उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब धड़ल्ले से जगहों के नाम बदल रहे हैं, अखिल भारतीय हिन्दू महासभा ने माँग की है कि मेरठ का नाम बदल कर गोडसे नगर कर दिया जाए। इसी राज्य के बाँदा में नाथूराम गोडसे की आदमकद मूर्ति लगाने के कार्यक्रम को पुलिस ने अंतिम समय में रोक दिया। ये दो घटनाएँ अहम इसलिए भी हैं कि हिन्दू महासभा, आरएसएस और बीजेपी एक ही विचारधारा से जुड़े हुए हैं। ये अपनी विचारधारा देश पर थोपने की कोशिश में धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं और केंद्र और कई राज्य सरकारों पर नियंत्रण होने से इन्हें इसमे कामयाबी भी मिल रही है।
ऐसे में महात्मा गाँधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे, उसकी सुनवाई और सुनवाई के दौरान कही गई उसकी बातों पर ध्यान देना ज़रूरी है क्योंकि उसने जो कुछ कहा था, वही बातें आज घुमा फिरा कर आरएसएस-बीजेपी के लोग भी कह रहे हैं।
आज जिस तरह कुछ लोग अपने विरोधियों पर मुसलिम तुष्टीकरण का आरोप लगाते हैं और बात-बात पर पाकिस्तान चले जाने की सलाह देते हैं, गोडसे का भी मानना था कि गाँधी मुसलिम तुष्टीकरण करते थे, उनकी वजह से देश का बँटवारा हुआ और वे पाकिस्तान की मदद कर रहे थे। गाँधी की हत्या करने के बाद गोडसे ने भागने की कोई कोशिश नहीं की, वह पकड़ा गया और पास के तुग़लक़ रोड थाने ले जाया गया। एक पत्रकार किसी तरह उससे वहीं मिलने में कामयाब हुआ। गोडसे ने उस पत्रकार कहा, 'इस समय मैं यही कहना चाहता हूं कि मैंने जो किया है, उस पर मुझे कोई अफ़सोस नहीं है। शेष बातें मैं अदालत में कहूँगा।'
गाँधी हत्या मामले की सुनवाई के लिए विशेष अदालत का गठन किया गया जिसने लाल किला में 22 जून, 1948 को सुनवाई शुरू की। जस्टिस आत्मा चरण इस अदालत के जज थे। बंबई प्रांत के महाधिवक्ता सी. के. दफ़्तरी अभियोजन पक्ष के मुख्य वकील थे। सुनवाई के दौरान 149 गवाह पेश किए गए और सैकड़ों कागजात पर विचार विमर्श किया गया। इस मामले में 11 लोगों को महात्मा गाँधी की हत्या करने, हत्या की साजिश रचने, हत्या में मदद करने या किसी न किसी रूप में हत्या से जुड़ने के लिए अभियुक्त बनाया गया। नाथूराम गोडसे मुख्य अभियुक्त था।
पहली पंक्ति में किनारे बैठा है नाथूराम गोडसे, उसकी बगल में है नारायण आप्टे।
अदालत में मामले की पहली सुनवाई 2 मई 1949 को हुई। गोडसे ने वकील रखने से साफ़ इनकार कर दिया और अपनी बात उसने खुद रखी। जस्टिस जी. डी. खोसला ने बाद में 'द मर्डर ऑफ द महात्मा' नामक किताब लिखी। उन्होंने इसमें लिखा:
गोडसे ने ग़रीबी के अधार पर वकील न रख अपना मुक़दमा ख़ुद लड़ने का अनुरोध किया। पर यह एक बहाना था। दरअसल गोडसे की इस चाल के पीछे यह कुत्सित इच्छा थी कि वह स्वयं को एक निडर देशभक्त और हिन्दू विचाधारा के मुख्य चरित्र के रूप में पेश कर सके।
गोडसे ने अदालत का इस्तेमाल अपनी विचारधार के प्रचार-प्रसार के लिए किया। उसने कई पेजों का पहले से तैयार भाषण अदालत में पढ़ा। उसने क्या कहा था, आप यहां सुन सकते हैं।
मुक़दमे की पूरी प्रक्रिया के दौरान गोडसे अपनी बात पर अड़ा रहा। उसने ख़ुद को हिन्दू समाज के सबसे बड़े पैरोकार के रूप में पेश करने की कोशिश की। उसने यह साबित करने की भी कोशिश की कि गाँधी जी के जीवित रहने से देश को नुक़सान होता। उसे अपने किए किसी काम पर कोई अफ़सोस नहीं था। खोसला ने लिखा:
