सरकारी आंकड़ा बताता है कि 2018 से अभी तक 9208 करोड़ के चुनावी बॉन्ड अब तक बेचे जा चुके हैं। यानी नौ हजार करोड़ से ज्यादा पैसा राजनीतिक दलों के पास आ चुका है। ये पैसा किन लोगों या कंपनियों ने दिया है, देश नहीं जानता है। क्योंकि मोदी सरकार ने नियमों में बदलाव करके पहचान छिपाने की छूट दी है। दान के रूप में मिलने वाले चंदे के मामले में सत्तारूढ़ दल हमेशा फायदा में रहता है।
सीजेआई और वरिष्ठ वकील के बीच इस मुद्दे पर कोर्ट में बातचीत तब हुई जब प्रशांत भूषण ने सुनवाई के लिए मामले को जल्द सूचीबद्ध करने का मौखिक उल्लेख किया। भूषण ने पिछले साल अक्टूबर में भी इस मामले की तत्काल सुनवाई की मांग की थी।
पारदर्शिता की आड़
मोदी सरकार ने इस योजना को राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त धन और चंदे में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए उचित ठहराया है।सरकार ने अपने 21 पेजों के हलफनामे में कहा था कि चुनावी बॉन्ड को मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल द्वारा अधिकृत बैंकों के साथ अपने बैंक खातों के जरिए ही भुना सकते हैं। बांड में दाता या प्राप्त करने वाले राजनीतिक दल का नाम नहीं होता है और केवल एक अल्फ़ान्यूमेरिक सीरियल नंबर होता है।
मोदी सरकार ने इस योजना को कैशलेस-डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहे देश में चुनावी सुधार के रूप में बताया था।
अपनी राय बतायें