कैसे बना यह टीका?
एनआईवी ने अपने हैदराबाद स्थित प्रयोगशाला में इस पर शोध इस साल मई में शुरू किया। इसने कोरोना के एक ऐसे रोगी, जिसमें संक्रमण था पर बाहर से कोई लक्षण नहीं दिखता था, उससे वायरस का एक स्ट्रेन निकाल लिया। एनआईवी ने इस स्ट्रेन से 'इनएक्टिवेटेड' टीका बनाया, यानी ऐसा टीका बनया जिसमें मृत वायरस का इस्तेमाल किया गया।यही मृत वायरस उस आदमी की इम्यूनिटी यानी रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा देता है और वह किसी बाहरी वायरस हमले के प्रति एंटीबॉडी का काम करने लगता है।
प्री-क्लिनिकल ट्रायल
बीबीआईएल ने इस टीके का नाम कोवेक्सिन रखा है। इसे विकसित करने के बाद इसका प्री-क्लिनिकल ट्रायल किया गया। इसे गिनीपिग और चूहे पर आजमाया गया। उसके बाद उसने इन नतीजों के साथ सीडीएससीओ से संपर्क किया। इस नियामक संस्था ने इस टीके का प्रयोग मानव पर करने की अनुमति दे दी है। इसे ही ह्यूमन ट्रायल कहते हैंक्या है 'फ़ेज वन', 'फ़ेज टू' ट्रायल?
ह्यूमन ट्रायल के फ़ेज वन में रोगियों के छोटे समूह पर दवा का प्रयोग किया जाता है। यह देखा जाता है कि यह दवा इम्यूनिटी बढ़ाने में कामयाब हुई या नहीं। यह भी देखा जाता है कि इसका कोई साइड इफेक्ट तो नहीं है।फ़ेज टू में सैकड़ों लोगों के ऊपर इस दवा का प्रयोग किया जाता है, जिसमें उसके लिंग, उम्र, दवा का प्रभाव वगैरह का रिकार्ड रखा जाता है। इसके कामयाब होने के बाद टीका के उत्पादन की अनुमति दे दी जाती है।
यह पहली बार हुआ है कि कोई भारतीय कंपनी कोरोना टीका के ह्यूमन ट्रायल तक पहुँची है। लेकिन यह एस्ट्राज़ेनेका के टीके से बहुत पीछे है। वह अभी क्लिनिकल ट्रायल के फ़ेज थ्री में है। इसके अलावा मॉडर्ना एम-आरएनए टीका के तीसरे चरण के ट्रायल में है। इसे नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ़ एलर्जी एंड इनफ़्केसस डिजीज़ बना रहा है।
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