भारत में कोरोना टीके की बूस्टर खुराक मिलेगी या नहीं? यदि मिलेगी तो कब? भारत में यह सवाल तब पूछा जा रहा है जब ब्रिटेन सहित कई देशों में न सिर्फ़ बूस्टर खुराक को हरी झंडी मिली है बल्कि वहाँ जोर शोर से इसको लेकर अभियान चलाया जा रहा है।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बॉरिस जॉनसन ने पूरी वयस्क आबादी को इसी महीने यानी दिसंबर महीने में बूस्टर खुराक लगाने का लक्ष्य रखा है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन अपने देशवासियों को संबोधित करते हुए कह रहे हैं कि वे बूस्टर खुराक लगवाएँ क्योंकि ओमिक्रॉन वैरिएंट का ख़तरा है और इससे बचाव के लिए फ़िलहाल बूस्टर खुराक ही विकल्प है।
हालाँकि, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बूस्टर खुराक को लेकर ऐसा कुछ बयान नहीं आया है। हाँ, वह यह ज़रूर दावा करते रहे हैं कि 100 करोड़ से ज़्यादा टीके लगाए जा चुके हैं। पिछले महीने ही प्रधानमंत्री मोदी ने संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत से पहले अपने संबोधन में कहा था, 'हमने महामारी के चुनौतीपूर्ण समय के दौरान कोविड के टीकों की 100 करोड़ से अधिक खुराक दी है। अब हम 150 करोड़ खुराक की ओर बढ़ रहे हैं। एक नए कोरोना वैरिएंट के उभरने की ख़बर से हमें और अधिक सतर्क रहने की ज़रूरत है।'
प्रधानमंत्री ने भी माना है कि सतर्क रहने की ज़रूरत है। अब तो भारत में 200 से ज़्यादा ओमिक्रॉन वैरिएंट के मामले सामने आ चुके हैं। केंद्र सरकार ने मंगलवार शाम को राज्यों को पत्र लिखकर कहा है कि ओमिक्रॉन वैरिएंट डेल्टा वैरिएंट से तीन गुना ज़्यादा संक्रामक है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ इसको लेकर चेता रहा है। डब्ल्यूएचओ की प्रमुख वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने कहा है कि शुरुआती सबूतों से यह निष्कर्ष निकालना 'मूर्खतापूर्ण' होगा कि ओमिक्रॉन पिछले वाले की तुलना में कमजोर वैरिएंट है।
तो फिर सवाल है कि ओमिक्रॉन वैरिएंट के ऐसे ख़तरे के बीच भी भारत में बूस्टर खुराक पर फ़ैसला क्यों नहीं लिया जा सका है?
इस सवाल का जवाब केंद्र सरकार ने हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट के सामने तब दिया था जब दिल्ली हाई कोर्ट ने दिसंबर के मध्य में केंद्र से एक सवाल पूछा कि क्या वैक्सीन की बूस्टर खुराक की ज़रूरत है? इस सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट को बताया था कि इस पर अभी तक कोई फ़ैसला नहीं लिया जा सका है। इसने कहा था टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह यानी एनटीएजीआई और नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन फॉर कोरोना यानी एनईजीवीएसी टीकों की बूस्टर खुराक से संबंधित वैज्ञानिक साक्ष्यों पर विचार कर रहे हैं।
एक हलफनामा दायर कर सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया था कि एनटीएजीआई और एनईजीवीएसी बूस्टर खुराक की ज़रूरत और औचित्य पर विचार कर रहे हैं। केंद्र ने कोर्ट को बताया कि एनटीएजीआई और एनईजीवीएसी दो विशेषज्ञ निकाय हैं जो राष्ट्रीय कोरोना टीकाकरण कार्यक्रम का मार्गदर्शन करने के लिए काम कर रहे हैं।
एनटीएजीआई टीकों की विभिन्न क़िस्मों के उपयोग, वैक्सीन की खुराक के बीच के अंतराल आदि जैसे तकनीकी पहलुओं की जाँच करता है और एनईजीवीएसी को इसकी सिफारिश करता है। एनईजीवीएसी बदले में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को कोरोना टीकाकरण के सभी पहलुओं पर समग्र मार्गदर्शन और सिफ़ारिशें देता है।
केंद्र ने कोर्ट को यह भी कहा है कि राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम की वर्तमान प्राथमिकता पूरी पात्र आबादी को पूर्ण टीकाकरण यानी दो खुराक देने की है।
तो क्या सरकार पहले पूरी आबादी को बूस्टर खुराक लगाने का इंतज़ार करेगी? भारत में फ़िलहाल कुल मिलाकर 1 अरब 39 करोड़ खुराक लगाई जा सकी है जिसमें से 56 करोड़ लोगों को ही दोनों खुराकें लगाई जा सकी हैं। इसका मतलब है कि अभी भी पूरी वयस्क आबादी को दोनों खुराक लगाने में काफ़ी वक़्त लगेगा। लेकिन सवाल है कि यदि पूरी आबादी को दोनों खुराक लगाए जाने का इंतज़ार किया जाता है तो ओमिक्रॉन के ख़तरे से कैसे निपटा जाएगा?
कुछ विशेषज्ञों की राय है कि जो जोखिम वाले लोग हैं उन्हें बूस्टर खुराक देनी शुरू कर देनी चाहिए। लेकिन सरकार की तरफ़ से इस पर अभी तक फ़ैसला नहीं हो पाया है। बूस्टर खुराक पर इसलिए भी जोर दिया जा रहा है क्योंकि एक शोध में यह तथ्य सामने आया है कि भले ही वैक्सीन की रूटीन खुराक ओमिक्रॉन के ख़िलाफ़ पर्याप्त सुरक्षा नहीं देती हैं, लेकिन इसकी बूस्टर खुराक से सुरक्षा बढ़ जाती है।
तो क्या ओमिक्रॉन के ख़तरे को देखते हुए देश में बूस्टर खुराक पर जल्द कुछ फ़ैसला लिया जाएगा?
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