संघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन यानी एससीओ की बैठक में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को भी निमंत्रण देने का फ़ैसला कर भारत ने एक तरह से पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय बातचीत के लिए बंद दरवाज़े खोल दिए हैं। एससीओ की बैठक दिल्ली में होने वाली है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि इसमें सभी सदस्य देशों और ऑब्जर्वर देशों को न्योता जाएगा। इसका मतलब है कि पाकिस्तान को भी न्योता जाएगा और इसमें पाकिस्तान के प्रतिनिधि के रूप में या तो इमरान ख़ान या फिर कोई दूसरा मंत्री शामिल होगा। जम्मू कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370 में फेरबदल के बाद पाकिस्तान के साथ संबंध और भी ख़राब हो गए हैं, लेकिन अब इसमें कुछ सुधार की उम्मीद है।
हालाँकि, इससे कई सवाल भी खड़े होते हैं। क्या आतंकवाद पर भारत सरकार की नीति बदल गई है? ‘आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकती’ कहने वाली नरेंद्र मोदी सरकार क्या अब इस नीति से पीछे हट रही है?
सीएसओ का महत्व
पर्यवेक्षकों का कहना है कि संघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन की शुरुआत चीन और रूस ने सेंट्रल एशिया पर निगरानी रखने और एक तरह से उसे अमेरिकी प्रभाव में जाने से रोकने के लिए की थी।इसका सामरिक महत्व यह है कि यह दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य-पूर्व के बीच एक तरह का बफ़र ज़ोन है। इस पर नियंत्रण रहने से दक्षिण एशिया की राजनीति में सुविधा होगी।
इमरान को न्योतने पर विवाद क्यों?
लेकिन मूल सवाल तो वही है कि इमरान को न्योता देने पर विवाद क्यों हो? यह एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसमें भारत और पाकिस्तान के अलावा दूसरे देश भी हैं। इसमें पाकिस्तान को नहीं न्योतने से भारत की किरकिरी होती।कोई किसी मुद्दे पर सरकार की आलोचना करे तो उसे पाकिस्तानी कहने और पाकिस्तान भेजने की बात बीजेपी के नेता ही करते हैं। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बार-बार कहा है कि वे अमुक को पाकिस्तान भेज देंगे तो अमुक को।
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