चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच भारत ने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए पहले से तय विशेष प्रतिनिधि प्रक्रिया को अपनाने का फ़ैसला किया है।
इस ख़ास प्रक्रिया के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल चीनी विदेश मंत्री वांग यी से बात कर सकते हैं।
विदेश मंत्रियों की बातचीत
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी से बात की है। विशेष प्रतिनिधि स्तर पर बातचीत में दिक्क़त यह है कि डोभाल के समकक्ष वांग यी हैं। लेकिन वांग यी विदेश मंत्री के साथ ही स्टेट कौंसलर भी हैं और वहाँ स्टेट कौंसिलर का पद विदेश मंत्री से ऊपर होता है। इसलिए भारत को ऊँचे स्तर पर बात करनी होगी। यानी, अजित डोभाल से ऊँचे स्तर का कोई अधिकारी वांग यी से बात करे, यह व्यावहारिक है।
देश से और खबरें
डोकलाम संकट के समय चीन में स्टेट कौंसिलर यानी डोभाल के समकक्ष वांग जेईची थे। इसलिए विशेष प्रतिनिधि स्तर पर बातचीत में डोभाल और जेईची में बातचीत हुई थी। इस बार हालात बदले हुए हैं। अब वांग यी का कद बहुत ऊँचा हो चुका है।
इसके पहले 21 दिसंबर को भारत और चीन के बीच विशेष प्रतिनिधि स्तर पर बातचीत हुई थी। उस बैठक में यह तय पाया गया था कि द्विपक्षीय संबंध बेहतर करने और समग्र विकास के लिए ज़रूरी है कि सीमा पर शांति बरक़रार रखी जाए।
चीन ने सैनिक वापस बुलाए
इस बातचीत की कोशिश ऐसे समय हो रही है जब भारत और चीन ने गलवान घाटी से अपने कुछ सैनिकों को वापस बुला लिया है।कमांडर स्तर पर बातचीत में यह तय हुआ था कि दोनों पक्ष तनाव कम करने के लिए कुछ कदम उठाएंगे। इसके तहत 5 जुलाई तक दोनों पक्षों को सेना वापस बुला लेना था और ठोस संरचनाएं हटा लेनी थीं।
भारत को इस बात के सबूत मिले हैं कि कम से कम गलवान घाटी में चीन ने ऐसा किया है। बीते तीन दिनों में ऐसा हुआ है, लेकिन इसकी रफ़्तार बहुत ही धीमी है और वैसा नहीं हुआ है जैसा तय हुआ था।
रफ़्तार धीमी
सेना के एक आला अफ़सर ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘हमें नहीं पता की धीमी रफ़्तार जानबूझ कर रखी गयी है ख़राब मौसम की वजह से है। बीते तीन दिनों में वहाँ का मौसम अच्छा नहीं रहा है, गलवान नदी उफन रही है और हो सकता है कि इस वजह से दिक्क़त हो रही हो।’गृह मंत्रालय के एक अफ़सर ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि 10 दिनों की समय सीमा तय की गई है, जिसमें हर दिन का लक्ष्य रखा गया है।
पैंगोंग त्सो झील के किनारे के फिंगर 4 से फिंगर 8 तक के इलाक़े पर कोई प्रगति हुई है या नहीं, यह भी पता नहीं चल सका है। यह वह इलाक़ा है, जहाँ चीन ने कब्जा कर रखा है। एक अधिकारी ने यह भी कहा कि डेपसांग में चिंता की बात है क्योंकि वहाँ जगह खाली करने में समय लगेगा।
अपनी राय बतायें