गोडसे को अपने जघन्य अपराध पर रत्ती भर भी पछतावा नहीं था। अपनी आस्था के प्रति समर्पण रहा हो या वह सार्वजनिक तौर पर अफ़सोस जताना चाहता हो, गुमनामी में विलीन हो जाने से पहले उसने इस मौक़े (सुनवाई) का फ़ायदा उठा कर अपनी प्रतिभा का प्रर्दशन करना चाहा।
सुनवाई के दौरान सबसे अलग व्यवहार विनायक सावरकर का था। वे किसी दूसरे अभियुक्त से बात नहीं करते थे, दुआ सलाम या हँसी-मज़ाक नहीं करते थे, वे ऐसा व्यवहार करते थे मानो किसी को जानते तक नहीं। एकदम गुमसुम और चुपचाप रहते थे। लेकिन गोडसे का व्यवहार बहुत ही सामान्य था। वह शांत था, गंभीर था, अपनी बात पर अड़ियल था। लेकिन उसने किसी से गुस्सा या असंतोष व्यक्त नहीं किया।
जज आत्मा चरण ने 10 फ़रवरी, 1949 को फ़ैसला सुना दिया। नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फाँसी की सज़ा सुनाई गई, उसके बडे भाई गोपाल गोडसे समेत पाँच लोगों को उम्रक़ैद की सज़ा हुई। बडगे को रिहा कर दिया गया। तीन अभियुक्त गंगाधर दंडवते, गंगाधर जाधव और सूर्यदेव शर्मा को पुलिस पकड़ने और अदालत में पेश करने में नाकाम रही। वे अंत तक फ़रार रहे। उनका कभी कोई पता नहीं चल पाया।
सावरकर पर साजिश रचने का आरोप लगाया गया और इस मामले में विस्फोटक देने वाले दिंगबर बडगे की गवाही से जज पूरी तरह संतुष्ट भी थे। पर बडगे सरकारी गवाह था और उसकी कही बातों की पुष्टि किसी और से की जानी चाहिए थी। अभियोजन पक्ष ऐसा नहीं कर सका। लिहाज़ा, सावरकर को तकनीकी आधार पर बरी कर दिया गया।
फ़ैसले के 15 दिनों के भीतर अपील की जा सकती थी। इस अपील की सुनवाई के लिए विशेष खंडपीठ बना, जिसमें तीन सददस्य थे- जस्टिस भंडारी, जस्टिस अच्छूराम और जस्टिस खोसला। जस्टिस खोसला ने ही बाद में किताब लिखी थी। अपील पर सुनवाई 2 मई 1949 को शुरू हुई। गोडसे ने अपील की, पर फ़ैसले के ख़िलाफ़ या सज़ा को लेकर अपील नहीं थी। उसने अपील में कहा था कि उसने जो कुछ किया, ख़ुद किया। इसकी साजिश किसी ने नहीं रची थी।
खोसला ने अपनी किताब में लिखा कि गोडसे की अंतिम बात जो किसी भाषण की तरह थी, बेहद संजीदगी से कही गई थी। चूँकि सुनवाई खुली अदालत में हो रही थी, वहाँ बहुत लोग मौजूद थे। उनके चेहरे के भाव से गोडसे के प्रति सहानुभूति झलकती थी। खोसला ने लिखा:
अदालत में बैठे लोग गोडसे की बातों से द्रवित हो गए। सन्नाटा छा गया। कई महिलाएं आँसू पोछते हुए और पुरुष खांसते हुए और अपने रुमाल निकालते हुए देखे गए। मुझे ऐसा लग रहा था मानो मैं किसी हॉलीवुड फ़िल्म का कोई भावुक दृश्य देख रहा हूँ।
जस्टिस खोसला के मुताबिक गोडसे की बातें अप्रासंगिक और बेकार थीं। पर उनके साथी जज चाहते थे कि उसे बोलने का मौका दिया जाना चाहिए। ख़ुद खोसला को भी ऐसा ही लगने लगा। वह लिखते हैं:
मैंने अपने आप से कहा, 'यह आदमी जल्द ही मर जाएगा। अब वह किसी का कोई नुक़सान करने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में उसे अंतिम बार अपनी भड़ास निकालने देना चाहिए।'
गोडसे के परिवार के लोगों ने लंदन स्थित प्रिवी काउंसिल में इस सज़ा के ख़िलाफ़ दया याचिका दायर की, पर वह ख़ुद गोडसे की सहमति से नहीं हुआ था। गोडसे किसी तरह की दया नहीं चाहता था। प्रिवी काउंसिल ने उस पर विचार करने से ही इनकार कर दिया। कुछ लोगों का कहना है कि गोडसे अंतिम दिनों में एकाकी था। वह चुपचाप रहता था। उसे सावरकर के व्यवहार से दुख हुआ था। खोसला ने अपनी किताब में यह भी लिखा, 'पूरी सुनवाई के दौरान किसी तरह का पछतावा न करने वाला गोडसे अंतिम दिनों में पश्चाताप से भर उठा।' गोडसे और आप्टे को 15 नवंबर, 1949 को अंबाला जेल में फाँसी की सज़ा दे दी गई।
