उस संधि में यह स्पष्ट लिखा है कि अगर अपराध राजनीतिक है तो दोनों देश प्रत्यर्पण से मना कर सकते हैं। लेकिन जो अपराध गैर राजनीतिक या राजनीतिक नहीं है, उनकी सूची लंबी है। कुछ अपराध जिनके तहत शेख हसीना पर मामला दर्ज किया गया है - उनमें हत्या, जबरन गायब करना और यातना शामिल है। इन्हें प्रत्यर्पण संधि में राजनीतिक अपराधों की परिभाषा से बाहर रखा गया है।
बहरहाल, संधि अभी भी प्रत्यर्पण अनुरोधों को अस्वीकार करने के लिए अन्य आधार दे रही है। अनुच्छेद 8 में इस इनकार के कई आधार बताए गए हैं। जिनमें ऐसे मामले भी शामिल हैं जिनमें आरोप "न्याय के हित में अच्छे विश्वास (गुड फेथ) में नहीं लगाया गया है" या फिर सैन्य अपराध जो "सामान्य आपराधिक कानून के तहत अपराध" नहीं माना जाता है।
इसलिए, भारत के पास इस आधार पर हसीना के प्रत्यर्पण से इनकार करने का विकल्प है कि उसके खिलाफ लगाए गए आरोप "न्याय के हित में अच्छे विश्वास (गुड फेथ) में" नहीं हैं, हालांकि इससे भारत और बांग्लादेश के बीच संबंधों में और तनाव आ सकता है।
कुल मिलाकर प्रत्यर्पण संधि की बारीकियों के बावजूद, बांग्लादेश के प्रत्यर्पण अनुरोध को स्वीकार करने का निर्णय राजनीतिक होगा। तमाम पूर्व राजनयिकों का कहना है कि भारत को शेख हसीना को किसी भी कीमत पर नहीं सौंपना चाहिए। उनका सवाल है कि क्या हमारे हित हसीना को बांग्लादेश को सौंपने के बाद सुरक्षित हैं? वे नहीं हैं। संधि की कानूनी वैधता कोई मायने नहीं रखती।
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