कोरोना संक्रमण भारत में फैला तो इसकी चपेट में कितने लोग आएंगे और यह महामारी कितने लोगों को लील लेगी, ये सवाल बार-बार उठते हैं। इसके बारे में अभी कुछ कहना मुश्किल है और सिर्फ़ अनुमान लगाया जा सकता है। लेकिन, जो अनुमान लगाया जा रहा है, वह भी भयावह है।
इन आशंकाओं के बीच अमेरिका स्थित मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी में एपीडेमियोलॉजी एंड बायोस्टैटिस्टिक्स विभाग के प्रोफ़ेसर सिद्धार्थ चंद्रा ने कहा है कि कोरोना से होने वाली मौतों की तादाद 1918 के स्पैनिश इनफ़्लूएन्ज़ा की मौतों से कम होगी। यह भारत के लिए काफ़ी राहत की बात है।
लाशों से पट गई थी गंगा
चंद्रा ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा है कि आज स्थिति बेहतर है, इसलिए भारत में इस बार उतने लोगों की मौत नहीं होगी, जितने लोग उस समय काल के गाल में समा गए थे। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि आज बुनियादी सुविधाएं पहले से काफी बेहतर हैं।
भारत के सैनिटरी कमिश्नर ने 1918 में लिखा था कि कुछ नदियाँ लाशों से पट गई थीं। लेकिन इस बार वैसी स्थिति नहीं होगी और उसके बहुत पहले ही इस रोग पर काबू पा लिया जाएगा।
कुपोषण
सिद्धार्थ चंद्रा का कहना है कि 1918 में भारत में कुपोषण एक बहुत बड़ा मुद्दा था और इस वजह से लोगों के संक्रमित होने का ख़तरा अधिक था। आज कुपोषण उतना बड़ा मुद्दा नहीं है और ग़रीब व समाज के हाशिए पर खड़े लोगों की भी स्थिति उस समय जैसी बुरी नहीं है। इस वजह से संक्रमण कम फैलेगा। बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं
इसी तरह स्वास्थ्य सेवाएं पहले से बहुत बेहतर हैं। आईसीयू पहले से अधिक हैं और उनमें आधुनिकतम उपकरण लगे हुए हैं, वेंटीलेटर भी पहले से अधिक है। इस वजह से अस्पताल रोगियों के उपचार करने में पहले से अधिक सक्षम हैं।
संचार क्रांति
तीसरी अहम बात यह है कि संचार क्रांति हो चुकी है, दूरसंचार के सबसे आधुनिक उपकरण और प्रौद्योगिकी उपलब्ध हैं। इसलिए लोगों को शिक्षित करने या रोकथाम के उपाय अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने में सुविधा है। मिनटों में एक बात करोड़ों लोगों तक पहुँच सकती है। लोग संभल सकते हैं। कम घातक है कोरोना
डॉक्टर चंद्रा ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में यह भी कहा कि कोरोना वायरस स्पैनिश इनफ़्लूएन्ज़ा से कम ख़तरनाक है और उससे मौत की दर कम है।
कोरोना की मृत्यु दर दूसरे वायरसों की मृत्यु दर से कम है। कोरोना की मृत्यु दर 3 प्रतिशत है, दूसरी ओर मर्स (मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रम) वायरस की मृत्यु दर 37 प्रतिशत थी। कोरोना का काम घातक होना बड़ी राहत की बात है।
लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि कोरोना को कम कर आँका जाए। इससे होने वाली मौतों के बारे में अभी कुछ भी कहना मुश्किल है। डॉक्टर चंद्रा के मुताबिक़, 1918 में जब संक्रमण की पहली लहर आई तो मरने वालों की तादाद बहुत अधिक नहीं थी। वह जुलाई से अगस्त तक का समय था। लेकिन बाद में जब अक्टूबर में संक्रमण की दूसरी लहर आई तो मरने वालों की तादाद बहुत ज़्यादा हो गई।
कोरोना के साथ क्या होगा, यह कहना मुश्किल है। क्या इसकी भी दूसरी लहर होगी और वह बहुत भयावह होगी, इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है।
कोरोना का टीका?
आज एक अच्छी बात यह है कि कोरोना वायरस की संरचना के बारे में वैज्ञानिकों को पता है। इसलिए उसका टीका बनाने या उसका उपचार खोजने में सहूलियत होगी। हालांकि टीका बनाने का दावा किया जा चुका है, पर समझा जाता है कि यदि वह बन गया है और उसका परीक्षण सफल रहा तो भी उसे बाज़ार तक पहुँचने में लगभग 18 महीने का समय लगेगा। लेकिन 1918 में ऐसा नहीं हो सका था, उस समय न विज्ञान इतन विकसित था न ही उस संक्रमण के वायरस के बारे में कुछ पता लगाया जा सका था। इसलिए उसे रोकने का कोई कारगर उपाय किसी के पास नहीं था और लोग बस अनुमान के आधार पर ही उपचार किए जा रहे थे। इससे मरने वालों की तादाद बहुत हो गई थी।
एक मोटे अनुमान के मुताबिक उस समय स्पैनिश इनफ्लूएंज़ा से पूरी दुनिया में लगभग 5 करोड़ लोगों की मौत हुई थी। भारत में लगभग डेढ़ करोड़ लोग मारे गए थे। लेकिन इस बार स्थिति अलग है और इतने लोग नहीं मारे जाएंगे, इसकी उम्मीद की जा सकती है।
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