केंद्र सरकार और कई राज्य सरकारों ने दिहाड़ी मजदूरों, निर्माण कार्य में लगे मजदूरों और छोटी कंपनियों वगैरह में काम करने वालों के लिए कई तरह की योजनाओं का एलान तो किया है, पर ज़रूरतमंद लोगों तक यह पहुँच पाएगा, इसमें काफी संदेह है।
इसकी वजह यह है कि असगंठित क्षेत्र के इन मजदूरों का कहीं औपचारिक रिकॉर्ड नहीं है, वे कहीं पंजीकृत नहीं है। अब सवाल यह है कि जो पंजीकृत ही नही है, उन तक यह मदद कैसे पहुँचेगी?
कैसे करें मदद?
कुछ आला अफसरों ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि इन लोगों को पैसे देना बहुत ही मुश्किल है। एक अफ़सर ने कहा कि कुछ कर्मचारी शॉप एंड इस्टैबलिशमेंट एक्ट के तहत पंजीकृत हैं, पर इनकी तादाद बहुत ही कम है। ये लोग वे हैं जो छोटी दुकानों में काम करते हैं या छोटी कंपनियों में कोई छोटी-मोटी नौकरी करते हैं। पूर्व चीफ़ स्टैटिस्टिशियन प्रणब सेन ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा :
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'बगैर प्रशासकीय क्षमता के आदेश जारी करना चिंता की बात है। आप संगठित क्षेत्र में तो फिर भी कुछ कर सकते हैं, पर अनौपचारिक और असंगठित क्षेत्र में आप कुछ नहीं कर सकते, यह पूरी तरह अव्यवहारिक है।'
प्रणब सेन, पूर्व चीफ़ स्टैटिस्टिशियन
उन्होंने यह भी कहा कि ज़्यादातर दुकानें छोटी हैं और बहुत ही कम स्टॉक के साथ काम करती हैं। उनके लिए लॉकडाउन के 21 दिनों तक सामान बेचना लगभग नामुमकिन है।
नकदी नहीं
मुंबई के एक व्यवसायिक घराने के एक वरिष्ठ अफ़सर ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि ज़्यादातर दुकानें मोटे तौर पर 3 दिन से एक सप्ताह के पैसे से काम करती हैं, इसमें सामान खरीदने और कर्मचारियों को पैसे देने का इंतजाम करना होता है। कोई इस लॉकडाउन के लिए तैयार नहीं था, किसी के पास कर्मचारियों को देने के लिए पैसे पहले से नहीं थे। ऐसे में ये दुकानें चाहें भी तो कर्मचारियों को पैसे नहीं दे पाएंगी।
छोटी कंपनी, दुकान
यही हाल छोटी कंपनियों और कारखानों का है। चूंकि ये कारखाने और कंपनियां बंद हैं, उनका उत्पाद नहीं बिक रहा है, पैसे उनके पास नहीं पंहुच रहे हैं तो वे भुगतान भी नहीं कर सकतीं।
एनएसएसओ रोज़गार व बेरोज़गारी सर्वेक्षण 2011-12 के मुताबिक देश में लगभग 82.70 प्रतिशत यानी लगभग 39.14 करोड़ लोग असंगठित क्षेत्र में हैं। इनमें से बहुत बड़ी तादाद ऐसे लोगों की है, जो कहीं पंजीकृत नहीं है।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि यही हाल निर्माण कार्य में लगे मजदूरों का है। ये मजदूर किसी एक ठेकेदार के पास काम नहीं करते हैं, बल्कि ऐसे असंख्य ठेकेदार हैं। ऐसे में सरकार चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती, न तो उनका पता लगा सकती है, न ही उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई कर सकती है।
पूर्व स्टैस्टिटिशियन प्रणब सेन ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 'अब जो हो सकता है वह यह है कि असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को कहा जा सकता है कि वे जल्दी से जल्दी अपना पंजीकरण कहीं भी करवा लें। सरकार को चाहिए कि वह इन मजदूरों का पंजीकरण आसानी से करवाए ताकि उन्हें अब भी कुछ पैसे दिए जा सकें। राशन प्रणाली की तरह उन्हें रोज़ाना के हिसाब से कुछ पैसे दिए जा सकते हैं।'
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