड़े की तैयारियाँ शुरू कर देता है।वास्तविक नियंत्रण के पास तक सामान पहुँचाने के दो रास्ते हैं, श्रीनगर से लद्दाख तक जोजी ला दर्रे से और दूसरा रास्ता है मनाली होते हुए। श्रीनगर से जोजी ला होते हुए लद्दाख तक जाने में दो सप्ताह का समय लगता जबकि मनाली रास्ते से जाने में 17-18 दिन लगते हैं।
ये दोनों ही रास्ते दिसंबर तक बंद हो जाते हैं, इसलिए सेना की कोशिश होगी कि नवंबर तक ही पूरा काम कर लिया जाए।
कम बर्फ
लॉजिस्टिक्स अफ़सर ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि ‘सियाचिन या द्रास के विपरीत पूर्वी लद्दाख में कम बर्फ गिरती है। इस कारण स्थानीय रास्ते खुले होते हैं और सेना ज़रूरत पड़ने पर हेलीपैड भी बना सकती है। इससे लोगों को लाने ले जाने में सुविधा होती है।'पर पूर्वी लद्दाख में स्थानीय पर कुछ भी नहीं होता है और न ही कुछ पाया जाता है। इसलिए ज़रूरत की सारी चीजें मैदानी इलाक़ों से ही आती हैं।’
सामान की आपूर्ति के लिए मार्च में ही क़रार कर लिए जाते हैं। अब सामान की ख़रीद के लिए नए सिरे से क़रार करना होगा, अधिक संख्या में गाड़ियाँ वगैरह ठीक करनी होंगी और सामान ले जाने का इंतजाम करना होगा।
शाम को जहाज नहीं उतर सकता
जाड़े में भारी सामान ले जाने में दूसरी दिक्क़त यह है कि परिवहन जहाज़ दोपहर के पहले ही उड़ान भर लें क्योंकि उसके बाद उनका लौटना मुमकिन नहीं होगा। अमेरिकी सी-130 जे परिवहन विभाग से शाम को भी उड़ान भरी जा सकती है। पर भारतीय सेना के पास रूस का बना आईएल-76 है जो शाम को किसी हवाई पट्टी पर उतर नहीं सकता।-25 डिग्री तापमान
वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास जाड़े में तापमान शून्य से 25 डिग्री नीचे तक चला जाता है। ऐसे में वहाँ तैनात सैनिकों को ख़ास तरह के गरम कपड़े पहनने होंगे, वह भी पहुँचाना होगा।एक दूसरे अफ़सर ने कहा कि एक दूसरा रास्ता यह है कि पहले भेजे गए सैनिकों को अभी मौजूद चीजें दे दी जाएं और बाद में मैदानी इलाक़े से सामान भेजा जाए।
रहने की समस्या
सेना इसकी तैयारी भी कर रही है कि उस ऊँचाई पर सैनिकों को कहाँ और किसे टिकाया जाए, उनके रहने का क्या इंतजाम किया जाए।इस सवाल पर अभी कुछ नहीं सोचा गया है क्योंकि वहाँ किस तरह का निर्माण करना है, यह ऊँचे स्तर के अफ़सर ही तय करेंगे। यह फ़ैसला अभी नहीं हुआ है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास ठोस संरचना खड़ी की जाए या नहीं।
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