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हिजाबः 'निजता छोड़ो, हम तुम्हें पढ़ने देंगे-स्टेट नहीं कह सकता'

हिजाब पर सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच के सामने बहस जारी है। गुरुवार को कोर्ट की सुनवाई का छठां दिन था। कई वकीलों ने जोरदार बहस की। कुछ महिला वकीलों ने भी अपने दलीलें रखीं।
लाइव लॉ के मुताबिक याचिकाकर्ता लड़कियों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जयना कोठारी ने तर्क दिया कि कर्नाटक सरकार द्वारा शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाना "एक वर्ग के खिलाफ भेदभाव" का मामला है, जिसमें धर्म और लिंग दोनों के आधार पर भेदभाव शामिल है।

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वरिष्ठ अधिवक्ता अब्दुल मजीद धर ने हिजाब के संबंध में इस्लामी कानून में कही गई बातों पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने कहा कि यह हमारा मामला है कि पवित्र कुरान के अनुसार हिजाब अनिवार्य है और हाईकोर्ट की व्याख्या है कि इस्लाम ने हिजाब न पहनने वालों के लिए सजा निर्धारित नहीं की है, गलत है। (वकील निज़ाम पाशा ने भी ऐसे तर्कों पर बहस की थी।) 
धर ने कहा, हम एक महान राष्ट्र में रह रहे हैं, जिसमें एक महान संविधान हमारी विश्वास की रक्षा कर रहा है। हमें संविधान की प्रस्तावना के जरिए संवैधानिक संरक्षण की गारंटी मिली हुई है। 
वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि भारत ने बिना किसी आरक्षण के बाल अधिकारों पर कन्वेंशन की पुष्टि की है। यही विश्वास बच्चों के अधिकार की रक्षा करता है। हालांकि, उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने इसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है। यह मामला धार्मिक अल्पसंख्यकों से संबंधित व्यक्तियों को 'उचित मौका' देने के अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। मैं अन्य न्यायालयों का उल्लेख क्यों करती हूं? जिस तरह हम हिंदू हमारे देश में बहुसंख्यक हैं और अन्य जगहों पर अल्पसंख्यक हैं, हम जहां भी अल्पसंख्यक हैं, हम अपनी प्रथाओं को आगे बढ़ाते हैं।
एडवोकेट शोएब आलम ने तर्क दिया कि हिजाब व्यक्ति की पहचान का मामला है और सार्वजनिक निगाहों से सुरक्षित महसूस कराता है। एक व्यक्ति अपने शरीर को किस हद तक ढंकना चाहता है, यह व्यक्तिगत पसंद का मामला है। इसे किसी व्यक्ति के सार्वजनिक स्थान पर होने के आधार पर नहीं हटाया जा सकता है। 

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि 'आवश्यक धार्मिक प्रैक्टिस' के मुद्दे पर कर्नाटक हाईकोर्ट के सामने तर्क दिया जाना था। क्योंकि विवादित शासनादेश कुछ उदाहरणों (याचिकाकर्ताओं के अनुसार राज्य द्वारा गलत तरीके से व्याख्या किए गए) को संदर्भित करता है और एक बयान दिया है कि हिजाब एक आवश्यक प्रथा नहीं थी।

आलम ने यह भी तर्क दिया कि राज्य अपने नागरिकों के साथ एक वस्तु विनिमय (बार्टर) प्रणाली में प्रवेश नहीं कर सकता है, उन्हें शिक्षा के अधिकार के बदले में निजता के अधिकार को सरेंडर करने के लिए नहीं कह सकता है।

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आलम ने कहा कि हिजाब व्यक्ति की पहचान का मामला है और यह एक व्यक्ति की गरिमा से भी जुड़ा है। यहां तक ​​कि एक कैदी के भी मौलिक अधिकार हैं, और यद्यपि यह अधिकारों का संकुचन है, कोई समर्पण नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने के अधिकार का पता पुट्टस्वामी के फैसले से लगाया जा सकता है, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निजता किसी व्यक्ति से जुड़ी होती है, जगह से नहीं। इस तरह मैं अपनी निजता को स्कूल में भी सुरक्षित रखना चाहता हूं। लड़कियां भी यही कह रही हैं। स्कूल में हमारी प्राइवेसी बनी रहनी चाहिए। बेशक हम वर्दी में हों। इसलिए हिजाब जरूरी है।
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क़मर वहीद नक़वी
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