क्या सचमुच?
ग्लोबल टाइम्स ने भारत के रवैए में बदलाव को क्वाडिलैटरल स्ट्रैटेजिक डॉयलॉग यानी क्वैड और अमेरिका की हिंद-प्रशांत क्षेत्र नीति से जोड़ कर देखा है।
क्या वास्तव में ऐसा है? पहले हम समझते हैं कि 'क्वैड' क्या है?
क्वाडिलैटरल स्ट्रैटेजिक डॉयलॉग
'क्वैड' एक सामरिक- रणनीतिक गठबंधन है, जिसके सदस्य जापान, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और भारत हैं। इसका साफ़ मक़सद दक्षिण चीन सागर में बीजिंग के बढ़ते प्रभाव को रोकना है। उस इलाके़ पर नज़र डालने से साफ़ दिखता है कि प्रशांत महासागर के एक छोटे से ही सही लेकिन चीन के पास के इलाक़े में अमेरिका अपना दबदबा कायम कर सकता है।डार्विन में यदि कोई अमेरिकी पोत रहे तो चीन के लिए साफ़ तौर पर ख़तरे की घंटी है क्योंकि ज़रूरत पड़ने पर अमेरिकी सैनिक डार्विन से उड़ान भर कर कुछ मिनटों में दक्षिण चीन सागर के चीनी बंदरगाहों तक पहुँच सकते हैं।
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, 'भारत ने क्वैड के साथ अपनी साझेदारी मंत्री स्तर तक बढ़ा ली है।'
हिंद-प्रशांत रणनीति
अब हम अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति पर विचार करते हैं। इसके तहत पूरे हिंद महासागर और प्रशांत महासागर में जगह-जगह अमेरिकी नौसेना के अड्डे पहले से ही है। चीन के पास ही जापान में नौसैनिक अड्डे पहले से है। इसके अलावा गुआम से लेकर डिएगो गार्सिया तक अमेरिकी नौसैनिक अड्डे हैं।ट्रंप की भारत यात्रा
इसे डोनल्ड ट्रंप की 24-25 फरवरी की भारत यात्रा से जोड़ कर देखा जा सकता है। इस यात्रा के दौरान भारत-अमेरिका में कोई समझौता नहीं हुआ, भारत को किसी तरह की व्यापारिक छूट नहीं मिली, जाते-जाते ट्रंप कह गए कि भारत को अमेरिका के साथ व्यापार में रियायतें देनी होंगी, व्यापार संतुलन ठीक करना होगा। इसके कुछ हफ़्तों बाद ही ट्रंप ने भारत को धमकाया कि हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन की दवा नहीं दी तो भारत के ख़िलाफ़ वे बदले की कार्रवाई करेंगे।सामरिक समीकरण
बता दें कि नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन यानी नैटो के सैनिक संगठन के बाहर जो अमेरिका के सामरिक साझेदार हैं, वे इस समग्र रणनीतिक अंतरराष्ट्रीय साझेदार स्तर के ही हैं। यह एक खास किस्म का सैनिक समझौता होता है जिसमें दोनों देशों के बीच रक्षा उपकरणों की आपूर्ति से लेकर ख़ुफ़िया जानकारी को साझा करने से लेकर ज़रूरत पड़ने पर सैनिक मदद करने तक की बातें शामिल होती हैं।चीन का मानना है कि ट्रंप की इस यात्रा का मक़सद भारत से रणनीतिक व सामरिक साझेदारी बढ़ाना है और उसका मक़सद चीन को रोकने की कोशिश है। चीन को रोकने की अमेरिकी साजिश में भारत जानबूझ कर शामिल हो रहा है।
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'फरवरी में ट्रंप के दौरे के समय भारत और अमेरिका ने कहा कि रिश्तों को समग्र अंतरराष्ट्रीय रणनीतिक साझेदारी स्तर तक ले जाएंगे। इसका मतलब यह है कि भारत अमेरिका के हिंद-प्रशांत रणनीति में सहयोग करने को तैयार है। इसके बदले में अमेरिका भारत को बड़ी ताक़त बनने और दूसरी योजनाओं में मदद करेगा।'
ग्लोबल टाइम्स में छपे एक लेख का अंश
जी-7 का पेच
इसी परिप्रेक्ष्य में ग्लोबल टाइम्स जी-7 में भारत को शामिल करने की अमेरिकी पेशकश को भी देखता है।
चीन ने जी-7 में शामिल होने के मुद्दे पर भारत को चेतावनी देते हुए कहा है कि वह आग में घी डालने का काम न करे।
अख़बार के मुताबिक, 'भारत को जी-7 का सदस्य बनाने की कोशिश सिर्फ इसलिए नहीं की जा रही है कि यह दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि यह देश अमेरिका की भारत-प्रशांत रणनीति का मजबूत स्तंभ है।'
काल्पनिक शत्रु है चीन?
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, 'यदि भारत उस छोटे समूह के साथ जुड़ गया, जिसके लोग चीन को काल्पनिक शत्रु मानते हैं, तो यह भारत के हित में नहीं होगा।'
यानी, चीन एक आर्थिक मुद्दे को भी राजनीतिक व रणनीतिक नज़रिए से देखता है और उसे अपने ख़िलाफ़ साजिश का हिस्सा मानता है।
तो क्या चीन ने लद्दाख में सेनाएं भेज कर भारत को चेतावनी दे दी है कि वह अमेरिका के साथ मिल कर उसके ख़िलाफ़ गोलबंदी न करे?
इसे समझने के लिए इस पूरे लद्दाख संकट के दौरान अमेरिकी प्रतिक्रिया को समझने की कोशिश करते हैं।
लद्दाख संकट पर अमेरिकी प्रतिक्रिया
राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने भारत और चीन के बीच मध्यस्थता करने की पेशकश कर दी, जिसे दोनों ही देशों ने अलग अलग खारिज कर दिया।इसके बाद अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव यानी लोकसभा की विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष ने भारत पर 'चीन के हमले' ('चाइनीज़ अग्रेसन') पर चिंता जताई और बीजिंग से तुरन्त सेनाएं वापस बुलाने की माँग की।दिलचस्प बात यह है कि हमले की बात तो भारत ने भी नहीं की। भारत में किसी मंत्री, यहाँ तक कि बड़बोलेपन के शिकार बीजेपी प्रवक्ताओं और ग़ैरज़िम्मेदार मीडिया ने भी यह नहीं कहा कि चीन ने भारत पर हमला कर दिया है।
पर अमेरिकी संसद ने ऐसा मान लिया कि चीन ने भारत पर हमला किया है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अधिक परिपक्वता का परिचय दिया और इतना ही कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर 'अच्छी तादाद' में चीनी सैनिक जमे हुए हैं।
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