लेकिन गोडसे को फाँसी की सज़ा के 70 साल बाद उसे हीरो बनाने की कोशिश की जा रही है। महाराष्ट्र में उसके नाम पर एक सड़क बनाने की योजना बनाई गई थी, वह नहीं होने दी गई। हिन्दू महासभा ने उसकी एक प्रतिमा भी बना रखी है। दूसरी जगहों पर प्रतिमा नहीं लगाने दी गई। बीजेपी के सत्ता में रहते हुए हिन्दू महासभा पहले से अधिक मजबूत हो रही है। यह सत्तारूढ़ दल और संघ परिवार की इच्छा के अनुरूप नहीं हो रहा है, यह कहना ग़लत होगा।
गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।
नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & Norms व Cancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
'सत्य हिन्दी' के 6 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 180 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 6 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
'सत्य हिन्दी' के 12 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से एक वर्ष के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 12 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
सदस्यता तिथि से एक वर्ष की अवधि में 'सत्य हिन्दी' द्वारा आयोजित हर webinar में भाग लेने के लिए आपको मुफ़्त निमंत्रण। आप प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा।
'सत्य हिन्दी' द्वारा यदि भारत में कुछ विशेष कार्यक्रमों (Ground Events) का आयोजन किया जाता है, तो उनमें से किसी एक कार्यक्रम में भाग लेने का विशेष निमंत्रण (Special Invite)* शर्त लागू: (जब तक कोरोना वायरस के कारण उपजी स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं हो जाती, तब तक यह सम्भव नहीं होगा।)
विशिष्ट सदस्यता स्मृति चिह्न।**
* स्मृति चिह्न हम केवल भारतीय पते पर ही भेज पायेंगे, विदेश में नहीं। **स्मृति चिह्न सदस्यता लेने की तिथि के 60 दिन बाद भेजा जायेगा।
विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
सदस्यता तिथि से एक वर्ष की अवधि में 'सत्य हिन्दी' द्वारा आयोजित हर webinar में भाग लेने के लिए आपको मुफ़्त निमंत्रण। आप प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा।
'सत्य हिन्दी' द्वारा यदि भारत में कुछ विशेष कार्यक्रमों (Ground Events) का आयोजन किया जाता है, तो उनमें से किसी एक कार्यक्रम में भाग लेने का विशेष आरक्षित प्रीमियम निमंत्रण (Specially Reserved Premium Invite)* शर्त लागू: (जब तक कोरोना वायरस के कारण उपजी स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं हो जाती, तब तक यह सम्भव नहीं होगा।)
अति विशिष्ट सदस्यता स्मृति चिह्न।**
** स्मृति चिह्न हम केवल भारतीय पते पर ही भेज पायेंगे, विदेश में नहीं। **स्मृति चिह्न सदस्यता लेने की तिथि के 60 दिन बाद भेजा जायेगा।
This membership is open only to Non Resident Indians (NRI), Persons of Indian Origin (PIO), Overseas citizens of India (OCI) or Indian Citizens currently staying abroad. If you are not belong to any of these categories, please do not proceed.
*Membership will be cancelled if the above declaration is found to be false and Membership Fee will be refunded to the source account which was used to pay it.
अपनी राय बतायें