कथित तौर पर शोध और सर्वेक्षण जहाज के रूप में बताए जाने वाले चीनी जहाज युआन वांग 5 को लेकर भारत और चीन के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। चीन के उस जहाज को अक्सर जासूसी जहाज कहकर आलोचना की जाती है।
दरअसल, उस जहाज को श्रीलंका में भेजे जाने पर भारत ने श्रीलंका के सामने जो चिंताएँ और आपत्तियाँ जताई थीं उसको लेकर श्रीलंका में चीनी राजदूत ने कड़ी टिप्पणी कर दी। चीनी राजदूत ने भारत का संदर्भ देते हुए आरोप लगाया कि 'श्रीलंका की संप्रभुता में पूरी तरह से हस्तक्षेप' है और 'उत्तरी पड़ोसी का आक्रामकता का इतिहास' रहा है। इस टिप्पणी के बाद श्रीलंका में भारतीय उच्चायोग ने कहा कि चीनी दूत का 'मूल राजनयिक शिष्टाचार का उल्लंघन एक व्यक्तिगत लक्षण हो सकता है' या 'एक बड़े राष्ट्रीय रवैये को दर्शाता है'। इसने कहा कि श्रीलंका के 'उत्तरी पड़ोसी के बारे में उनका विचार उनके अपने देश के व्यवहार से प्रभावित हो सकता है'।
➡️ Opaqueness and debt driven agendas are now a major challenge, especially for smaller nations. Recent developments are a caution.
— India in Sri Lanka (@IndiainSL) August 27, 2022
➡️#SriLanka needs support, not unwanted pressure or unnecessary controversies to serve another country’s agenda.(3/3)
भारतीय उच्चायोग ने कहा है, 'श्रीलंका को सहयोग की ज़रूरत है, न कि अवांछित दबाव या किसी अन्य देश के एजेंडे को पूरा करने के लिए अनावश्यक विवाद की।' इसने कहा कि द्वीप राष्ट्र 1948 के बाद से सबसे खराब आर्थिक संकट से जूझ रहा है और इसलिए इसको मदद की दरकार है।
भारत ने यह भी कहा है कि श्रीलंका में चीनी राजदूत का वह बयान शोध और सर्वेक्षण जहाज के रूप में बताए जाने वाले चीनी जहाज युआन वांग 5 के संदर्भ में है।
भारत का यह कड़ा बयान कोलंबो में चीन के दूत क्यूई जेनहोंग के एक लेख के जवाब में है। चीनी दूतावास की वेबसाइट और स्थानीय समाचार वेबसाइट श्रीलंका गार्जियन पर प्रकाशित लेख का शीर्षक था, "वन-चाइना सिद्धांत से 'युआन वांग 5' तक' आइए हाथ मिलाएं और हमारी संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता की पूरी तरह से रक्षा करें।"
अपने लेख में क्यूई ने लिखा, 'द्वीप के महान इतिहास को देखते हुए श्रीलंका ने अपने उत्तरी पड़ोसी से 17 बार आक्रमण, 450 वर्षों तक पश्चिम द्वारा उपनिवेशवाद और लगभग 3 दशकों तक आतंकवाद विरोधी युद्ध पर विजय प्राप्त की है... अब भी दुनिया में बहादुरी और गर्व से खड़ा है। श्रीलंका की राष्ट्रीय संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता के किसी भी उल्लंघन को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।'
इसके बाद उन्होंने इसे उस सैन्य पोत से जोड़ा। उन्होंने कहा कि हंबनटोटा या किसी अन्य बंदरगाह पर एक विदेशी पोत के आगमन को मंजूरी देना श्रीलंका सरकार द्वारा पूरी तरह से अपनी संप्रभुता के भीतर लिया गया निर्णय है। उन्होंने 'युआन वांग 5' का ज़िक्र करते हुए कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय क़ानून का पालन करता है। उन्होंने लिखा है कि तथाकथित 'सुरक्षा चिंताओं' पर आधारित बाहरी बाधा, श्रीलंका की संप्रभुता और स्वतंत्रता में पूरी तरह से हस्तक्षेप है। उन्होंने आगे लिखा है, 'सौभाग्य से, चीन और श्रीलंका के संयुक्त प्रयासों से, घटना को ठीक से सुलझाया गया, जो न केवल श्रीलंका की संप्रभुता और स्वतंत्रता की रक्षा करता है, बल्कि एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय निष्पक्षता और न्याय की रक्षा करता है।'
यह विवाद श्रीलंका के यू-टर्न लेने के कुछ दिनों बाद आया है, जिसमें चीन के कथित सैन्य अनुसंधान और सर्वेक्षण पोत युआन वांग 5 को भारत की चिंताओं के बावजूद, 16 से 22 अगस्त तक अपने हंबनटोटा बंदरगाह पर डॉक करने की अनुमति दी गई थी। इससे पहले जहाज के 11 से 17 अगस्त तक डॉक करने की उम्मीद थी, और भारत के विरोध के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था। लेकिन बाद में उसको अनुमति दे दी गई।
श्रीलंका ने कहा कि जहाज को अनुमति देने का उसका निर्णय 'राज्यों की संप्रभु समानता के सिद्धांत' के अनुरूप सभी संबंधित पक्षों के हित में है।
बता दें कि जिस हंबनटोटा बंदरगाह से जुड़ा यह मामला है उसको श्रीलंका ने चीन को 1.12 अरब डॉलर में 99 साल के लिए पट्टे पर दे दिया है। श्रीलंका ने इसे बनाने के लिए एक चीनी कंपनी को भुगतान किया था। इस बंदरगाह का निर्माण 2008 में शुरू हुआ था, जिसके लिए चीन ने एक बड़ा कर्ज दिया था। इसको बनाने में चीन हार्बर इंजीनियरिंग कंपनी (सीईसी) और चीन हाइड्रो कॉर्पोरेशन नाम की सरकारी कंपनियों ने एक साथ मिलकर काम किया था। अब उस बंदरगाह का संचालन चीन की कंपनी ही कर रही है।
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