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सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बॉन्ड पर सुनवाई जल्द, 9208 करोड़ गुमनाम पैसा पार्टियों की जेब में 

सुप्रीम कोर्ट चुनावी बॉन्ड मामले की सुनवाई शुरू करेगा। चीफ जस्टिस एन.वी. रमना ने मंगलवार को जाने-माने वकील प्रशांत भूषण से यह बात कही। प्रशांत भूषण ने इस मुद्दे को चीफ जस्टिस के सामने उठाया था। चीफ जस्टिस ने कहा कि अदालत इस मामले की सुनवाई करना चाहती थी, लेकिन कोविड-19 महामारी की वजह से इसमें देरी हो गई।

सरकारी आंकड़ा बताता है कि 2018 से अभी तक 9208 करोड़ के चुनावी बॉन्ड अब तक बेचे जा चुके हैं। यानी नौ हजार करोड़ से ज्यादा पैसा राजनीतिक दलों के पास आ चुका है। ये पैसा किन लोगों या कंपनियों ने दिया है, देश नहीं जानता है। क्योंकि मोदी सरकार ने नियमों में बदलाव करके पहचान छिपाने की छूट दी है। दान के रूप में मिलने वाले चंदे के मामले में सत्तारूढ़ दल हमेशा फायदा में रहता है।

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असोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की ओर से वकील भूषण ने सीजेआई को सूचित किया कि मामला बिना सुनवाई एक साल से लंबित है।मोदी सरकार चुनावी बांड योजना लेकर आई थी। 2017 के वित्त अधिनियम में बदलाव करके यह व्यवस्था की गई कि धन के स्रोतों के किसी भी रिकॉर्ड के बिना व्यक्तियों और विदेशी कंपनियों से राजनीतिक दलों को असीमित दान मिल सकता है। यानी बिना पहचान बताए लोगों और विदेशी कंपनियों से राजनीतिक दलों को दान मिल सकता है। कई राजनीतिक दलों ने इसे भ्रष्ट व्यवस्था बताते हुए इसका विरोध किया था।  

सीजेआई और वरिष्ठ वकील के बीच इस मुद्दे पर कोर्ट में बातचीत तब हुई जब प्रशांत भूषण ने सुनवाई के लिए मामले को जल्द सूचीबद्ध करने का मौखिक उल्लेख किया। भूषण ने पिछले साल अक्टूबर में भी इस मामले की तत्काल सुनवाई की मांग की थी।

पारदर्शिता की आड़

मोदी सरकार ने इस योजना को राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त धन और चंदे में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए उचित ठहराया है।

सरकार ने अपने 21 पेजों के हलफनामे में कहा था कि चुनावी बॉन्ड को मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल द्वारा अधिकृत बैंकों के साथ अपने बैंक खातों के जरिए ही भुना सकते हैं। बांड में दाता या प्राप्त करने वाले राजनीतिक दल का नाम नहीं होता है और केवल एक अल्फ़ान्यूमेरिक सीरियल नंबर होता है।

मोदी सरकार ने इस योजना को कैशलेस-डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहे देश में चुनावी सुधार के रूप में बताया था।

सरकार ने राजनीतिक चंदे में काले धन को खत्म करने के उपाय के रूप में चुनावी बांड योजना का बचाव किया था।

गुमनामी वैध करार हालांकि, भारत के चुनाव आयोग ने 2019 में एक हलफनामा दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि राजनीतिक फंडिंग के लिए सरकार की योजना ने पहचान छिपाने को वैध कर दिया है। चुनावी बांड राजनीतिक दाताओं और योगदान प्राप्त करने वाले दलों की पहचान की रक्षा करते हैं। चुनावी बांड की खरीद के माध्यम से राजनीतिक दलों को 20,000 रुपये से कम का योगदान देने वाले दाताओं को अपना पहचान विवरण जैसे पैन, आदि प्रदान करने की आवश्यकता नहीं है।

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क़मर वहीद नक़वी
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